श्रीमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग: महादेव की गोद, देवी पार्वती की ममता और पुत्र प्रेम का प्रतीक, ऐसा शिवलिंग जो परिवार का प्रतीक है

महाभारत के अनुसार श्रीशैल पर्वत पर जाकर श्री मल्लिकार्जुन का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है. शिव पुराण की शत् रूद्र संहिता में आया है कि श्रीमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन पूजन से अद्वितीय सुख प्राप्त होता है. श्रीशैल पर्वत पर श्री मल्लिकार्जुन नाम का दूसरा ज्योतिर्लिंग है. यह भगवान शिव के अवतार हैं.

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श्रीमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग शिवपरिवार के दर्शनों का फल देता है श्रीमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग शिवपरिवार के दर्शनों का फल देता है

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 27 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 8:56 PM IST

सावन मास का पूरा समय महादेव शिव को समर्पित है. सभी पूजित देवताओं में शिव ऐसे अकेले हैं, जो पूर्ण रूप से गृहस्थ हैं और परिवार को लेकर चलने वाले लगते हैं. उनका जीवन दर्शन एक आम भारतीय परिवार की तरह, पति-पत्नी, बच्चे के साथ पास-पड़ोस और परिवेश से बनता है. इस तरह सब शिवके और शिव सभी के हो जाते हैं, लेकिन परिवार वाली यह अवधारणा इतनी सामान्य नहीं है. जैसा कि हमारे परिवारों में विरोधाभास होना आम बात है, शिव परिवार में भी यह सब कुछ आसानी से देखने को मिलता है. 

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शिव परिवार में विरोधाभास
शिवजी की सवारी नंदी है, देवी पार्वती का वाहन शेर है. शेर के लिए बैल एक खाद्य पदार्थ है. शिव जी के गले में नाग है, भगवान गणेश का वाहन चूहा है, इस तरह चूहा, सर्प के लिए खाद्य है, लेकिन सर्प को डर लगता है, भगवान कार्तिकेय के वाहन मोर से. इस तरह परस्पर तनाव और विरोधाभास होने के बावजूद शिव परिवार एक साथ और इनके एक साथ ही पूजन की मान्यता भी है. शिवजी की इसी परिवार वाली अवधारणा को मूर्त और साकार रूप देता है, द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक और सोमनाथ के बाद दूसरा प्रमुख ज्योतिर्लिंग श्रीशैल पर्वत पर स्थित श्रीमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग.

महादेव का ही एक नाम है अर्जुन
आपको यहां यह बता देना जरूरी हो जाता है कि असल में अर्जुन महादेव का ही एक नाम है और इसी नाम पर महाभारत के महानायक का नामकरण हुआ था. भगवान शंकर का यह द्वितीय ज्योतिर्लिंग दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश में है. यहां कुर्नूल जिले में कृष्णा नदी के तट पर श्री शैल पर्वत पर स्थित है श्रीमल्लकार्जुन ज्योतिर्लिंग. महाभारत, शिव पुराण तथा पद्म पुराण आदि धर्म ग्रंथो में इसके महत्व का विस्तृत वर्णन है.

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महाभारत के अनुसार श्रीशैल पर्वत पर जाकर श्री मल्लिकार्जुन का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है. शिव पुराण की शत् रूद्र संहिता में आया है कि श्रीमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन पूजन से अद्वितीय सुख प्राप्त होता है. श्रीशैल पर्वत पर श्री मल्लिकार्जुन नाम का दूसरा ज्योतिर्लिंग है. यह भगवान शिव के अवतार हैं. पुत्र स्कंद जिन्हें कार्तिकेय भी कहते हैं, जब वह नाराज होकर कैलाश छोड़कर चले गए थे, तब देवी पार्वती बहुत दुखी हुईं. तब स्कंद (कार्तिकेय) को मनाने के लिए भगवान शिव पार्वती जी सहित कैलाश छोड़कर यहां आए और फिर लिंग रूप में यही स्थापित हो गए. 

