Sahitya Aajtak 2024: साहित्य आजतक का मंच एक बार फिर सज गया है. 22 नवंबर से 24 नवंबर तक यानी पूरे तीन दिनों के लिए दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में साहित्य का मेला लग हुआ है. साहित्य आजतक 2024(Sahitya Aajtak 2024) के दूसरे दिन 'हिंदू सभ्यता: पहचान और प्रतीक का सवाल' सेशन में लेखक पवन कुमार वर्मा, राहुल देव और अक्षय मुकुल ने हिस्सा लिया और सार्थक चर्चा की.
हिंदू सभ्यता को लेकर क्यों उठा पहचान और प्रतीक का सवाल
हिंदू सभ्यता को लेकर पहचान और प्रतीक का सवाल क्यों उठा इसपर पवन कुमार वर्मा कहते हैं कि हमारे पिछले 5 हजार साल के इतिहास में मौलिक सोच, उपलब्धियों, परंपराओं पर उचित अध्ययन नहीं किया गया. हिंदू सभ्यता बहुत पुरातन सभ्यता है, जिसके बारे में हमारे स्कूलों और विश्वविद्यालयों में जो सिखाना चाहिए, वह नहीं सिखाया गया. हमें हिंदू सभ्यता में जो बोध है, ज्ञान है, ऐसी चीजें हैं जो गौरवान्वित करती हैं, उसे भी समझने की जरूरी है. यह नहीं हो रहा है इसलिए हिंदू प्रतीक और पहचान का सवाल उठा.
हिंदू सभ्यता की जगह भारतीय सभ्यता क्यों नहीं?
वहीं, लेखक राहुल देव कहते हैं कि लोग हिंदू सभ्यता कि जगह भारतीय सभ्यता क्यों नहीं कहते हैं. भारत तो हिंदू से पहले का शब्द है. हिंदू शब्द बहुत बाद में आया है. भारत और भारतीय को हिंदु नाम कहने की जरूरत क्या है. यह तो भगौलिक संज्ञा है. पुरातन धार्मिक ग्रंथों में भी हिंदू शब्द जिक्र नहीं है. भारत का जरूर है. वहीं, वेदों, उपनिषदों में सनातन नाम का जिक्र है.
राहुल देव आगे कहते हैं कि सनातन धर्म का अर्थ तो सत्य , अहिंसा, शांति ,दया करुणा से है. लेकिन, सनातन धर्म का खूब दुरुपयोग हो रहा है. हम इन चीजों से दूर हो रहे हैं. सनातन सिर्फ भारत का कैसे हो सकता है. यह सबका है. इसको एक नाम देने की जरूरत क्या है. हां इसे वैदिक नाम जरूर दिया जा सकता है. क्यों हमारे धर्म में जो कुछ भी आया वह वेदों से भी आया.
इसपर पवन कुमार वर्मा कहते हैं इसे वैदिक सभ्यता या धर्म कह सकते हैं, इसमें गलत नहीं है. लेकिन इसे क्या नाम देना चाहिए से ज्यादा जरूरी है कि हम समझे जिसे आप भारतीय सभ्यता या सनातन धर्म कहना चाह रहे हैं उसका मूल सिद्धांत क्या है. इसको समझना जरूरी है. इस चीज का उल्लेख हमारे किताबों में आम जीवन में, स्कूलों में तो होता ही नहीं है. जब हम अपने विराट विरासत को समझते नहीं है तो सनातन धर्म के बारे में क्या समझेंगे. गे. ऐसे में हिंदू धर्म के नए ठेकेदार इसे गलत दिशा में ले जा रहे हैं. कमजोरों और स्त्रियों पर पर पाबंदिया और अन्याय हिंदू सभ्यता नहीं है. हमें फिर से उस संकीर्ण सोच में नहीं चाहिए.
गीता प्रेस का योगदान और उसकी आलोचनाएं
वहीं, गीता प्रेस और मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया के लेखक अक्षय मुकुल गीता प्रेस पर बात करते हुए कहते हैं कि गीता प्रेस रामचरितमानस, श्रीमद् भागवत गीता समेत कई धार्मिक पुस्तकों को आम हिंदू जनमानस तक पहुंचा रही है ये अच्छी बात है और जरूरी भी है. लेकिन, समाज के एक तबके के मंदिर प्रवेश के खिलाफ है. इसके चलते गीता प्रेस का गांधी जी के साथ जो रिश्ता खराब हुआ था फिर कभी नहीं सुधरा. सती प्रथा और शारदा एक्ट जिसमें लड़कियों के उम्र की सीमा बढ़ाई गई थी, उसपर भी उनकी राय अलग थी, जो आज जनमानस को नहीं स्वीकार होगी. गीता प्रेस ने धार्मिक परंपराओं और संस्कृति को लोगों तक पहुंचाने का काम किया लेकिन जो उनकी संकीर्ण सोच है उसपर भी बात करने और आलोचना की जरूरत है.
इसी बात को आगे बढ़ाते हुए लेखक राहुल देव कहते हैं मुझे नहीं पता कि गीता प्रेस नहीं होता तो शास्त्रों की कितनी जानकारी मुझे हो पाती. उन्होंने कई अच्छे-अच्छे धार्मिक ग्रंथों का प्रकाशन किया, लेकिन अपनी दृष्टि को एक निश्चित सीमा के अंदर रखकर ही काम किया. धर्म और परंपरा की युगानुकुल व्याख्या होनी चाहिए. गीता प्रेस अपने काम को समकालीन मानस के अनुसार देख कर काम करता तो बेहतर होता. हालांकि, नहीं किया, फिर भी उन्होंने जो अच्छी चीजें की उसकी उपयोगिता कम नहीं हो जाती है.
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