Sankashti Chaturthi 2022: संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है. श्रद्धालु इस दिन अपने बुरे समय व जीवन की कठिनाईओं को दूर करने के लिए भगवान गणेश की पूजा करते हैं. ये त्योहार हर महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है. इस चतुर्थी को अंगरकी चतुर्थी भी कहा जाता है. ये बेहद शुभ मानी जाती है. इस बार करवा चौथ और संकष्टी चतुर्थी 13 अक्टूबर को एक ही दिन पड़ रहे हैं. पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है. अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है. भारत के उत्तरी एवं दक्षिणी राज्यों में संकष्टी चतुर्थी का त्योहार मनाया जाता है.
संकष्टी चतुर्थी का महत्व (Sankashti Chaturthi 2022 Importance)
चतुर्थी के दिन चन्द्र दर्शन को बहुत ही शुभ माना जाता है. चन्द्रोदय के बाद ही व्रत पूर्ण होता है. मान्यता यह भी है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. पूरे साल में संकष्टी चतुर्थी के 13 व्रत रखे जाते हैं. प्रत्येक व्रत के लिए एक अलग व्रत कथा है. इस दिन व्यक्ति अपने दुखों से छुटकारा पाने के लिए भगवान गणेश की अराधना करता है.
संकष्टी चतुर्थी पूजन विधि (Sankashti Chaturthi 2022 Pujan Vidhi)
इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें. फिर साफ़ सुथरे वस्त्र पहनें. पूजा घर के ईशान कोण में एक चौकी रखें. उसपर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाकर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें. सबसे पहले गणेश जी का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें. पूजन विधि शुरू करते हुए गणेश जी को जल, दूर्वा, अक्षत, पान अर्पित करें. गणेश जी से अच्छे जीवन की कामना करें. इस दौरान “गं गणपतये नमः:” मंत्र का जाप करें. प्रसाद में गणेश जी को मोतीचूर के लड्डू, बूंदी या पीले मोदक चढ़ाएं. चतुर्थी पूजा संपन्न करते हुए त्रिकोण के अगले भाग पर एक घी का दीया, मसूर की दाल और साबुत मिर्च रखें. पूजा संपन्न होने पर दूध, चंदन और शहद से चंद्रदेव को अर्घ्य दें. फिर प्रसाद ग्रहण करें.
संकष्टी चतुर्थी कथा
पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने अपने शरीर के मैल से भगवान गणेश का सृजन किया था. एक दिन बाल्य अवस्था में उन्हें दरवाज़े पर बैठाकर खुद स्नान के लिए चली गई. माता पार्वती ने जाते वक्त भगवान गणेश से कहा कि वे किसी को भी अंदर आने ना दें लेकिन इस दौरान भगवान शिव वहां पहुंच गए. चूंकि माता पार्वती ने गणेश जी को आदेश दिया था कि किसी को भी अंदर नहीं दिया जाए इसलिए गणेश जी ने भगवान शिव को अंदर नहीं जाने दिया.
द्वार पर ही उन्हें रोक दिया. इस बात से शिव जी बहुत क्रोधित हुए. उन्होंने गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया. स्नान करने के पश्चात जब माता पार्वती को इस बात का पता चला तो उनको बहुत दुख हुआ. जिसके बाद माता पार्वती का दुख दूर करने के लिए शिवजी ने एक नवजात हाथी का सिर गणेश जी के शरीर पर लाकर लगा दिया. कहते हैं, उस वक्त गणेश जी का कटा हुआ सिर चंद्रमा पर जा कर गिरा था. मान्यता है कि चंद्रमा को अर्घ्य देने की परंपरा की शुरुआत इसी वजह से हुई. संकष्टी चतुर्थी के दिन भी चंद्रमा को अर्घ्य देना शुभ माना गया है.
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