Sahitya Aajtak 2025: शब्द सुरों के महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2025' का आज दूसरा दिन है जो लखनऊ के गोमती नगर के अंबेडकर मेमोरियल पार्क में चल रहा है. इसमें 'वेद की अग्नि, अखाड़े का भभूत- राम, रावण, शिव और कुंभ' सेशन पर आज पौराणिक कथाकार, लेखक और वक्ता देवदत्त पटनायक ने अपने विचार व्यक्त किए.
महाकुंभ क्या है और क्यों महाकुंभ में स्नान आवश्यक है?
देवदत्त पटनायक इस पर उत्तर देते हुए बताते हैं कि, 'महाकुंभ माघ मेला है और मत्सय पुराण में भी महाकुंभ का जिक्र मिलता है. पहले इसे ऋषभ मेला कहते थे और 1857 के बाद से ही इसे कुंभ मेला कहा जाने लगा. आज जिसे प्रयागराज कहा जाने लगा है उसमें प्रयाग का मतलब है संगम. और संगम में गंगा, यमुना और लुप्त नदी सरस्वती का मिलन होता है. दरअसल, महाकुंभ का संबंध ज्योतिष से है जब बृहस्पति ग्रह कुंभ राशि में बैठता है तब हरिद्वार में कुंभ मेला लगता है. लेकिन, जब बृहस्पति वृषभ राशि में जाता है तब प्रयागराज में कुंभ लगता है और बृहस्पति सिंह राशि में जाते हैं तो उज्जैन सिंहस्थ मेला होता है. ये मेला 12 साल में एक बार होता है क्योंकि बृहस्पति का चक्कर भी 12 साल में लगता है.'
अग्नि क्या है?
देवदत्त पटनायक इस पर उत्तर देते हुए बताते हैं कि, ' वेदों में अग्नि का जिक्र मिलता है, यज्ञ का जिक्र मिलता है लेकिन तप और भभूत का जिक्र नहीं मिलता है. मतलब कि, जब आप यज्ञ कर रहे हो तो इसका मतलब आप कार्य कर रहे हो जिससे अग्नि दिखती है. लेकिन, जब आप तप करते हो तो वह दिखता नहीं है कि आपके मन में क्या भाव चल रहा है. यज्ञ में देवताओं को आहुति चढ़ाया जाता है जिससे व्यक्ति को तथास्तु मिले या आशीर्वाद मिले यानी यज्ञशाला में आदान प्रदान की बात की जाती है. जितना यज्ञ करोगे उतना ही ऋण चढ़ेगा.'
पैसे के लिए है ज्ञान की आवश्यकता
देवदत्त पटनायक कहते हैं कि, 'जब तक सरस्वती नहीं होगी तब व्यक्ति कोई कार्य नहीं कर पाएगा यानी हर कार्य के लिए सरस्वती चाहिए. सरस्वती के बिना तो शिवजी भी त्रिशुल नहीं चला पाएंगे. '
''भारतीय शास्त्र में लेन-देन का बहुत अधिक जिक्र है. और कारोबार का संबंध लेन-देन से होता है क्योंकि लक्ष्मी का भी कारोबार होता है, सरस्वती का भी कारोबार होता है. अगर लेनदेन की बात न हो तो व्यक्ति जानवर भी बन सकता है. अगर यज्ञ परंपरा भूख को मिटा रही है तो शिवजी भूख का संहार कर रहे हैं. इसलिए, शिवयोगी बनने के लिए व्यक्ति को महत्वाकांक्षा को त्यागना पड़ेगा और महत्वाकांक्षा को त्यागना मतलब भूख को त्यागना. दरअसल, भूख निर्गुण और भोग सगुण होता है.''
क्या धर्म को रक्षा की आवश्यकता है?
देवदत्त पटनायक इस पर उत्तर देते हुए बताते हैं कि, 'सनातन शब्द का अर्थ है अमर और अगर आप अमर हो तो आपको कोई मार नहीं सकता है. और अगर कोई मार नहीं सकता है आपको रक्षा की आवश्यकता नहीं है. दरअसल, आत्मा को रक्षक की आवश्यकता नहीं है लेकिन अहंकार को रक्षा करने की जरूरत है. इसलिए, भारत देश का धर्म अमर है और इस धर्म को रक्षा की आवश्यकता नहीं है.'
भारत है ज्ञान का देश
देवदत्त पटनायक इस पर उत्तर देते हुए बताते हैं कि, 'हमारे देश में बहुत ही ज्यादा ज्ञान है और अगर मैं पूरी जिंदगी भी उस ज्ञान पर लिखूं तो भी वह समाप्त नहीं होगा. दरअसल, भारत संगीत से जुड़ा हुआ है जैसे शिवजी का डमरू, मां सरस्वती की वीणा, श्रीकृष्ण की बांसुरी, भगवान विष्णु का शंख होता है. हमेशा हमारे देवताओं को शस्त्रों साथ दिखाया जाता है लेकिन उनके वाद्य यंत्र भी बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं. इसलिए, लोगों और नवयुवकों को देवताओं को संगीत के द्वारा भी जानना चाहिए. '
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