प्रयागराज स्थित विशालाक्षी पीठ के महंत अखंडानंद जी महाराज इस ज्योतिर्लिंग का महत्व बताते हुए कहते हैं कि, शिवपुराण की कोटि रूद्र संहिता में इसके महत्व के विषय में बताया गया है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन से मनुष्य को धन-धान्य,समृद्धि ,प्रतिष्ठा,आरोग्य और अभीष्ट सिद्धि की प्राप्ति हो जाती है. इतना ही नहीं मनुष्य जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है. पौराणिक प्रसंग यह आता है कि शिव के दोनों पुत्र स्वामी कार्तिकेय और गणेश आपस में इस बात पर विवाद करने लगे कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है? शिव पार्वती ने यह निर्णय किया कि तुम दोनों में जो संपूर्ण भूमंडल की परिक्रमा करके पहले हमारे पास लौट आएगा वही सर्वप्रथम पूज्य माना जाएगा.

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जब शिव पुत्र हुए पिता से नाराज
कार्तिकेयजी मयूर वाहन पर सवार होकर तुरंत ही पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए चल पड़े. इधर गणेश जी ने विचार किया कि इस संपूर्ण ब्रह्मांड के रचयिता तो मेरे माता-पिता है तो क्यों न मैं माता-पिता की परिक्रमा कर लूं तो पृथ्वी ही नहीं संपूर्ण ब्रह्मांड की परिक्रमा हो जाएगी. गणेशजी के इस निर्णय का समर्थन शिव पुराण भी करता है- 

पित्रोश्च पछजनंकृत्वा प्रक्रान्तिं च करोति य:.
सत्य वै पृथ्वी जन्में फलों भवति निश्चितं..

जो माता-पिता की पूजा करके उसकी परिक्रमा करता है उसकी संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा का फल प्राप्त होता है, यह सुनिश्चित है. भगवान शिव-पार्वती को बैठाकर श्री गणेश जी ने उनका विधिवत पूजन करके उन्हें साष्टांग दंडवत किया और "नमः शिवाय" का जाप करते हुए उनके सात परिक्रमा की. शिवजी प्रसन्न हुए और गणेश जी को जगत में प्रथम पूज्य का वरदान दे दिया. देवर्षि नारद के द्वारा यह समाचार कार्तिकेयजी को मार्ग में ही प्राप्त हो गया था , इससे उनके मन में गणेश जी के प्रति ईर्ष्या उत्पन्न हो गई. वह माता-पिता के पास वापस आए और उनके चरण स्पर्श के बाद बिना कुछ कहे रूठ कर क्रौंच पर्वत पर रहने के लिए चले गए. शिव पार्वती ने देवर्षि नारद को क्रौंच पर्वत पर भेज कर उन्हें वापस आने का संदेश दिया लेकिन कार्तिकेय ने वापस आना स्वीकार नहीं किया.

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रूठे पुत्र को मनाने आए शिव-पार्वती
पुत्र स्नेह से व्यथित होकर माता पार्वती शिव जी को साथ लेकर उनसे मिलने के लिए क्रौंच पर्वत पर गईं किंतु कार्तिकेय जी ने उनके आने का समाचार सुनकर वहां से भी 36 किलोमीटर दूर चले गए फिर क्रौंच पर्वत पर पहुंच कर शिवजी वहीं ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए. तभी से उनका नाम श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग प्रसिद्ध हुआ.मल्लिका नाम भगवती पार्वती का है और अर्जुन नाम शिव का. शिव शक्ति का संयुक्त पीठ होने के कारण उन्हें श्री मल्लिकार्जुन कहते हैं मल्लिका पुष्पों से उनकी पूजा होने के कारण भी उन्हें श्री मल्लिकार्जुन कहते हैं. 

श्री शैलश्रृंगे विबुधाति संगे,
तुलाद्रितुंगेऽपिमुदा वसन्तम्.
तमर्जचनं मल्लिकपूर्वमेकं,
नमानिसंसार समुद्र सेतुम्..

इस तरह श्रीमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग शिव परिवार के समस्त सदस्यों के संयुक्त दर्शन का फल देने वाला ज्योतिर्लिंग है.

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