Sahitya Aaj Tak Lucknow 2025: तहजीब के शहर लखनऊ में आयोजित 'साहित्य आजतक लखनऊ' कार्यक्रम के दूसरे दिन लेखक और कहानीकार दिव्य प्रकाश दुबे ने दर्शकों को अपनी कुछ कहानियां सुनाईं. साथ ही इनके जरिए उन्होंने आज की पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के बीच के फासले के बारे में बताया. उनकी एक कहानी का मुख्य पात्र लेखक के पिताजी थे जो उनकी ही टीचर को पहली नजर में अपना दिल दे बैठे थे.
पहली नजर का प्यार
दिव्य प्रकाश दुबे ने बताया कि टीचर का नाम मीना पाठक था लेकिन पिताजी उन्होंने मीना कुमारी बुलाते थे. एक दिन जब दिव्य प्रकाश का मैथ्स के एग्जाम में एक नंबर कट गया तो पिताजी तिलमिला गए क्योंकि उनके बेटे ने तो उत्तर पुस्तिका में सही जवाब लिखा था लेकिन मैडम ने ही उसे अनदेखा कर एक अंक काट लिया था. गुस्से में वह स्कूल पहुंच गए और वहां मीना मैडम को देखते ही उन्हें पहली नजर में उनसे प्यार हो गया.
टीचर ने जब दिव्य प्रकाश दुबे के पिताजी से स्कूल आने की वजह पूछी तो उन्हें नंबर कटने की शिकायत न कहकर कुछ बहाना बना दिया. ये देखकर बेटे ने पिताजी को स्कून आने की वजह बताने का इशारा भी किया लेकिन पिताजी कुछ भी नहीं बोले और टीचर से बाते करते रहें. इसके बाद उन्होंने पेरेंट्स-टीचर मीटिंग में जाना शुरू कर दिया ताकि वह स्कूल में मीना से मिल सकें.
पिताजी ने मैडम को दी पार्टी
एक बार जब दिव्य प्रकाश ने अपनी क्लास में पहला स्थान हासिल किया तो पार्टी करने का फैसला हुआ. टीचर को साथ लेकर पिताजी और दिव्य प्रकाश एक ही स्कूटर पर सवार होकर घर से दूर ढाबे पर डोसा खाने निकल पड़े. यह पार्टी भी उस दिन रखी गई जब लेखक की मम्मी घर में किटी पार्टी कर रही थीं, ताकि पिताजी को कोई डिस्टर्ब न करने पाए. घर से दूर इसलिए ताकि दोनों को साथ में ज्यादा टाइम गुजारने का मौका मिल सके.
फिर टेबल पर तीन डोसे परोसे गए, टीचर और पिताजी के लिए मसाला डोसा, जबकि दिव्य प्रकाश के खाते में आया प्लेन डोसा. तभी अचानक से टीचर ने अपने पर्स में से एक लिफाफा निकालकर पिताजी के हाथ में थमा दिया. साथ ही कहा कि शादी में भाभी को साथ लेकर पूरे परिवार के साथ आना. ये सुनते ही पिताजी के सामने रखा डोसा खाते नहीं बन रहा था. उस दिन पिताजी को डोसा गटकने में इतनी परेशानी हुई कि वह आज भी डोसा नहीं खाते हैं.
आखिर में लव स्टोरी का अंत
इस घटना के बाद टीचर की सीतापुर में शादी हो गई और उन्होंने स्कूल आना छोड़ दिया था. पिताजी ने भी मीटिंग के लिए अब स्कूल आना छोड़ दिया था. इसी वजह से लेखक की मैथ्स और हैंड राइटिंग आज भी ऐसी है कि वह सुबह का लिखा शाम को खुद भी नहीं पढ़ पाते हैं. घटना के बाद से पिताजी का देश के एजुकेशन सिस्टम पर से विश्वास ही उठ चुका था. अब दिव्य प्रकाश को इंतजार है कि कब उनका बेटा क्लास सेकेंड में जाए और वह भी थोड़ा-बहुत अपने पिताजी जैसा बन पाएं.
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