पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के रिजल्ट आ गए हैं. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कुछ ऐसे उम्मीदवार हैं, जो हर चुनाव में अपनी जीत के नए-नए रिकॉर्ड बनाते हैं. इलेक्शन में लगातार जीतने या अजेय जैसी छवि बना लेने के पीछे की वजह क्या है? आइए जानते हैं...
सबसे पहले बात मध्य प्रदेश की करें तो वहां सागर जिले की रहली विधानसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार गोपाल भार्गव 9वीं बार चुनाव जीते हैं. वे इस सीट से 1983 से लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं. वर्तमान सरकार में गोपाल के पास लोक निर्माण विभाग है. इसी तरह, खंडवा जिले की हरसूद सीट से बीजेपी के ही विजय शाह 8वीं बार चुनाव चुनाव जीते हैं. वे वर्तमान में शिवराज सरकार में वन मंत्री हैं.
इस बार कैसा रहा रहली का चुनाव?
गोपाल भार्गव (71 साल) ने इस बार 72800 वोट से चुनाव जीता है. गोपाल को 130916 वोट मिले हैं. जबकि कांग्रेस की ज्योति पटेल को 58116 वोट मिले. यहां नोटा तीसरे नंबर पर रहा. 1801 वोटर्स ने नोटा दबाया. एक अन्य कैंडिडेट ने 1688 वोट हासिल किए. बाकी 12 कैंडिडेट्स को एक हजार से भी कम वोट मिले. यह हार-जीत का डेटा बताता है कि रहली में भले बीजेपी और कांग्रेस उम्मीदवार आमने-सामने थे. लेकिन, जीत का अंतर बहुत ज्यादा रहा. अन्य उम्मीदवार चर्चा में ही नहीं आ पाए.
गोपाल के खिलाफ प्रचार करने पहुंचे थे राजीव गांधी
गोपाल भार्गव ने पहली बार 1985 में चुनाव लड़ा था. उनके सामने कांग्रेस से तत्कालीन विधायक महादेव प्रसाद खड़े थे. उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी कांग्रेस के समर्थन में प्रचार करने के लिए रहली विधानसभा पहुंचे थे. लेकिन, जब नतीजे आए तो गोपाल ने 9,690 वोट से चुनाव जीत लिया. उसके बाद से जीत का सिलसिला रुका नहीं है. 1985 से पहले रहली सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी. बदलते समय के साथ ये सीट आज बीजेपी का गढ़ बन चुकी है.
गोपाल भार्गव के पास क्या है जीत का फॉर्मूला...
- रहली सीट कुर्मी और ब्राह्मण बाहुल्य सीट मानी जाती है. यहां 35 प्रतिशत से ज्यादा कुर्मी-पटेल मतदाता हैं. ब्राह्मण वोटर सिर्फ 10 हजार के आसपास ही हैं. कांग्रेस इस दशकों पुराने किले को वापस पाने के लिए कभी ब्राह्मण तो कभी कुर्मी उम्मीदवार पर अपना दांव चलती रहती है. लेकिन, गोपाल भार्गव हर बार इस बात को साबित करते आ रहे हैं कि वो एक अपराजित योद्धा हैं. भार्गव 2003 से बीजेपी सरकार में लगातार मंत्री हैं. साल 2018 में जब कांग्रेस की सरकार बनी तो वे नेता प्रतिपक्ष बनाए गए थे.
- लगातार चुनाव जीतने से एक बात तो साफ हो जाती है कि इस सीट पर जातिगत समीकरण बहुत ज्यादा काम नहीं करते हैं. गोपाल बुंदेलखंड में ब्राह्मण समाज के बड़े चेहरे के तौर पर जाने जाते हैं.
- सागर जिले में गोपाल भार्गव 'धर्म पिता' के तौर पर भी जाने जाते हैं. यहां पिछले 22 साल से होने वाला एक सामूहिक विवाह समारोह गिनीज बुक में दर्ज है. खास बात यह है कि गोपाल का ये कार्यक्रम शिवराज सरकार की कन्या विवाह योजना आने के पहले से आयोजित किया जा रहा है. वे इसी साल21 हजार कन्याओं का कन्यादान करने का संकल्प भी पूरा कर चुके हैं. उनके इस कार्यक्रम में हर कोई बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता है. सहयोग और समर्थन करता है.
