हर साल 25 दिसंबर को क्रिसमस का त्योहार मनाया जाता है. ईसाई धर्म में इस त्योहार को जीसस यानी ईसा मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है. बाइबल में जीसस को परमेश्वर की संतान और यूनिवर्स का क्रिएटर (ब्रह्मांड का निर्माता) बताया गया है. उन्होंने हमेशा अपनी शक्तियों का प्रयोग समाज के कल्याण और हित में किया. हालांकि ये बड़े आश्चार्य की बात है कि जीसस ने अपने चमत्कारों की शुरुआत एक शादी में पानी को शराब बनाकर की थी. लेकिन इसके पीछे एक खास संदेश भी छिपा था.
क्यों जीसस ने पानी को बनाया शराब?
बाइबल के अनुसार, गलील के काना नगर में एक विवाह समारोह चल रहा था. इस दौरान विवाह में मेहमानों के लिए शराब कम पड़ गई. ऐसे में मेहमानों के सामने मेजबान परिवार को शर्मिंदा न होना पड़े, इसलिए मां मरियम ने यीशु से मदद मांगी. मरियम ने यीशु से कहा कि उनके पास दाखरस (शराब) खत्म हो गई. पहले तो यीशु ने कहा कि इसमें तुम मुझे क्यों शामिल कर रही हो. मेरा समय अभी नहीं आया है. लेकिन मरियम की जिद के आगे यीशु झुक गए और संसार को अपना पहला चमत्कार दिखाया.
विवाह स्थल पर पत्थर के छह घड़े रखे थे, जिनका प्रयोग यहूदियों में धार्मिक शुद्धिकरण के लिए किया जाता था. प्रत्येक घड़े में 20 से 30 गैलन पानी आ सकता था. घड़ों की संख्या छह थी जो सात से कम है. इसे बाइबल में पूर्णता का प्रतीक माना जाता है. जबकि छह अपूर्णता को दर्शाता है. दूसरा, इन घड़ों में भरा पानी केवल बाहरी शुद्धि कर सकता था, मनुष्य को भीतर से पवित्र नहीं कर सकता था.
यीशु ने वहां मौजूद सेवकों को आदेश दिया कि वो उन घड़ों को पानी से पूरी तरह भर दें. घड़ों में पानी भरने के बाद के यीशु ने कहा अब इसमें से थोड़ा पानी निकालकर समारोह कक्ष के प्रधान को पिलाएं. जब उस प्रधान ने इसे चखा तो वो हैरान हो गया. घड़ों में मौजूद साधारण पानी शराब बन चुका था. इसे पीते हुए प्रधान ने कहा कि आमतौर पर लोग सबसे अच्छी शराब पहले परोसते हैं. लेकिन यहां सबसे अच्छी शराब बिल्कुल आखिर में परोसी गई है.
पानी को शराब बनाने के पीछे क्या था संदेश?
यीशु के इस चमत्कार का अर्थ केवल पानी को शराब में बदलना नहीं था. बल्कि इसके जरिए उन्होंने संदेश दिया कि वो अधूरी पड़ी व्यवस्था को पूर्ण करने ही आए हैं. पानी बाहरी शुद्धि कर सकता है, लेकिन पापों की क्षमा नहीं दिला सकता. बाइबल में कहा गया है कि 'लहू बहाए बिना पापों की क्षमा नहीं होती.' यीशु ने पानी को दाखरस में बदलकर अपने उस लहू का संकेत भी दिया, जिसे आगे चलकर क्रूस पर भी बहाया जाना था.
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