हर साल की तरह एक बार फिर शब्द-सुरों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में शुरू हो चुका है. 'साहित्य आजतक' देश में भारतीय भाषा में आयोजित होने वाले किसी भी साहित्यिक मेले से न केवल बड़ा है, बल्कि हर साल अपने स्वरूप में और विराट होता जा रहा है. 3 दिन तक चलने वाले इस शब्द-सुरों के इस कार्यक्रम में कई दिग्गज शिरकत करेंगे. यहां अलग- अलग मंचों पर किताबों की बातें होंगी, फिल्मों की महफिल भी सजेगी, सियासी सवाल, जवाब होंगे और तरानों के तार भी छिड़ेंगे.
अब इसी कार्यक्रम के सेशन 'प्रकाशक संवाद: लेखक से कितने दूर, कितने पास-2' में नेशनल बुक ट्रस्ट के डायरेक्टर, युवराज मलिक के अलावा पेंगुइन पब्लिशर- वैशाली माथुर, वेस्टलैंड बुक्स पब्लिशर- मीनाक्षी ठाकुर और प्रभात प्रकाशन के डायरेक्टर पीयूष कुमार पहुंचे.
'ज्ञान परंपरा से विश्व गुरु बना है भारत'
यहां सेनाधिकारी से वैज्ञानिक और फिर प्रकाशक बने नेशनल बुक ट्रस्ट के डायरेक्टर युवराज मलिक ने कहा- सबसे सफल लोगों में एक बात कॉमन होगी वह है किताबें. या तो वे खूब पढ़ते होंगे या लिखते होंगे. मैं जब भी जो भी रहा, किताबों से जुड़ा रहा. एक बार अगर आप किताबी दुनिया में गए तो वापस नहीं आ सकते . प्रकाशन, लेखक और रीडर को मिलाने का काम पब्लिशर करता है. तीनों की अपनी इंपोर्टेंस है.
उन्होंने आगे कहा- शस्त्र के साथ शास्त्र जरूरी है. भारत विश्व गुरु शस्त्र से नहीं बल्कि ज्ञान परंपरा से बना है. किताब की दुनिया को भारत से अलग किया तो ज्ञान को अलग कर देंगे. हम 55 भाषाओं में किताबें छापते हैं. इतनी लेयर में मेनुस्क्रिप्ट की जांच होती है कि अच्छा खासा समय लगता है.
'पढ़ने वाले कम और लिखने वाले ज्यादा हैं'
इसके अलावा पेंगुइन की पब्लिशर वैशाली माथुर ने कहा- मुझे भाषाओं से प्यार रहा है. पहली बार पेंगुविन में काम किया तो हिंदी में पब्लिशिंग का मौका मिला तो मुझे लगा कि हर अलग- अलग भाषा के साहित्य को बाहर लाने की जरूरत है. इस साल हमले मराठी को भी जोड़ लिया है. मैं इसलिए हर भाषा में टांग अड़ाती हूं. वैशाली ने आगे कहा- मुझे लगता है कि पढ़ने वाले कम और लिखने वाले ज्यादा हैं. हम हर हफ्ते बैठकर हमारे पास आने वाली कहानियों को रिव्यू करते हैं. मुझे लगता है कि लेखक बन जाना इतना आसान नहीं होना चाहिए. अपने काम को प्रोफेश्नल तरीके से पब्लिशर को भेजना जरूरी है. किताब की दुकान में जाकर देखिए कि आपकी किताब को कौनसा पब्लिशर सही तरीके से छाप सकता है. जानना जरूरी है कि आपका लिखा कहां फिट होता है.
लेखनी में दौर कैसे बदला है?
लेखनी में दौर कैसे बदला है? इस सवाल पर वेस्टलैंड बुक्स की पब्लिशर, मीनाक्षी ठाकुर ने कहा- आज से 5 साल पहले ही लोग सोचने लगे थे कि किताबें अब कौन खरीदता है? कोई नहीं पढ़ता. लेकिन हाल में मैंने प्रतिलिपी एप के साथ काम शुरू किया. इसपर 12 भाषाओं में एक दिन में 2.5 करोड़ से ज्यादा लोग फिक्शन, क्राइम, रोमांस , ड्रामा सब पढ़ रहे हैं. इसपर कोई भी लिख सकता है. ऐसे- ऐसे नोवल वहां हैं जिसके रीडर 5 लाख तक हैं. ये एक अनोखा अनुभव है तो इससे पता चला कि किताबों का दौर गया नहीं है बल्कि इसे ई- बुक , ऑडियो और ओटीटी तक ले जाया जा सकता है. एक ही कहानी को कई प्लेटफॉर्म मिल गए हैं. हमें बस पब्लिशिंग का पैटर्न में बदलना होगा.
बतौर प्रकाशक आप लेखक को कैसे चुनते हैं?
प्रभात प्रकाशन के डायरेक्टर पीयूष कुमार से पूछा गया कि बतौर प्रकाशक आप लेखक को कैसे चुनते हैं? इसके जवाब में उन्होंने कहा- रीडरशिप के साथ रायटरशिप भी हर दिन बढ़ रही है. हर दिन 7 से 8 कहानियां आती हैं. हर कहानी को पढ़ पाना मुश्किल होता है. हम शनिवार को बैठकर इन्हें पढ़ते हैं. 50 प्रतिशत भी पढ़ लेने पर समझ आ जाता है कि ये पब्लिश करने लायक है या नहीं. कई लोगों की भाषा शैली बहुत अच्छी होती है लेकिन उन्हें थोड़ी दिशा देने की जरूर है.
उन्होंने कहा- हर भाषा में पब्लिशिंग का गोल्डन फेज है. हिंदी पब्लिशर को तकनीक पर काम करना होगा. मार्केटिंग पर फोकस करना होगा. हमें मल्टिपल ऑथर को एक ही किताब को लिखने का मौका देना होगा.
वहीं अपनी किताब पब्लिश कराने के इच्छुक लोग क्या करें इसके जवाब में पीयूष ने कहा- हमारी वेबसाइट पर इंक्वाइरी फॉर्म है जिसके जरिए फर्स्ट टाइम ऑथर को मौका देते हैं. हम साल में 100 किताबें ऐसी छापते हैं जो फर्स्ट टाइम ऑथर की होती हैं. मोबाइल लिया युवा वर्ग हमारा पाठक है, उन तक कहानियां उनके तरीके से पहुंचानी होंगी और हम ये सब ध्यान रखते हैं. आजादी के बाद पहली बार है जब लोग किताब को बहुत ज्यादा पढ़ रहे हैं. आज कुछ ही देर में बलिंक इट एप से किताब घर पर आ जाती है. चीजें आसान हो गई हैं.
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