- गोपाल के बारे में कहा जाता है कि वो अपने क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहते हैं. क्षेत्र में किसी के यहां शादी हो या दुख की घड़ी... उनके परिवार से उपस्थिति जरूर रहती है. गोपाल के साथ उनके बेटे अभिषेक दीपू भार्गव भी एक्टिव रहते हैं. वे भी पिता का सहयोग करते हैं.
- पत्रकार सचिन चौधरी कहते हैं कि ये लगातार तीसरा चुनाव था, जब गोपाल भार्गव क्षेत्र में प्रचार करने नहीं गए. वे चुनाव के वक्त कार्यकर्ताओं से मुलाकात करते हैं. लेकिन, जनता से वोट मांगने नहीं जाते हैं. यहां तक कि अपने क्षेत्र में किसी स्टार प्रचारक को भी नहीं बुलाते हैं. गोपाल भार्गव कहते हैं कि हमने काम किया होगा तो जनता अपने आप वोट देगी. हालांकि, चुनावी प्रचार में उनका बेटा-बहू और परिवार एक्टिव रहता है. गोपाल ने चुनाव प्रचार नहीं करने का संकल्प लिया है. इसलिए वो वोट मांगने नहीं जाते हैं. बेटियों के सामूहिक विवाह का कॉन्सेप्ट भी वही लेकर आए थे.
- इस बार चुनाव में गोपाल भार्गव के बेटे-बहू दीपू भार्गव और शिल्पी भार्गव ने क्षेत्र में प्रचार की कमान संभाली. महिलाओं से सीधा संवाद करने में शिल्पी ने अहम भूमिका निभाई. शिल्पी कहती हैं कि पहले महिलाएं अपनी परेशानी नहीं बता पाती थीं. इस बार 300 पोलिंग बूथ पर जाकर प्रचार किया.
- दीपू कहते हैं कि जब पिताजी भोपाल में होते हैं तो वो इलाके में सक्रिय रहते हैं और जरूरतमंद की मदद के लिए आगे रहते हैं. रहली को हम लोग एक परिवार की तरह मानते हैं और हर वर्ग से सीधा जुड़ाव है. शिल्पी गांव-गांव की महिलाओं से संपर्क बनाए रखने के लिए भजन और तीजा-त्योहार आयोजित करवाती हैं और वहां पहुंचती हैं. उनकी समस्याएं जानती हैं और उनका निराकरण करवाती हैं. पहले हमारा पुरुषों से ही सीधा जुड़ाव था, लेकिन अब महिलाओं से भी संपर्क हो गया है.
- सचिन के मुताबिक, गोपाल कहते हैं कि जनता ही किसी को अपराजेय बनाती है. गोपाल का हर बार जीत का मार्जिन बढ़ रहा है. वे यहां बेटियों की शादियों से लेकर दवाओं की व्यवस्था करवाते हैं. भोपाल बुलाकर लोगों का मुफ्त में इलाज करवाते हैं. बच्चों की नौकरी से लेकर रोजगार में सहयोग करते हैं. उनके क्षेत्र का कोई व्यक्ति गोपाल से सीधा जुड़ाव महसूस करता है.
- भार्गव के गढ़कोटा स्थित आवास पर एक निजी एंबुलेंस रखी रखती है. वहां से मरीजों को भोपाल लाया जाता है. वहां सरकारी आवास में रुकने से लेकर खाने तक की व्यवस्था है. आम लोगों के लिए एक मैन्यू कार्ड रहता है. खाने से लेकर नाश्ते और इलाज का पूरा बंदोबस्त करते हैं.
- गोपाल जब गढ़ाकोटा में होते हैं तो रोजाना अपनी पुरानी टॉकीज के कार्यालय में रात 10 बजे से ढाई बजे तक बैठते हैं. लोगों की समस्याएं सुनते हैं. बाकी दिन में बंगले के कार्यालय में बैठकर समस्याएं सुनते हैं. बेटा पूरा क्षेत्र संभालता है. लोगों से सीधे कनेक्टिविटी है.
