अदब के शहर लखनऊ में एक अद्वितीय आयोजन का आगाज़ हुआ है - 'साहित्य आजतक लखनऊ', जो साहित्य, कला और मनोरंजन के प्रेमियों के लिए एक सम्मोहक मेला लेकर आया है. यह दो-दिवसीय महोत्सव 15 और 16 फरवरी को गोमती नगर के अंबेडकर मेमोरियल पार्क में आयोजित किया जा रहा है, और इसमें देश-विदेश के प्रसिद्ध साहित्यकार, कलाकार और मनोरंजन जगत के दिग्गज शामिल हो रहे हैं. इस बीच साहित्य जगत की एक बड़ी शख्सियत असगर वजाहत भी आजतक के मंच पर पहुंचे.
असगर वजाहत से आजतक ने 'यहां, वहां, कहां बंटवारा' कार्यक्रम में कई अहम मुद्दों पर चर्चा की, जिसमें यह जानने की कोशिश की गई कि आखिर बंटवारों के बीच वह बदलते हालात को किस तरह से देखते हैं. असगर वजाहत ने दर्जनों किताबें लिखी हैं, और कई बेस्ट सेलर रही हैं - वह पाकिस्तान की व्याख्या कुछ इस तरह करते हैं कि असल में दो पाकिस्तान हैं - एक लोगों का पाकिस्तान और एक सेना का पाकिस्तान. सेना का पाकिस्तान बंटा हुआ है और लोगों का पाकिस्तान जुड़ा हुआ है.
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विविधता का मतलब नहीं होता विभाजन!
असगर वजाहत बताते हैं वह 45 दिन तक पाकिस्तान का दौरा किया और लाहौर भी गए, जहां एक शख्स हिंदुस्तानी बनने का ख्वाब देखता है. असगर वजाहत कहते हैं कि देश की जनता कभी नहीं चाहती कि देश के लोगों को बांटा जाए. बंटवारे में सिर्फ वो लोग होते हैं जो इससे फायदा उठाना चाहते हैं. आमलोग भाईचारे की बातें करते हैं.
असगर वजाहत जिस तरह से पाकिस्तान की व्याख्या करते हैं, इसके इतर वह हिंदुस्तान की विविधता पर कहते हैं कि विविधता का मतलब विभाजन नहीं होता है. विविधता को हर देश स्वीकार करता है. अलग होते हुए दूसरे के लिए जगह बनाना और ये मानना का हमारी तरह दूसरे को भी एग्जिस्ट करने का अधिकार है. विविधता का मतलब होता है कि हम दूसरे आदमी को स्पेस दे रहे हैं, और हम उन्हें स्पेस दे रहे हैं, जो कि भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र भी है. उन्होंने विभाजन को शासकों की मानसिकता करार दिया.
सीमाओं पर क्या हैं असगर वजाहत के विचार?
असगर वजाहत देश की सीमाएं, राज्य की सीमाएं, जाति-धर्म और भौगोलिक सीमाओं पर भी अपने विचार साझा किए. उनका कहना है कि जब दूसरों के अधिकारों की बात आती है, दूसरों पर अपना आधिपत्य जमाने की बात आती है तो वहां स्थिति अलग होती है. अभी मानवता ये कोशिश कर रही है कि सीमाओं को सीमित किया जाए. जैसे कि यूरोपीय यूनियन का कहना है कि उनके देश में कोई सीमाएं नहीं हैं, और वे चाहें तो एक-दूसरे देशों में आ-जा सकते हैं. अच्छे सांसकृतिक मूल्यों वाले समाज में एकता की भावना प्रबल है.
पल्प साहित्य के भी समर्थक हैं असगर वजाहत
असगर वजाहत ने बदलते युवा पीढ़ियों और सोशल मीडिया द्वारा क्रिएट किए जा रहे विभाजन पर कहा कि कभी भी समाज में चीजें एकरूपता में नहीं रहे हैं. उनमें वैरिएशन और डिफरेंस रहे हैं. आज सोशल मीडिया उन डिफरेंसेज को एक परिभाषा दे रहा है. शास्त्री संदेश अगर लोग सुने और फिल्मी गानें न सुनें - ऐसा आदेश नहीं दिया जा सकता है. इसका मतलब ये है कि आप आजादी से काम करें और ऊपर आ सकते हैं. उनका कहना है कि वह पल्प साहित्य के भी समर्थक हैं. पल्प साहित्य, लोकप्रिय साहित्य की एक शैली है. यह सनसनीखेज और भयावह कहानियों के लिए जाना जाता है. इसे पल्प फ़िक्शन भी कहा जाता है.
1962 की राजनीति, और आज के हालात
विकास के दौर और राजनेताओं में बदलाव और राजनीति एक सत्ता का रास्ता बनता जा रहा है, और इन विचारों पर असगर वजाहत ने बताया कि 1962 की बात है जब विपक्ष के नेता राम मनोहर लोहिया अपना बस्ता दबाए हुए अकेले कॉफी हाउस आते थे. वहां पर चित्रकार, लेखक और कोई भी उनसे बात कर सकता था. मतलब की विपक्ष का नेता किसी को भी आसानी से मिल जाते थे.
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असगर वजाहत ने प्रधानमंत्री के बारे में कहा कि हिंदुस्तानी थियेटर ग्रुप नाटक कर रहा था, जो कि एक संस्कृति का एक पुराना नाटक था. नेहरू उस जमाने में प्रधानमंत्री था और उन्हें निमंत्रित किया गया था. बाद में पीएम ऑफिस से फोन आया और फिर नेहरू ने अपने मित्र को लाने की पेशकश की. उस समय नेहरू मिस्र के राष्ट्रपति नासिर को अपने साथ नाटक का लुत्फ उठाने के लिए गए. ऊपर से माहौल बनाना पड़ता है जो नीचे तक जाता है.
आज से तुल्ना किया जाए तो जमीन आसमान का फर्क है. तब सादा जीवन और उच्च विचार होते थे, आज उल्टा हो गया है और संपन्न और तुच्छ-छोटे विचार बन गए हैं. पहले की तुलना में आज हमें जितना आगे बढ़ना था, हम आगे तो दूर लेकिन पीछे जरूर खिसके हैं. इस पर नई पीढ़ी को विचार करने की जरूरत है.
कट्टरपंथ पर क्या बोले असगर वजहात?
कट्टरपंथिता विभाजन के लिए कितनी जिम्मेदार है, इस पर असगर वजाहत कहते हैं कि जो समाज है, लोग हैं वो एक तरह से कच्ची मिट्टी हैं, जिससे आप जो चाहें बना दें. आप घड़ा भी बना सकते हैं, तलवार, ट्रेन और झरना भी बना सकते हैं. आप आतंक भी बना सकते हैं. लोगों को बनाने की राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान और बाद में वो प्रक्रिया समाप्त हो गई धीरे धीरे.
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असगर वजाहत ने आगे कहा कि छोटे शहरों में रिटायरमेंट के बाद लोग अपने छोटे शहर चले जाते थे, लेकिन अब रिटायरमेंट के बाद बड़े शहरों में जाना चाहते हैं. सिविल सोसायटी का आज महत्व खत्म हो गया. समाज को बैलेंस करने का पुराना सिस्टम टूट गया. इससे अराजकता फैली. राजनीति एक कविता के बिना हृदयहीन है. इसका मतलब ये है कि अगर भावना नहीं है राजनीति में तो वो अधूरी है. आज सिर्फ राजनीति हो रही है, लेकिन राजनीति के अंदर संवेदना का अभाव है.
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