'जब इश्क और मासूक सब फना हो जाए..' साहित्य आजतक में सौम्यदीप-दिव्या बत्रा ने जमाया रंग

Sahitya Aajtak: कवयित्री और सूत्रधार दिव्या बत्रा और सिंगर सौम्यदीप दासगुप्ता ने ‘दस्तक दरबार’ मंच पर शुरू हुए विशेष सत्र ‘सूफियाना रंग में इश्क के 7 पड़ाव’ को कविताओं और संगीत के जरिए समझाया.

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दिव्या बत्रा और सौम्यदीप ने प्रेम के 7 स्टेज समझाए (Photo - ITG) दिव्या बत्रा और सौम्यदीप ने प्रेम के 7 स्टेज समझाए (Photo - ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 22 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:29 PM IST

Sahitya Aajtak: साहित्य प्रेमियों का सबसे बड़ा उत्सव साहित्य आजतक 2025 इन दिनों दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में पूरे शबाब पर है. राजधानी में आयोजित इस मेगा इवेंट का आज दूसरा दिन है, जहां तीन दिवसीय कार्यक्रम में देशभर से कला, साहित्य और संगीत जगत की प्रतिष्ठित शख्सियतें शिरकत कर रही हैं.

‘दस्तक दरबार’ मंच पर शुरू हुए विशेष सत्र ‘सूफियाना रंग में इश्क के 7 पड़ाव’ में कवयित्री और सूत्रधार दिव्या बत्रा और सिंगर सौम्यदीप दासगुप्ता ने मिलकर खूब रंग जमाया. दिव्या ने अपनी कविताओं के जरिए और सौम्यदीप ने गानों के जरिए  प्रेम के 7 स्टेज के बारे  में बताया.

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प्रेम के 7 पड़ाव  हब (अट्रैक्शन), उन्स (इनफैचुएशन), इश्क (लव), अकीदत (ट्रस्ट/श्रद्धा), इबादत (इबादत), जुनून (पागलपन) के बाद मौत (डेथ) के बारे में दिव्या और सौम्यदीप ने कविता और संगीत के जरिए समझाया.

प्रेम क्या है? 

दिव्या बत्रा ने कहा, 'प्रेम केवल सावन का मल्हार नहीं है. प्रेम केवल खुशियों का त्यौहार नहीं है. प्रेम है तूफानों में एक-दूजे की नौका को पार लगाना. अगर हो सके तो साथ बैठकर पार लगाना. इसलिए, ओ मेरे साथी, अरमानों को संजोना, साथ निभाना, और समय आने पर मेरे होने का एहसास देना.  

प्रेम सिर्फ खिले हुए फूलों का रंग या सौंदर्य नहीं है, यह केवल इंद्रधनुष का रंग भी नहीं है. प्रेम वह है जब मुश्किल समय में भी एक-दूसरे की मजबूरी और हिस्सेदारी को समझ पाना, और जब कठिनाई आए तो संग-संग चल पाना. तब ही तुम मेरा साथ निभाओगे.'

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इश्क से हकीकी तक का सफर 

दिव्या बत्रा ने प्यार के सरेंडर तक के सफर के बारे में बात की. उन्होंने कहा, 'प्रेम मांगने से नहीं मिलता है, सिर्फ समपर्ण करने से खुद ब खुद सागर की तरह मिल जाता है.' 

इबादत 

दरिया निकल जाता है, वजूद बीच रास्ते में खो जाता है, बदल जाने को। फिर क्या जरूरत है इनको घर से निकलने की, बदलने की? कौन जाने, शायद दीवाने से मिलने का जुनून बिछड़ने की पीड़ा से भी ज्यादा होता है. 

जुनून और मौत को संगीत के जरिए समझाया. दिव्या ने आखिरी पड़ाव मौत पर कहा, 'जब इश्क और मासूक सब फना हो जाए...'


होले-होले मेरी खामियां मिटाना,
गिर जाऊं तो थामकर उठाना,
मेरी कविता को भी सांस देना
हर पंक्ति में मुझे जगाना.

इश्क का मुझको नशा चढ़ाना,
गलती हो तो बच्चों-सी समझाना,
मैं को मेरे अंदर से हटाना,
अहं को धूल-सा उड़ाना.

एक मौसम तुमसे मुलाकात हुई, 
फिर मैंने जाना मैं नील नहीं गुलमोहर हूं,
रंग बिखेर देने को जन्मी हूं,
 क्योंकि में नीम नहीं.

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