'मैं अपने वक्त को बर्बाद करने वाली हूं...' जब सजी जवां शायरों की महफिल

Sahitya AajTak 2024: राजधानी दिल्ली की सर्दी और गहराती रात के बीच जब जवां शायरों ने महफिल जमाई तो पूरा ध्यानचंद स्टेडियम वाह-वाही से गूंज उठा. मौका था'साहित्य आजतक 2024' यंग पोएट मुशायरा का. इस शानदार कार्यक्रम ने समा बांध दिया.

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जब सजी जवां शायरों की महफिल जब सजी जवां शायरों की महफिल

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 22 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 10:31 PM IST

Sahitya AajTak New Delhi: दिल्ली में आयोजित 'साहित्य आजतक 2024' का पहला दिन शानदार रहा. देर शाम शुरू हुए मुशायरे ने लोगों को बांधे रखा. जब भी कोई युवा शायर या शायरा के शेर या शायरी की लाइनें दिल को छूते थे तो तालियों की गड़गड़ाहट से स्टेडियम का कोना-कोना गूंजने लगता था. मुशायरा शुरू होने से पहले ही काफी लोग इकट्ठा हो चुके थे. 

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यंग शायरों और कवियों ने इस सत्र में एक बढ़कर एक मतले और शेर पेश किये.  मुशायरे की शुरुआत दिल्ली की शायरा अमन अफरोज ने अपनी शायरी से की. साहित्य आजतक को धन्यवाद देने के बाद उन्होंने शुरुआत की.  

मुझे तेरे काबिल बनाना है मुझको
तेरा मेरा रिश्ता निभाना है मुझको
कोई पूछे मुझसे तेरे बारे में फिर
तुझे अपना दिल बताना है मुझको
मोहब्बत है तू मेरी तुझे चाहा पर 
जमाने से तुझको छुपाना है मुझको
वफा को मेरी तू कभी मत परखना 
इस आग पर चलकर दिखाना है मुझको
बिछड़कर तू मुझसे रहेगा तू ..

युवाओं की धड़कनों को छूने वाली थी लाइनें
अमन अफरोज की सारी शायरी और शेर युवा दिल की धड़कन को छूने वाली थी. उनके हर एक अल्फाज जैसे लोगों के अपने अहसास को बयां कर रही थी. उन्होंने के बाद एक कई शेर और शेयरी पेश की.

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मैं अपने वक्त को बर्बाद करने वाली हूं
ऐ संगे दिल मैं तुझे याद करने वाली हूं
किसी से कहती नहीं अपनी दास्तां ए गम 
मैं बस खुदा से यही फरियाद करने वाली हूं
मैं जानती हूं कफस की घुटन के बारे में 
तो मैं परिंदों को आजाद करने वाली हूं
और ये हर नौजवान जो बागी है...

जुनैद तीसरी बार साहित्य आजतक के मुशयरे में कर रहे थे शिरकत
दूसरे शायर के तौर पर जुनैद कादरी मंच पर पहुंचे. आते के साथ उन्होंने साहित्य आजतक के उस दौर के बारे में बताया जब वो खुद दर्शक बनकर यहां आते थे. उन्होंने कहा कि जब हम कॉलेज में होते थे तो इस कार्यक्रम में आते थे. इस बार यह तीसरा मौका है जब मैं शायर के तौर पर इस कार्यक्रम में शिरकत कर रहा हूं. उन्होंने एक मतले के साथ अपना पहला शेर पेश किया. 


तेरा हमनाम मिल गया कोई, हमें पैगाम मिल गया कोई 
हुआ है और कुछ मालूम हमको, सफर में शाम मिल गया कोई

बुझाओ आग जाकर पानियों से, हमें भी काम मिल गया कोई
बरस के बाद यूं रोना हुआ है, ये मौसम आज क्यों ऐसा हुआ है
अब हम जाने लगे हैं जान छोड़ो, हमारे साथ तो धोखा हुआ है
उसे तो पास होना चाहिए था, न जाने क्यों वो रूठा हुआ है
हमी पर लग गया पहरा हमारा, हमें मिलता कहां रास्ता हमारा...

