Sahitya Aajtak 2024: 'पारो', 'आंधारी' और 'पचपन खंभे...' के पीछे की कहानियां, लेखिकाओं से जानें

Sahitya Aajtak 2024: साहित्य आजतक कार्यक्रम के तीसरे दिन 'आज़ादी के 75 साल- समय के साथ बदलते स्त्री पात्र' सत्र में लेखिकाएं उषा प्रियंवदा और नमिता गोखले ने मंच साझा किया. इस दौरान नमिता गोखले की 'आंधारी', 'पारो: ड्रीम्स ऑफ पैशन एंड थिंग्स टू लीव बिहाइंड' और ऊषा प्रियंवदा की 'पचपन खंभे लाल दीवारें और 'अर्कादिप्त' पर खुलकर चर्चा हुई.

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साहित्य आजतक 2024 के मंच पर लेखिका उषा प्रियंवदा और नमिता गोखले साहित्य आजतक 2024 के मंच पर लेखिका उषा प्रियंवदा और नमिता गोखले

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 24 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 7:10 PM IST

Sahitya AajTak 2024: साहित्य के सितारों की सबसे बड़ी महफिल 'साहित्य आजतक 2024' का आज तीसरा दिन है. आज भी कलाकारों और कला के कद्रदानों ने साहित्य आजतक के कार्यक्रम को रोशन किया.

तीसरे दिन 'आज़ादी के 75 साल- समय के साथ बदलते स्त्री पात्र' सत्र में लेखिकाएं उषा प्रियंवदा और नमिता गोखले ने मंच साझा किया. उषा प्रियंवदा 'पचपन खंभे लाल दीवारें और 'अर्कादिप्त' की लेखिका हैं, वे विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय, मैडिसन में दक्षिण एशियाई अध्ययन की अमेरिकी एमेरिटा प्रोफेसर हैं. वहीं नमिता गोखले, 'पारो: ड्रीम्स ऑफ पैशन एंड थिंग्स टू लीव बिहाइंड' की लेखिका हैं और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हैं.

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'पचपन खंभे लाल दीवारें' और 'अर्कादिप्त' की नायिका के बारे में

उषा प्रियंवदा ने कहा, 'जब यह किताब लिखी थी तब मैं अनजान और नादान सी स्री थी, मुझे नहीं पता यह विचार कैसे आया. मगर मुझे लगता था कि स्री को ऊपर उठना है. वह आजादी के बाद का दौरा था. लोग देश के लिए कुछ करना चाहते थे. अकसर आप मेरी नायिकाओं में देखेंगे कि वे जीवन चला रहा, वो स्वतंत्र रूप से अपना जीवन चला जा रहा है, लेकिन वो स्त्री अपना स्त्रीत्व तब पहचानती है जब उनके जीवन में प्यार आता है. मेरी किसी भी पुस्तक में निराशावाद नही हैं, क्योंकि हर पुस्तक स्ट्रगल की कहानी है जिसमें स्त्रियां अपने को पहचानना चाहती हैं.' जब पचपन खंभे लिखी तब मैं लेडी श्री राम कॉलेज में इंग्लिश पढ़ाती थी. तब वहां कोई बस या टैक्सी नहीं जाती थी. ऑटो वाला मूलचंद पर ऊतार देता था और वहां से पैदल जाते थे.

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'पारों' के बारे में

नमिता गोखले ने कहा कि जब मैंने 'पारो: ड्रीम्स ऑफ पैशन एंड थिंग्स टू लीव बिहाइंड' किताब लिख रही थी तो मेरे पापा ने कुछ लाइनें पढ़ीं. लेकिन जब किताब आई तो मेरे पिता शौक रह गए. उस वक्त मेरी उम्र 26 साल थी और जिस कॉलेज में मैं पढ़ रही थी वहां से मुझे निकाल दिया था. मैं काफी समय से एक किताब लिखने की सोच रही थी, तब मैंने इसे लिखना शुरू किया और 6 महीने में खत्म कर दिया. जब किताब आई तो बहुत ज्यादा बातें सुनाई, यहां तक कि टीचर भी मेरे बच्चों से कहते थे कि तुम्हारी मां कैसे किताब लिखती है. हालांकि 40 साल बाद इसे विदेशों में ज्यादा तव्वजों मिली.

उन्होंने कहा कि मेरे लेखन की स्त्रियां कुमावनी स्त्री से प्रेरित होती हैं (क्योंकि नमिता गोखले नैनिताल में पली-बढ़ी हैं.) उनका कहना है कि पुरुषों के मुकाबले कुमावनी स्त्रियां ज्यादा मेहनती होती हैं. बचपन से जिन स्त्रियों से मैं मिली मेरी कहानी की नायिकाएं वहीं से प्रेरित होती हैं.

'आंधारी'  को लिखने की प्रेरणा कैसे मिली?

'आंधारी' कोविड महामारी की जमीन विस्तार देती है. नमिता गोखले का अधिकांश लेखन संयुक्त परिवारों, रिश्तों में सहकार बचाए रखने की कवायद और खंडित स्वप्नों को तटस्थता से देखने की पीड़ा से जन्म लेता है. साहित्य आजतक के मंच पर कोविड के दौरान लिखी गई इस किताब के बारे में उन्होंने बताया कि अचानक से मुझे ख्याल आया कि एक किताब लिखनी है जिसका शीर्षक 'ब्लाइंड मेट्रिया' जिसमें एक बूढ़ी लेडी है, उसकी नजर कमजोर है और वह तीसरी मंजिल पर रहती है. मैं कोविड के दौरान रोज एक-एक चैप्टर लिखती थी, लिखकर अपने एडिटर को भेज देती थी. ट्रांसलेशन से बात की कि इस किताब का क्या नाम रखा जाएगा, तब एक दिन उनका फोन आया और उन्होंने कहा कि इसका नाम 'आंधारी' क्यों न रखें. इसमें गांधारी के भी एकोज आ गए. 

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