कुछ नहीं से सबकुछ तक का सफर...प्रिया मलिक ने साहित्य आजतक के मंच पर किया शेयर

प्रिया मलिक ने साहित्य आजतक 2025 के 'दस्तक दरबार' मंच पर इश्क और मुहब्बत के प्रति अपना एक्सपीरियंस शेयर किया. उन्होंने कविता के जरिए घर, मां और प्यार की एहमियत बयां करते हुए कहा कि असली इश्क सरल और सहज होता है.

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Priya Malik, Poet & Artist (Photo Credit: Amarjeet Kumar Singh) Priya Malik, Poet & Artist (Photo Credit: Amarjeet Kumar Singh)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 22 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 6:56 PM IST

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में आयोजित 'साहित्य आजतक 2025' के 'दस्तक दरबार' मंच पर कवयित्री एवं लेखिका प्रिया मलिक ने शिरकत की. साहित्य के महापर्व के दूसरे दिन 'इश्क है' सेशन में प्रिया मलिक ने इश्क और मुहब्बत के प्रति अपने विचार साझा किए.

इस दौरान उन्होंने कहा, मैं मानती हूं कि हर चीज की इब्तेदा यानी शुरुआत घर से होती है, मेरा घर देहरादून में है. लेकिन कुछ चीजों की एहमियत जब समझ में आती है जब वो हमसे दूर हो जाती है. इसे लेकर उन्होंने अपना एक्सपीरिएंस शेयर करते हुए बताया कि मैं 10 साल ऑस्ट्रेलिया रही तो अपने घर को बहुत मिस किया है. हमेशा घर आने की ललक रही. उस दौरान एहसास हुआ कि कुछ पौधे उसी मिट्टी में पनप पाते हैं, जहां उन्हें बोया जाता है. घर नाम की एक शानदार कविता के साथ उन्होंने अपने कार्यक्रम को आगे बढ़ाया और मां एवं इश्क की एहमियत भी बताई.

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- कभी मेरे घर की दहलीज पे, जो तुम कदम रखोगे तो सीलन लगी कच्ची दीवारों पर खुद को देखकर चौंकना नहीं, हां...चौंकना नहीं,
तुम्हारे जाने के बाद कोई इन्हें रंगने आया नहीं...

इसके बाद उन्होंने मां की एहमियत बताई और कहा कि मैंने हमेशा अपनी मां को परेशान किया और हर सवाल का जवाब कुछ नहीं दिया. जब वो मुझसे पता करती स्कूल में क्या किया, क्या खाओगी, क्या होमवर्क मिला? मेरा एक ही जवाब होता था कुछ नहीं!

प्रिया ने बताया कि जब मैं ऑस्ट्रेलिया से वापस आ गई तो मुंबई में थी और एक दिन पापा का फोन आया कि तुम्हें देहरादून आना होगा तो मैं फ्लाइट से एयरपोर्ट से सीधा हॉस्पिटल पहुंची और रात को वहीं रुकी. उस दिन मैं अपनी मां के सभी सवालों के जवाब देने के लिए तैयार थी क्योंकि कुछ चीजों की एहमियत जब समझ में आती है जब वो आपके पास नहीं होती. जो प्यार एक मां दे सकती है वो जिंदगी में कोई नहीं दे सकता. कुछ नहीं कहने वाली प्रिया आज सबकुछ बताने के लिए तैयार थी. इस पर प्रिया ने एक और कविता अर्ज की जिसका नाम है 'कुछ नहीं'.

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क्या बताऊं मां कहां हूं मैं...
यहां उड़ने को मेरे खुला आसमान है..

उन्होंने कहा कि मां-बाप के जाने के बाद कुछ नहीं रह जाता, कोई नहीं पूछता, कोई भी नहीं जानना चाहेगा आपके सबकुछ के बारे में, इसलिए उनके साथ बिताने के लिए वक्त निकालें क्योंकि वक्त बहुत जल्दी चला जाता है. 

इसके बाद उन्होंने दिल्ली पर फोकस किया और बताया कि दिल्ली में ही पहली बार शॉपिंग सेंटर देखें, फ्लाईओवर देखे. प्रिया मलिक ने कहा कि रहते मुंबई हैं लेकिन दिल्ली इसलिए पसंद है क्योंकि दिल्ली के लोग और खाना दोनों पसंद हैं. 'दिल्ली है यहां पार्किंग स्पेस नहीं मिलता' उन्होंने इस कविता के जरिए अपनी बात साझा की.

इसके बाद प्रिया मलिक ने प्रेम और इश्क में फर्क पर भी अपनी राय देते हुए कहा कि प्यार किसी से भी कर सकते हैं लेकिन इश्क किसी एक से होता है. सूफी इश्क के 7 पड़ाव होते हैं. असली इश्क घर जैसा सरल एवं सहज होता है.  प्यार और इश्क का फर्क समझने में कहीं मुहब्बत करना ना भूल जाएं. 

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