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बेबसी बयां करते दिखे जुनैद
जुनैद की शायरी और शेर भी इश्क और मुहब्बत के ताने-बाने को बुनता हुआ, दिलों से चुहलबाजी करने वाला निकला. उनकी शायरी प्यार में लगी आग को बुझाने की बात करती दिखी. आगे भी उन्होंने जो पेश किया, वो भी बेबसी का आलम ही बयां कर रहा था. 

दिखाई दे रही सब हिमाकत, नहीं क्यों दिख रहा चेहरा हमारा

इधर आकर बताओ बात क्या है, वहां पर बस नहीं चलता हमारा
अभी मायूस है, पर साल पहले खिला रहता था हर पुर्जा हमारा 
खुदा से अब शिकायत कर रहा हूं, जहां में कोई तो होता हमारा

'जब परिंदों की सुनी फरियाद मैंने...'
जुनैद के बाद सोनिया रुह मंच पर आईं. उन्होंने भी एक मतले के साथ अपनी शायरी को पेश किया. उनकी जुबां पर भी वहीं बेबसी दिखाई दी, जो जुनैद और अफरोज की शेर और शायरी में था. 

चीज एक अनमोल नादानी में खोल
रूह मैंने तन की निगरानी में खोल
एतबार ए यार ने दी है जुदाई, मैंने दीनाई इनके निगरानी में खोल
जब परिंदों की सुनी फरियाद मैंने देखा फिर एक कैद में सैय्याद मैंने
रिश्ते सारे कर दिये बर्बाद मैंने, देखी ढाढस में छुपी जब दाद मैंने

'लौट आया तेरी गलियों का नजारा करके...'
इन सबके बाद मंच पर आदर्श दुबे पहुंचे. उन्होंने भी प्यार में मारे-मारे फिरने वाले आशिक की आशिकी को शेर बनाकर पेश किया. उन्होंने बताया कि कैसे कोई हसरत के साथ महबूब की गलियों में जाता है और बिना दीदार के लौट आता है.    

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एक बिगड़ी हुई सूरत को भी प्यारा करके, तूने चाहा भी तो जुगनू को सितारा करके 
घर से निकला था मैं दीदार को तेरे, लेकिन लौट आया तेरी गलियों का नजारा करके

तुम्हारे साथ तो सारा जमाना होता है, मुझे अकेले ही आंसू बहाना होता है
मुझे तो भागके बस भी पकड़नी होती है, तुम्हें तो कार का गियर लगाना होता है

सबकी निगाह मुझपे है, मेरी बहाव पर
बैठा दिया गया हूं मैं कागज की नाव पर
दुनिया की बात और है, लेकिन तुम्हारी और
तुम भी नमक छिड़कने लगे मेरे घाव पर 

अच्छा हुआ कि तुम भी जमाने से जा मिले
 कहने ही वाला था मैं जमाना खराब है...

यहां भी सिर्फ इश्क और आशिकी दिखी
डॉ. सतीश दुबे सत्यार्थी ने भी उस बदनसीब महबूबा की प्रेम कहानी को अपने शब्दों की चासनी में लपेट कर शेर बना दिया. जिसमें  उसका आशिक उसे अपने जैसा दूसरा नहीं मिलने की बात कहता दिखा. उनकी सारी शायरी और शेर कमाल के रहे. दर्शकों ने जमकर तालियां बजाई.  