- गोपाल किसी भी विभाग में मंत्री रहे, उन्होंने अपने क्षेत्र के लिए काम किए. आज गढ़ाकोटा कस्बा, शहर की तरह नजर आता है. वहां सरकारी मैरिज हॉल, सरकरी स्टेडियम, सरकारी स्विमंग पूल, जिम, बेसिक जरूरतें पूरी की गई हैं. ये सभी सुविधाएं लोगों को निशुल्क मिलती हैं. आज छोटे-छोटे गांव तक सड़कें हैं. वे कृषि और ग्रामीण विकास भी रहे हैं.
हरसूद से लगातार 8वीं बार जीते विजय शाह
मध्य प्रदेश के खंडवा जिले की हरसूद सीट से विजय शाह ने 8वीं बार जीत हासिल की है. विजय ने इस बार 1 लाख 16 हजार 580 वोट हासिल किए और 59 हजार 996 वोट से जीत हासिल की. विजय शाह आदिवासी समाज के बड़े नेता माने जाते हैं. उन्होंने साल 1990 में पहली बार बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. तब उनकी उम्र सिर्फ 28 साल थी. यह क्षेत्र ना सिर्फ बीजेपी, बल्कि उनकी निजी लोकप्रियता का भी गढ़ बन गया. कांग्रेस ने यहां सेंध लगाने की हरसंभव कोशिश की, लेकिन हर बार नाकाम हुई. खास बात यह है कि अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित इस सीट पर कोरकू आदिवासी की जनसंख्या ज्यादा है जबकि विजय मकड़ाई राजवंश के गोंड परिवार से आते है, तब भी उन्होंने कोरकू समुदाय में अपनी गहरी पैठ बना ली है.
क्या है चुनावी जीत का मंत्र?
दो दिन पहले जब आजतक ने विजय शाह से जीत का मंत्र पूछा तो उन्होंने अपनी अंगुली में कछुए की आकार की रत्नजड़ित अंगूठी दिखाई और कहा- वे राजनीति की इस दौड़ में खरगोश नहीं, बल्कि कछुए की चाल से चलते हैं. कछुआ भले धीरे ही सही, मंजिल तक जरूर पहुंचता है. अगला सवाल था, क्या कछुए की मंजिल मुख्यमंत्री की कुर्सी है तो विजय शाह मुस्कुराये और अटल जी, कलाम साहब को याद करते हुए बोले कि सपने बड़े ही होना चाहिये... क्या सपना प्रधानमंत्री का? उन्होंने कहा- हां, प्रधानमंत्री ही बनेंगे...
जानिए विजय शाह की जीत का फॉर्मूला...
- आदिवासी बाहुल्य सीट हरसूद में विजय शाह (61 साल) लगातार एक्टिव रहते हैं. वे आदिवासियों के बीच काम करने के लिए भी पहचाने जाते हैं. विजय को भी अपराजेय योद्धा माना जाता है. वे अब तक 8 चुनाव जीते और पांच बार मंत्री बने हैं. इस बार भी बड़ी जिम्मेदारी मिलना तय माना जा रहा है. आदिवासी बाहुल्य इलाके खंडवा, हरदा के अलावा खरगोन, होशंगाबाद और बैतूल में अच्छा खासा राजनीतिक दखल है. मध्य प्रदेश सरकार में बड़े आदिवासी चेहरे हैं.
- स्थानीय लोग कहते हैं कि कुंवर विजय शाह खुद गोंड समुदाय से आते हैं लेकिन उनकी कोरकू समुदाय में भी गहरी पकड़ है. यही वजह है कि कांग्रेस उनके गढ़ में सेंध नहीं लगा पाती है. उनका पूरा परिवार भी राजनीति में एक्टिव रहता है. इसकी मदद विजय शाह को भी मिलती है. 34 साल से लगातार विजय शाह जीत रहे हैं.
