राहुल देव ने कहा कि वैचारिक अतिवादिता, असहिष्णुता और अश्पृश्यता भी रही है. ज्ञान की विधाओं में एकाधिकार हो गया. हमारे जैसों को हाशिये पर रख दिया गया था. अशोक वाजपेयी ने कहा कि मैं भी इस अतिवाद का शिकार रहा हूं. ये अब उतार पर है. उतार पर होने के बावजूद इसकी प्रतिक्रिया भी अतिवादी है. इस समय ये अतिवाद है कि हम हम हैं. वे वे हैं. इसे साहित्य को खत्म करना होगा. इस द्वैत को ध्वस्त करना साहित्य का काम है.
गोर्की की मां की तुलना में हिंदी में कोई किताब लिखी ही नहीं गईः अशोक
अशोक वाजपेयी ने कहा कि गोर्की की मां की तुलना में हिंदी में कोई ऐसी किताब नहीं लिखी गई. यह रूस की रणनीति थी कि वे अपनी विचारधारा को आपकी भाषा में कम कीमत में आपके सामने लेकर आए. मैंने भी उस पूर्वाग्रह में अपनी पत्रिका में वाम विचारधारा और वामविरोधी विचारधारा दोनों को जगह दी. हमने सभी साहित्य को जगह दी. ऐसी पत्रिकाएं हुई, आयोजन हुए और लेखक हुए जो हर तरह के साहित्य को पेश करते रहे. या सिर्फ एक ही विचारधारा को आगे बढ़ाती रही.
हम जैक एंड जिल और डैफोडिल क्यों पढ़ें: राहुल देव
इसमें राजनीतिक हमला भी हुआ. हम इंग्लैंड के मौसम क्यों पढ़े. हम डैफोडिल क्यों पढ़े. हम जैक एंड जिल क्यों पढ़े. रूस और चीन के साथ-साथ अंग्रेजी का भी हमला हुआ. दुनिया में श्रेष्ठ साहित्य भी रचा गया है. हमें उसे पढ़ना चाहिए. कोई साहित्य के लिए मैं कोई बाड़ बनाने का पक्षधर नहीं हूं. साहित्य सब जगह अच्छ होता है.
साहित्य अब बदल गया. पहले हम सिर्फ अंग्रेजी साहित्य पर फोकस्ड थे. शैली, कीट्स आदि. लेकिन धीरे-धीरे हमने लैटिन अमेरिका, अफ्रीकी साहित्य से भी जुड़े. राजनीति और विचारधारा ये समाज के हिस्से हैं. साहित्य भी हिस्सा है. इनका आपस में संबंध है. साहित्य अपनी जगह बनाए रखता है. क्योंकि अच्छा साहित्य ही टिकता है. साहित्य स्वंय राजनीति है. साहित्य स्वंय नागरिकता है. उसे किसी रजिस्टर में नाम लिखने की जरूरत नहीं है. भारतीय राजनीति का पहला चरण छोड़ दे. तो बाकी राजनीतिक तंत्र ने कभी साहित्य और लोक कलाओं को कभी महत्व नहीं दिया. साहित्य स्वंय एक संस्था है. इसमें जूतमपैजार होती है. झगड़े होते हैं. मुझपर भी हुए हैं ऐसे हमले.
अंग्रेजी खत्म कर देगी देश की सारी भाषाएंः राहुल देव
क्या अंग्रेजी का विरोध आपको संघी न घोषित कर दे. इस सवाल के जवाब में राहुल देव ने कहा कि ये प्रभु (प्रभु और बौद्धिक) वर्ग को जब तक समझ नहीं आएगा कि जब तक वो बंदी बने रहेंगे अंग्रेजी के, तब तक बदलाव नहीं होगा. हमारा भाषिक, सांस्कृतिक विकास कब होगा. 1700 तक भारत में दुनिया का एक चौथाई धन रखता था. लेकिन अंग्रेजों के जाने बाद तक उन्होंने हमें आधा प्रतिशत पर छोड़ा है. हिंदी पूरे देश की मातृभाषा नहीं है. सिर्फ हिंदी मीडियम में पढ़ने से देश सोने की चिड़िया नहीं बनेगी. इजरायल में 40 लाख आबादी है. हमारे पास 130 करोड़. लेकिन हमसे ज्यादा नोबेल पुरस्कार मिले हैं उनको. क्योंकि उन्होंने 2000 पुरानी अपनी हिब्रू भाषा को विकसित किया.
हिंदी वाले आपस में मिलते हैं तो गलत अंग्रेजी में बात करते हैंः अशोक
इस समय भारत की जो साक्षरता है वो अंग्रेजों से ज्यादा है. अंग्रेजो ने हमें अच्छी चीजें दी. लेकिन उसने हमें एक बौद्धिक गुलामी दी. बंगाली, मराठी और पंजाबी अपनी भाषा में बात करते हैं. लेकिन, दो हिंदी भाषी मिलेंगे तो गलत अंग्रेजी में बात करेंगे. असम में माएं अपने लेखकों को पहचानवती हैं. सालाना कार्यक्रम में अगर ये नहीं हुआ तो बच्चे का संस्कार पूरा नहीं होता. मराठी में भी ऐसा होता है. हमने दो किमी की दूरी ढाई घंटे में पूरी की. क्योंकि एक दलित मराठी लेखक नारायण सुर्वे वहां की संस्था का अध्यक्ष बनाया जा रहा था. आज हजारों लोगों ने मेरे पैर इसलिए पड़े क्योंकि मैं कवि हूं.
विश्व हिंदी सम्मेलन से अच्छा होता मराठी साहित्य सम्मेलनः राहुल
मराठी समाज सालाना साहित्य सम्मेलन कराता है, जो विश्व हिंदी सम्मेलन से कई गुना बड़ा होता है. ये समाज की बात है लेकिन हमारे हिंदी समाज में ये है ही नहीं. हिंदी के समाज में दयनीयता है. गरीब है आत्मा से ही. अंग्रेजी का सम्मोहन देश की सभी भाषाओं को खत्म कर देगी. एक दो पीढ़ियों के बात भारत अपने सारे काम अंग्रेजी में करेगा.
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