तुझको तेरे नसीब का क्या-क्या नहीं मिला
फिर भी तुझे गिला कि ज्यादा नहीं मिला
माना गिला नहीं तुझे जो भी मिला मगर
आंखें बता रही है कि मुझसा नहीं मिला 

कहते कुछ हैं कुछ करते हैं, आप कहां खोए रहते हैं 
अपनी ठोकर में रखता हूं, आप जिसे दुनिया कहते हैं
वो लोग बड़े होते हैं जो छोटों को रास्ता देते हैं
दिल तुम्हारा तोड़ सकती है कभी भी, लड़कियों से कम नहीं है जिंदगी भी
इश्क भी ठुकरा दिया हमारा और फिर तोड़ दी हमसे दोस्ती भी 

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सपना मूलचंदानी मंच से बदल दिया मुशायरे का मोड़
सपना मूलचंदानी खुद से मुहब्बत जताने की बात कहती नजर आईं. उनके शेर और मतले इबादत में दिल लागने की बात कर रहे थे. प्यार की उम्मीद में लड़ाईयां और शिकायतों का जो दौर होता है. उसे सपना ने बखूबी शब्दों पिरोया. 

अब दोगुनी मुहब्बत खुद से जता रहे हैं, बिन तेरे जीने की हम आदत बना रहे हैं
हम इस कदर इबादत में दिल लगा रहे हैं, खाली जगह मुहब्बत की भरते जा रहे हैं

बस एक दिन मुहब्बत से बात क्या की उसने, हम हैं कि रोज खुद को पागल बना रहे हैं
अपनी शिकायतों से झगड़ों से बरहमी से, तुझसे हमें मुहब्बत है ये बता रहे हैं
क्या सच में हम मुहब्बत करने लगे हैं तुझसे, क्यों ख्वाब तेरे हमको दिन रात आ रहे हैं
अब खर्च हो रहे हैं, इस इंतजार में हम मुश्किल से तुझको तेरी खातिर बचा रहे हैं

जब आशिक के नाम नया इनाम निकल आया... 
आशु मिश्रा की शायरी और शेर भी इश्क और प्यार में डूबे दिखे. उन्होंने प्यार और मुहब्बत के बीच अपने दूसरे काम भी जारी रखने की हिदायतें दी. उन्होंने आशिकों के नाम इनाम रखे जाने और इल्जाम लगाने की बात को भी बखूबी अपने शेर के सहारे पेश किया. 

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इशारा और भी एक ओर से आया हुआ है, मगर दिल ने मुहब्बत का नमक खाया हुआ है
अव्वली इश्क के अहसास भी तारी रखे और इस बीच नए काम भी जारी रखें

मैंने दिल रख लिया है, ये भी कोई कम तो नहीं, दूसरा ढूंढ लें जो बात तुम्हारी रखें
क्या खबर फिर कोई इल्जाम निकल आया हो, मेरे सिर पर नया इनाम निकल आया हो
इश्क मुमकिन है कोई खेल हो आशु मिश्रा, उसकी पर्ची में तेरा नाम निकल आया हो 

आप जिस चीज को कहते हैं कि बेहोशी है, वो दिमागों में जरा देर की खामोशी है
सूखते पेड़ से पंछी का जुदा हो जाना, बुतपरस्ती नहीं, एहसान फरामोशी है

चिराग शर्मा के शेर से खत्म हुई महफिल
मुशायरे का समापन चिराग शर्मा की शायरी से हुई. चिराग ने बताया कि एक दिन में यह दूसरा मौका है जब वह साहित्य आजतक के मंच से अपनी शायरी सुनाने जा रहे हैं. उन्होंने कहा इसलिए मुझे कुर्ता बदलने का समय नहीं मिला, लेकिन मैंने शेर बदल लिये हैं.

तितली से दोस्ती न गुलाबों का शौक है, मेरी तरह उसे भी किताबों का शौक है
हम आशिके गजल हैं, तो मगरूर क्यों न हो, आखिर ये शौक भी तो नवाबों का शौक है

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हमारा इश्क भी याराने की कगार पर था
 जब उसने प्यार कहा था तो जोर यार पे था

करें फरियाद क्या उस शख्स से आजाद करने की
जो आजादी नहीं देता हमें फरियाद करने की.

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