करियर और प्रेम में कैसे बिठाएं संतुलन? विकास दिव्यकीर्ति ने ये दिया जवाब

Sahitya Aajtak Stage-2: संस्कृति, कला और हिंदी के सबसे बड़े महोत्सव 'साहित्य आजतक' के आखिरी दिन 'सीखो पथ सफलता का' सेशन के दौरान विकास दिव्यकीर्ति सर ने नए जमाने में साहित्य, किताबों, कहानियों और अपनी म्यूजिक प्ले लिस्ट समेत कई मुद्दों पर बात की. इस सेशन के दौरान जब उनसे पूछा गया कि करियर और प्रेम के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए तो जानिए उन्होंने क्या कहा?

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साहित्य आजतक के मंच पर 'दृष्टि आईएएस' के संस्थापक और प्रबंध निदेशक विकास दिव्यकीर्ति साहित्य आजतक के मंच पर 'दृष्टि आईएएस' के संस्थापक और प्रबंध निदेशक विकास दिव्यकीर्ति

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 26 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 6:43 PM IST

करियर बनाने की उम्र और प्रेम करने की उम्र एक ही होती है. दोनों ही चीजें पूरा फोकस मांगती हैं. कई बार दोनों के बीच में संतुलन बनाना मुश्किल हो जाता है, इसका क्या रास्ता है? युवाओं के अक्सर पूछे जाने वाले इस सवाल का विकास दिव्यकीर्ति ने अपने अंदाज में बड़े सरल शब्दों में जवाब दिया है. पूर्व सिविल सेवक, 'दृष्टि आईएएस' के संस्थापक और प्रबंध निदेशक विकास दिव्यकीर्ति ने 'साहित्य आजतक' के मंच से करियर और प्रेम के बीच संतुलन बनाने को बेखूबी ढंग से समझाया है.

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दरअसल, संस्कृति, कला और हिंदी के सबसे बड़े महोत्सव 'साहित्य आजतक' के आखिरी दिन 'सीखो पथ सफलता का' सेशन के दौरान विकास दिव्यकीर्ति सर ने नए जमाने में साहित्य, किताबों, कहानियों और अपनी म्यूजिक प्ले लिस्ट समेत कई मुद्दों पर बात की. इस सेशन के दौरान जब उनसे पूछा गया कि करियर और प्रेम के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए तो जानिए उन्होंने क्या कहा?

उन्होंने कहा कि मेरी समझ ये सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि करियर बनाने की उम्र और प्रेम करने की उम्र एक ही होती है. दोनों ही चीजें पूरा फोकस मांगती हैं. ऐसे में कैसे संतुलन बनाया जाए, समस्या तो है ही. जब बच्चे दोनों में संतुलन बनाने पर सवाल करते हैं तो मैं एक ही बात कहता हूं कि कुछ दिन प्रेम कर लो. 20-25 दिन प्रेम करने के बाद लगने लगता है कि कुछ और ही कर लेते हैं.

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उन्होंने कहा कि अगर प्रेम उथला है, अगर प्रेम देह का है, अगर प्रेम चेहरे की चमक देखकर हुआ है, अगर प्रेम केवल अदाएं देखकर हुआ है, अगर प्रेम केवल मेकअप के बाद चेहरे से हुआ है तो वो 20-25 दिन से ऊपर नहीं टिकेगा. 20-25 दिन में असलियत सामने आ ही जाती है, दो लोग बात करते हैं तो उनका स्तर आमने-सामने आ जाता है, मेकअप पीछे चला जाता है, हैसियत या औकात सामने आ जाती है. और अधिकांश मामलों में प्रेम का ग्राफ ऊपर से नीचे आ जाता है. जब प्रेम नीचे आ गया और मुक्त हो गए तो मुक्त होकर पढ़ाई कर लो. अगर संयोग से ऐसा प्रेम मिल गया जो मुक्त करता है तो वो आपको पढ़ने से नहीं रोकेगा बल्कि सहायक ही साबित होगा.

दिव्यकीर्ति सर ने आगे कहा कि मैं अक्सर कहता हूं कि जिंदगी एक ही है, मैं उन बातों में बहुत कम विश्वास करता हूं कि जीवन बार-बार मिलने वाला है. इसलिए मैं ये मानकर चलता हूं कि जीवन एक ही है, उसी को जीना है उसी में प्रयोग करना है. अगर प्रयोग का मौका आए तो प्रयोग कर लेना चाहिए, बाद में पछताने से अच्छा है कि हमने प्रयोग किया फेल हो गए, फिर प्रयोग कर लेंगे. कुछ और प्रयोग कर लेंगे लेकिन प्रयोग करने से पीछे हटना कायरों की निशानी है. अच्छे जीवन जीने के लिए आपको प्रयोग करने ही पड़ेंगे इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है.

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नए जमाने में साहित्य का महत्व कम हो गया है या नई पीढ़ी को बदनाम करने की साजिश?
इस पर पहले के जमाने में विश्वविद्यालयों और मट्ठों में मेहदूद था, सोशल मीडिया ने साहित्य को आम आदमी के बीच पहुंचाया. अगर साहित्य आजतक के सेशन में इतनी बड़ी तादाद में नए जमाने के बच्चे हैं तो साहित्य मर नहीं सकता और न ही कम सकता है. साहित्य के तेवल चेंज होते हैं, जो होने भी चाहिए.

किताबों, कला, संगीत के स्तर पर आपको जीवन में किसने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है?
दर्शन, मनोविज्ञान ओशो रजनीश, कार्ल्स मार्क्स, मैक्स वेवेर, शंकराचार्य नागार्जुन आदि को पढ़ा. वहीं उन्होंने बताया कि दिन में तीन-चार सेशन में संगीत सुनता हूं. सबसे पहले पंजाबी के भजन - सतेंद्र सरताज, सिद्धांत मोहन के भजन सुनता हूं, दिन में एक बार गजल जरूर सुनता हूं जिनमें जगजीत सिंह और गुलाम अली को सुनता हूं. मूड खराब हो तो 'अभी तो पार्टी शुरू हुई है...', 'चार बज गए हैं लेकिन पार्टी अभी बाकी है', 'सेटर्डे-सेटर्डे' भी सुनता हूं.

कहानियों में कौन से हिंदी लेखक पसंद हैं?
कृष्ण बलदेव वेद्य की एक कहानी है 'मेरे दुश्मन' और मनु भंडारी की 'यही सच है', राजेंद्र यादव की 'टूटना' कहानी और प्रेमचंद की 'सदगति', 'पूस की रात' ये पढ़ना पसंद हैं. हाल के लेखकों में ज्ञान रंजन को भी पढ़ा है. हालांकि अब तक के सबसे महान कवि कबीर दास और तुलसी दास ही लगते हैं.

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