- विजय शाह के परिवार का राजनीति से गहरा नाता रहा है. हरदा जिले की टिमरनी सीट से विजय के भाई संजय शाह साल 2008 से चुनाव जीत रहे हैं. तब वे निर्दलीय चुनाव लड़े थे. बाद में 2013 और 2018 में बीजेपी से चुनाव जीते. हालांकि, इस बार वो अपने भतीजे अभिजीत शाह से 950 वोटों से हार गए हैं. 2018 में भी संजय शाह के भतीजे अभिजीत शाह ने कांग्रेस से चुनाव लड़ा था.
- विजय शाह की पत्नी भावना शाह साल 2011 से 2015 तक खंडवा की महापौर रही हैं. उनके बेटे दिव्यादित्य शाह इस समय जिला पंचायत उपाध्यक्ष हैं. बीजेपी के फ्रंटल संगठन युवा मोर्चा में भी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. ये राजवंश परिवार से आते हैं.
- इस सीट पर शाह बीजेपी के लिए एक ऐसा चेहरा बनकर उभरे हैं, जिन्हें हराने का फॉर्मूला कांग्रेस अब तक ढूंढ नहीं पाई है. स्थानीय लोग कहते हैं कि इस सीट पर कांग्रेस के संगठन को काम करने की जरूरत है. कांग्रेस कार्यकर्ताओं की ज्यादा सक्रियता नहीं रहती है. जबकि बीजेपी के कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर काम करते हैं.
- विजय शाह दावा करते हैं कि उन्होंने अपने क्षेत्र में सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा पर काम किया है. लोगों से जो वादे किए, वे पूरे करके दिखाए हैं. 140 गांवों के लिए चार हजार करोड़ की सिंचाई परियोजन लेकर आए हैं. यहां के सूखे खेतों में तीन-तीन फसलें उगाई जाएंगी. पॉलिटेक्निक आईटीआई समेत एकलव्य छात्रावास और स्कूल-कॉलेज बनवाए हैं. बिजली ग्रिड और कनेक्टिविटी में सुधार आया है. आज तस्वीर बदल गई है. हालांकि, लोग कहते हैं कि हरसूद इलाका पुनर्वास और कुपोषण को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में रहा है. रोजगार और शिक्षा को लेकर भी काम करने की जरूरत है.
- विजय शाह के बारे में कहते हैं कि सोशल मीडिया पर वो ना के बराबर एक्टिव रहते हैं. हालांकि, क्षेत्र के लोगों से लगातार जुड़ाव रखते हैं. परिवार भी उनकी उपस्थिति में क्षेत्र में सक्रिय देखा जाता है. लोगों से सीधा जुड़ाव होने का फायदा मिलता रहा है. विजय शाह कहते हैं कि वो जातिवाद की राजनीति नहीं करते हैं. जातिवाद हमारे लिए बीमारी की तरह है.
छत्तीसगढ़: बृजमोहन अग्रवाल ऐसे उम्मीदवार, जो हर बार जीतते हैं चुनाव
छत्तीसगढ़ में बृजमोहन अग्रवाल (64) ने 8वीं बार चुनाव जीता है. वे रायपुर दक्षिण से बीजेपी के उम्मीदवार थे. वे सदन में सबसे ज्यादा बार चुनाव जीतने वाले विधायक भी बन गए हैं. उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार महंत रामसुंदर दास को 67 हजार 719 वोटों से हराया है. रामसुंदर दास दूधाचारी मठ के महंत हैं और बृजमोहन के गुरु भी हैं. यानी चुनावी मैदान में शिष्य ने गुरु को शिकस्त दी है.
- बृजमोहन अग्रवाल इस सीट से 1990 से लगातार विधायक चुने जा रहे हैं. वे 35 साल से एमएलए हैं. वे 2003 में पहली बार रमन सरकार में मंत्री बनाए गए. उसके बाद लगातार 2018 तक मंत्री बने रहे.
- कहा जाता है कि अग्रवाल अपने इलाके के लोगों के साथ लगातार संपर्क में रहते हैं. यही वजह है कि इस सीट जातिगत समीकरण काम नहीं करते हैं. यहां 28 हजार मुस्लिम और 27 हजार ब्राह्मण वोटर्स हैं.
