साहित्य आजतक 2024 के मंच पर 'आरएसएस के 100 साल' सत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 वर्षों की यात्रा पर बात की गई. इसी के साथ आरएसएस की विचारधारा और भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को समेटते हुए विमर्श हुआ. इस सत्र में वरिष्ठ पत्रकार और 'संगम शरणं गच्छामि' के लेखक विजय त्रिवेदी, पत्रकार एवं हिंदू राष्ट्र और द क्राउन प्रिंस, द ग्लैडिएटर एंड द होप जैसी चर्चित पुस्तकों के लेखक आशुतोष और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता व राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी के साथ कांग्रेस प्रवक्ता अभय दुबे चर्चा में शामिल हुए.
इस सत्र का संचालन अंजना ओम कश्यप ने किया. कार्यक्रम की शुरुआत में सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि 'संघ के प्रचारकों में दो प्रचारक प्रधानमंत्री बने. भारत जिस ऊंचाई पर पहुंचा, उसमें सबका योगदान है, लेकिन उस ऊंचाई को स्वाभिमान देने का काम भी हुआ है.
वहीं कांग्रेस नेता अभय दुबे ने पलटवार करते हुए कहा कि 1925 में जन्मा ये संगठन आजादी की लड़ाई के लिए काम नहीं कर रहा था. संगठन ने बरतानिया हुकूमत के खिलाफ कितनी लड़ाई लड़ी. वीर सावरकर कभी आरएसएस के समर्थक नहीं रहे. आपकी संस्था के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं. यहां एक आदमी 1600 करोड़ रुपये रोज कमाता है, लेकिन यहां किसान की आमदनी नहीं बढ़ रही है. सरकार ने अग्निवीर योजना शुरू की, इस प्रस्ताव के बारे में सुनकर सेना भी चौंक गई थी. भाजपा सरकार धन्नासेठ दोस्तों को 1600 करोड़ रुपये रोज कमवाती है.
इस दौरान विश्लेषक आशुतोष ने संघ के बारे में कहा कि एक संस्था जिसका जन्म सिर्फ नफरत की बुनियाद पर हुआ, मैं डंके की चोट पर कहता हूं. जो संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नाम पर शुरू हुई थी, वो राष्ट्रीय कतई नहीं है, इसमें हिंदुस्तान के ईसाइयों के लिए जगह नहीं है, मुस्लिमों के लिए जगह नहीं है, दलितों पिछड़ों के लिए भी जगह नहीं है. इससे पता चलता है कि दो वर्ग काम कर रहे हैं. यहां 80 प्रतिशत हिंदू आबादी है, लेकिन मुसलमानों का डर दिखाया जाता है.
आशुतोष ने कहा कि इस देश के अंदर अगर 2014 में भाजपा की सरकार बनी है तो लोकतंत्र के रास्ते से बनी है. इस देश की आजादी में संघ के किसी भी व्यक्ति ने योगदान नहीं दिया. संघ का एक भी व्यक्ति जेल नहीं गया. इसके जवाब में सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि सरदार पटेल, गांधी जी जैसे नेताओं ने कहा था कि संघ का सपोर्ट लेना चाहिए. वहीं कांग्रेस नेता अभय दुबे ने कहा कि आज संघ के लिए आज स्वतंत्रता सेनानियों को वक्तव्यों का सहारा लेना पड़ रहा है.
विजय त्रिवेदी ने कहा कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. संघ को लेकर तीन बार प्रतिबंध लगाए गए. तीनों बार कांग्रेस की सरकार थी. इसके बाद सरकार ने उन आरोपों को साबित किए बिना प्रतिबंध को वापस लिया. मैंने संघ पर किताब लिखी. इंदिरा गांधी ने वीर सावरकर पर डाक टिकट जारी किया था. संघ और सावरकर का रिश्ता मधुर नहीं रहा है. भाजपा का लोगो राष्ट्र प्रथम है, फिर हिंदू एकता की चिंता क्यों होती है. राष्ट्र में तो मुसलमान भी हैं.
इसके बात सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि आज संघ के 3376 पूर्ण कालिक प्रचारक हैं. आरएसएस और भाजपा के बीच रिश्ते को लेकर सुधांशु ने एक शेर पढ़ा-
'तू ये कहता है रिश्तों की दुहाई देंगे, गौर से देख हर चेहरे में दिखाई देंगे
हम तो महसूस किए जाते हैं खुशबू की तरह, कोई शोर नहीं हैं जो सुनाई देंगे.'
इसके बाद आशुतोष ने संघ को लेकर कहा कि सरदार पटेल ने कहा था कि गांधी की हत्या पर आप लोग मिठाई बांट रहे थे. आशुतोष ने ये भी कहा कि सरकार इतना ही मानती है तो गोलवलकर को भारत रत्न क्यों नहीं देती, जवाब दे.
संसद सत्र से पहले अमेरिका से लगे आरोपों पर भी बात की गई. सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि ऐसे आरोप हर बार लगते हैं. सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि अडानी पर अमेरिका में जो आरोप लगे हैं, वो किन राज्य सरकारों पर पैसा देने का आरोप लगा है, ये सबको पता है. अडानी के अलावा कौन सी सोलर कंपनियां हैं? सभी चाइनीज कंपनियां हैं. वहीं कांग्रेस नेता अभय दुबे ने कहा कि अमेरिका से जो आरोप लगे हैं, वे बेहद गंभीर हैं. स्कैम किया जा रहा है.
वहीं आशुतोष ने कहा कि ईवीएम पर सवाल उठाने वालों को आत्ममंथन करना चाहिए. अगर सबूत है तो सबूत लेकर आएं. वहीं विजय त्रिवेदी ने कहा कि जहां भी चुनाव होते हैं, वहां समझा जाता है कि वहां की सरकार अपने हिसाब से चीजें करती है. चुनाव आयोग को लोगों को भरोसा दिलाना चाहिए. महाराष्ट्र में सरकार बनने को लेकर भी सुधांशु त्रिवेदी ने फैक्ट रखे.
EVM और पुलिस चुनाव जिताती है? इस सवाल पर बीजेपी सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि एक दौर था, आज से 2--25 साल पहले जब चुनाव आयोग नियंत्रित नहीं करता था, जब यूपी बिहार में घनघोर चुनावी हिंसा होती थी. तब हमेशा यही लोग जीतते थे. ये वोटर आईडी कार्ड 1993 में आए. उसके बाद से कांग्रेस को कभी स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है. जब से सीसीटीवी फुटेज आए, तब से स्पष्ट बहुमत की दरकार खत्म हो गई है. अब चुनावी प्रक्रिया ट्रांसपैरेंट है. जब से हाथ में मोबाइल आए हैं. इसलिए हकीकत ये है कि जनता की जागरूकता के आगे आपकी कुटिलता दम तोड़ती जा रही है.
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