Sahitya Aajtak 2025: शब्द सुरों के महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2025' का रविवार को दूसरा दिन है. यह लखनऊ के गोमती नगर के अंबेडकर मेमोरियल पार्क में चल रहा है. इसमें 'हमारी संस्कृति और लोक संगीत' पर लोकप्रिय और वरिष्ठ लोकगायिका विमल पंत ने कई गीत सुनाए और लोकगीत के महत्व के बारे में बताया. विमल पंत ने गीत सुनाया, 'जन्म लियो रघुरइया...'.
आजतक के मंच से उन्होंने बताया कि मैंने कई लोकगीत खुद लिखे हैं, इसकी धुन भी बनाई है. मेरा रुझान हमेशा लोकगीतों की तरफ ही रहा है. विमल पंत ने गजल और लोकगीत में फर्क बताया. उन्होंने कहा कि विदेशों में भी लोग लोकगीत सुनते हैं. उन्होंने कई लोकगीत सुनाए. आजतक के मंच से उनकी किताब 'अरी अरी कारी कोयलिया' का विमोचन भी किया गया.
विमल पंत ने बताया कि बचपन से ही हमारा परिवार संगीत में रूचि रखता आ रहा है. मेरे पापा कहा करते थे कि बेटी कहीं मर रही होगी, लेकिन कोई कह देगा कि वहां संगीत चल रहा है तो वह जिंदा हो जाएगी. विमल पंत ने होली पर भी लोकगीत सुनाया. जिसके बोल थे, 'राजा दशरथ द्वार...'. उन्होंने एक नायिका का दर्द अपने लोकगीत के माध्यम से बयां किया. नायिका का पति परदेश चला गया है और पत्नी उदास है. इस पर विमल पंत ने सुनाया, 'ए धना...'
लोकप्रिय और वरिष्ठ लोकगायिका विमल पंत हिंदी के अलावा अवधी, ब्रज, कुमायुंनी आदि बोलियों और भाषाओं की प्रभावी आवाज हैं. लोकगीतों पर आधारित आपकी पुस्तक 'अरी अरी कारी कोयलिया' में पंत ने विस्मृत हो रही लोकगायिकी को संग्रहित करने की कोशिश की है. पंत की सुमधुर आवाज और शास्त्रीय गायिकी से युवा लोक गायक और गायिकाएं बहुत कुछ सीख सकते हैं. कोरोना काल के दौरान जब पूरा देश हताश और निराश था, तब उन्होंने अपने गाए गीतों से देशवासियों को हौसला बढ़ाया.
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