- स्थानीय लोग कहते हैं कि बृजमोहन सर्वसुलभ हैं. वे लोगों के मुद्दे उठाने में पीछे नहीं रहते हैं. सभी वर्गों में उनकी अपनी एक अलग पहचान है. अब तक के चुनाव में उन्हें सभी वर्गों का सपोर्ट भी मिलता रहा है.
पुन्नूलाल मोहली: सरपंच से मंत्री तक बने... 7वीं बार विधायक बने
- छत्तीसगढ़ में ही मुंगेली विधानसभा सीट से बीजेपी के पुन्नूलाल मोहले (71 साल) ने भी 7वीं बार चुनाव जीता है. उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार संजीत बनर्जी को 11 हजार 781 वोटों से हराया है. मोहले चार बार सांसद और दो बार मंत्री भी रह चुके हैं. 2018 के चुनाव में कांग्रेस की लहर होने के बावजूद मोहले अपनी सीट बचाने में कामयाब हुए थे.
- पुन्नूलाल मोहले ने राजनीति की शुरुआत सरपंच का चुनाव जीतकर की. 1985 में पहली बार विधायक बने. उसके बाद 1990, 1994, 2008, 2013 और 2018 में एमएलए चुने गए. इस चुनाव में भी मोहले ने मुंगेली में बीजेपी का परचम लहराया.
- मोहले पहली बार 1996 में बिलासपुर से बीजेपी के सांसद चुने गए. उसके बाद वे इसी सीट से तीन बार और 1998, 1999 और 2004 में लोकसभा सांसद निर्वाचित हुए. इतनी ही नहीं, वे 2008 और 2013 में बीजेपी की राज्य सरकार में मंत्री भी बनाए गए.
- पुन्नूलाल मोहले अनुसूचित जाति वर्ग से आते हैं. इस समाज के वे बड़े नेता माने जाते हैं. जानकार बताते हैं कि बिलासपुर इलाके में मोहले की अपनी पहचान है. वे जमीनी नेता के तौर पर जाने जाते हैं. इलाके के हर मसले से वाकिफ रहते हैं. समाज के हर वर्ग का सहयोग मिलता है. राजनीतिक अनुभव का लाभ भी मिलता है. यही वजह है कि कांग्रेस की हवा में भी मोहले के पैर जमीन पर टिक रहे. उन्होंने 2018 में 8,487 वोटों के बड़े अंतर से जीत हासिल की थी.
- मोहले के कार्यकाल में ही बीजेपी ने 2013 में मुंगेली को जिला बनाया गया. इसका इलाकाई लोगों को लाभ मिला. पहले यह बिलासपुर जिले की एक तहसील थी. अब मुंगेली को बीजेपी का गढ़ माना जाता है.
- मुंगेली सीट पर 65 फीसदी वोटर सतनामी समाज से आते हैं. बाकी अन्य समाज के मतदाता हैं. स्थानीय लोग कहते हैं कि मुंगेली विधानसभा में हार और जीत का फैसला सतनामी समाज के वोटर ही तय करते हैं. मोहले अनुसूचित समाज से आते हैं और यह सीट भी एससी के लिए रिजर्व है. हालांकि, लोग यहां पलायन और किसानों से जुड़ी समस्याएं गिनाते हैं. बिजली-पानी और सड़क की समस्या प्रमुख मुद्दों में शामिल रही है.
- लोग कहते हैं कि पुन्नूलाल लोगों से जुड़े रहते हैं. वे अपने क्षेत्र का दौरा करते हैं. सामाजिक कार्यों में सहभागिता निभाते हैं. इसलिए लोगों के बीच जनप्रिय हैं.
राजस्थान में कालीचरण सराफ ने चौथी बार चुनाव जीता है. उन्होंने जयपुर की मालवीय नगर सीट से कांग्रेस उम्मीदवार अर्चना शर्मा को 35 हजार 494 वोटों से हराया है.
उदित नारायण