आजतक रेडियो का सबसे सफल पॉडकास्ट 'तीन ताल' के 100 एपिसोड पूरे हो गए हैं. बाबा...ताऊ और सरदार की तिकड़ी ने कम समय में आप सभी के दिलों में अलग जगह बना ली है. रिश्ता ऐसा बन गया है कि हर एपिसोड का अब बेसब्री से इंतजार भी होता है और उसके रिलीज होने के बाद लंबे समय तक उस पर चर्चा भी रहती है. अब क्योंकि 100वां एपिसोड भी रिलीज हो चुका है, ऐसे में तीन तालियों का उत्साह अलग ही स्तर पर चल रहा है.
मौका बड़ा रहा तो अंदाज थोड़ा और ज्यादा बेबाक और मजेदार देखने को मिल गया. मुद्दे तो इस बार भी अलग-अलग क्षेत्रों के उठाए गए, लेकिन उनसे जुड़ी कहानियों ने सभी का मन मोह लिया. सबसे बड़ी बात तो ये रही इस बार 'तीन ताल' को लेकर बाबा...ताऊ और सरदार के निजी अनुभव थे, पीछे की कहानियां थीं, उन्हें सुनने का भी सुनहरा मौका मिल गया. चर्चा चलती रही तो रेडियो और व्यंग्य के कनेक्शन पर भी थोड़ा मंथन हो गया. इसी तरह से बातचीत का सिलसिला चलता रहा और शतकवीर एपिसोड में अपने श्रोताओं के साथ पूरे 180 मिनट का समय बिता लिया गया.
अब इतने घंटे की बातचीत रही तो मुद्दे भी कई उठ गए. शुरुआत वकालत से हुई. पेशा जितना बड़ा है, इसके किस्से उससे भी ज्यादा रोचक. तो जब बाबा...ताऊ और सरदार की तिकड़ी ने इस पर चर्चा शुरू की तो ऐसी बातें सामने आ गईं जिनके बारे में कई बार सोचा ही नहीं जाता है. कुछ मजेदार, कुछ गंभीर, कई पहलुओं पर चर्चा की गई. वकालत में किस तरह का क्लास डिवाइड आ गया है, इस पर भी एक लंबी बहस रही.
'तीन ताल' में अब हमेशा आपके मन में आ रहे सवालों को भी तवज्जो दी जाती है, ऐसे में ये भी समझने का प्रयास रहा कि आखिर ये कानून की भाषा इतनी जटिल क्यों होती है? जो बात आसानी से कही जा सकती है, भारी भरकम शब्दों का इस्तेमाल क्यों हो जाता है? ये सवाल तो कई बार आप सभी के मन में आया होगा, तो इस पर ताऊ और बाबा का ज्ञान जानने लायक है. वैसे इस 100वें एपिसोड में एक और बड़ा खुलासा हुआ है. वकालत से जुड़ा है और सीधा कनेक्शन ताऊ और बाबा से है. ये जानने के लिए थोड़ी मेहनत कीजिए और इस पॉडकास्ट को तसल्ली से सुनिए.
वैसे जो तीन ताल को जो नियमित रूप से सुनता है, उसे पता है कि धार्मिक मामलों में बाबा और ताऊ की कई बार तीखी टिप्पणी देखने को मिल जाती है. राय तो अलग हो सकती है, लेकिन देखने के कई सारे नजरिया मिल जाते हैं. 100वें एपिसोड में ऐसा ही एक मुद्दा पितृपक्ष का उठा. उसी मुद्दे से बात पंडितों के महत्व तक पर आ गई. इनका आपके जीवन में क्या रोल रहता है? क्या आपसे ज़्यादा आपके जीवन को पंडित जीते हैं? इस पर बाबा ने विस्तार से बात की है. अब चर्चा के दौरान एक गंभीर मुद्दा खत्म हुआ तो दूसरे पर भी मंथन हो गया.
कभी सोचा है कि आखिर श्मशान की शांति कहां चली गई? ये सवाल जितना गहरा है, इस पर बाबा और ताऊ का ज्ञान और ज्यादा सोचने पर मजबूर करने वाला है. ताऊ ने एक कदम आगे बढ़कर यहां तक कहा है कि शव को जल्दी जलाना चाहिए. इसकी पीछे की थ्योरी भी समझने के लिए सुनिए तीन ताल का 100वां एपिसोड.
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