Chanakya Niti in Hindi: व्यक्ति का जीवन विद्या, धर्म, धन और घर के इर्द-गिर्द घूमता रहता है. मनुष्य इन्हीं चीजों को संजोने और बचाने में अपना पूरा जीवन लगा देता है. लेकिन कई बार सब कुछ करने के बाद भी कुछ चीजें छूट जाती हैं. चाणक्य ने अपने नीतिग्रंथ यानी चाणक्य नीति में एक श्लोक के माध्यम से यह बताया है कि मनुष्य कैसे धर्म, विद्या और घर को बचा सकता है. आइए जानते हैं इनके बारे में....
वित्तेन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते।
मृदुना रक्ष्यते भूपः सत्स्त्रिया रक्ष्यते गृहम्।।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि धन से धर्म की रक्षा होती है. योग से विद्या की, कोमलता से राजा की और सती स्त्री से घर की रक्षा होती है. यानी चाणक्य इस श्लोक के माध्यम से बताते हैं कि धर्म की रक्षा के लिए धन की आवश्यकता होती है.
विद्या की सुरक्षा के लिए या उसे बचाने के लिए योग की अथवा अभ्यास की जरूरत होती है. ऐसा नहीं करने पर विद्या गौण हो जाती है और किसी काम नहीं आती.
इसके अलावा राजा यानी प्रशासन के लिए मधुरता या कोमलता की आवश्यकता होती है. वहीं एक अच्छी महिला यानी गृहलक्ष्मी द्वारा घर की सुरक्षा होती है. धन से धर्म की रक्षा होती है, धन के बिना कोई धर्म का कार्य नहीं हो पाता.
चाणक्य ये भी कहते हैं कि...
सुखस्य मूलं धर्म:।
धर्मस्य मूलमर्थ:।।
यानी सुख का मूल धर्म है और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है. धर्म से अर्थ की भी प्राप्ति होती है, धर्म से सब कुछ मिल जाता है, धर्म ही इस संसार में सब कुछ है, सार है, इसलिए धर्म की रक्षा करनी चाहिए.
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