साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10 'देशभक्ति' श्रेणी: भगत सिंह, बाग़ी फिरंगी, बिरसा, कारगिल, खुकरी के अलावा और कौन सी पुस्तकें

साल 2022 में 'साहित्य तकः बुक कैफे टॉप 10' पुस्तकों की 'देशभक्ति' शृंखला में सी. एस. वेणु, प्रमोद कपूर, रामचंद्र गुहा, तुहिन.ए सिन्हा, डेनिस किनकेड और कारगिल युद्ध के हीरो कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव के अलावा और किनकी पुस्तकें शामिल- पढ़ें, पूरी सूची और उनकी विशेषताएं

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 साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10 'देशभक्ति' की पुस्तकें साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10 'देशभक्ति' की पुस्तकें

जय प्रकाश पाण्डेय

  • नई दिल्ली,
  • 22 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 4:00 PM IST

भारतीय मीडिया जगत में जब 'पुस्तक' चर्चाओं के लिए जगह छीजती जा रही थी, तब इंडिया टुडे समूह के साहित्य के प्रति समर्पित डिजिटल चैनल 'साहित्य तक' ने हर दिन किताबों के लिए देना शुरू किया. इसके लिए एक खास कार्यक्रम 'बुक कैफे' की शुरुआत की गई... और इसी 'बुक कैफे टॉप 10' की शृंखला में आज 'भाषा-आलोचना' की पुस्तकें.
साल 2021 की जनवरी में शुरू हुए 'बुक कैफे' को दर्शकों का भरपूर प्यार तो मिला ही, भारतीय साहित्य जगत ने भी उसे खूब सराहा. तब हमने कहा था- एक ही जगह बाजार में आई नई किताबों की जानकारी मिल जाए, तो किताबें पढ़ने के शौकीनों के लिए इससे लाजवाब बात क्या हो सकती है? अगर आपको भी है किताबें पढ़ने का शौक, और उनके बारे में है जानने की चाहत, तो आपके लिए सबसे अच्छी जगह है साहित्य तक का 'बुक कैफे'. 
हमारा लक्ष्य इन शब्दों में साफ दिख रहा था- "आखर, जो छपकर हो जाते हैं अमर... जो पहुंचते हैं आपके पास किताबों की शक्ल में...जिन्हें पढ़ आप हमेशा कुछ न कुछ पाते हैं, गुजरते हैं नए भाव लोक, कथा लोक, चिंतन और विचारों के प्रवाह में. पढ़ते हैं, कविता, नज़्म, ग़ज़ल, निबंध, राजनीति, इतिहास, उपन्यास या फिर ज्ञान-विज्ञान... जिनसे पाते हैं जानकारी दुनिया-जहान की और करते हैं छपे आखरों के साथ ही एक यात्रा अपने अंदर की. साहित्य तक के द्वारा 'बुक कैफे' में हम आपकी इसी रुचि में सहायता करने की एक कोशिश कर रहे हैं."
हमें खुशी है कि हमारे इस अभियान में प्रकाशकों, लेखकों, पाठकों, पुस्तक प्रेमियों का बेपनाह प्यार मिला. इसी वजह से हमने शुरू में पुस्तक चर्चा के इस साप्ताहिक क्रम को 'एक दिन, एक किताब' के तहत दैनिक उत्सव में बदल दिया. साल 2021 में ही हमने 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' की शृंखला भी शुरू की. उस साल हमने केवल अनुवाद, कथेतर, कहानी, उपन्यास, कविता श्रेणी में टॉप 10 पुस्तकें चुनी थीं.
साल 2022 में हमें लेखकों, प्रकाशकों और पुस्तक प्रेमियों से हज़ारों की संख्या में पुस्तकें प्राप्त हुईं. पुस्तक प्रेमियों का दबाव अधिक था और हमारे लिए सभी पुस्तकों पर चर्चा मुश्किल थी, इसलिए 2022 की मई में हम 'बुक कैफ़े' की इस कड़ी में 'किताबें मिली' नामक कार्यक्रम जोड़ने के लिए बाध्य हो गए. इस शृंखला में हम कम से कम पाठकों को प्रकाशकों से प्राप्त पुस्तकों की सूचना दे पाते हैं.
आपके प्रिय लेखकों और प्रेरक शख्सियतों से उनके जीवन-कर्म पर आधारित संवाद कार्यक्रम बातें-मुलाकातें और किसी चर्चित कृति पर उसके लेखक से चर्चा का कार्यक्रम 'शब्द-रथी' भी 'बुक कैफे' की ही एक कड़ी का हिस्सा है.
साल 2022 के कुछ ही दिन शेष बचे हैं, तब हम एक बार फिर 'साहित्य तक: बुक कैफे टॉप 10' की चर्चा के साथ उपस्थित हैं. इस साल कुल 17 श्रेणियों में टॉप 10 पुस्तकें चुनी गई हैं. साहित्य तक किसी भी रूप में इन्हें कोई रैंकिंग करार नहीं दे रहा. संभव है कुछ बेहतरीन पुस्तकें हम तक पहुंची ही न हों, या कुछ पुस्तकों की चर्चा रह गई हो. पर 'बुक कैफे' में शामिल अपनी विधा की चुनी हुई ये टॉप 10 पुस्तकें अवश्य हैं. 
पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने की 'साहित्य तक' की कोशिशों के प्रति सहयोग देने के लिए आप सभी का आभार.
साल 2022 साहित्य तक 'बुक कैफे-टॉप 10' देशभक्ति शृंखला की पुस्तकें हैं ये- 
* 'सरदार भगत सिंह', सी. एस. वेणु, पुनर्प्रस्तुति-अनुवाद : राजवंती मान. यह पुस्तक शहीद-ए-आज़म सरदार भगत सिंह पर अब तक की सबसे अधिक सुविचारित, विस्तृत, इंटेंसिव एवं दुर्लभ ऐतिहासिक-राजनीतिक पुस्तक है, जो उनके जीवन, विचारधारा, कार्यप्रणाली, सूझबूझ, वीरता, उन्मत्त देशप्रेम को रेखांकित करती है और इसके साथ ही उनके क्रांति-दर्शन को भी परिभाषित करती है. वेणु जो जेल में सरदार भगत सिंह के सहकैदी थे, ने अनुभवों के आधार पर भगत सिंह की फांसी के बाद 1931 में ही इस पुस्तक को लिखा था. ब्रिटिश सरकार ने प्रकाशित होते ही इसे ज़ब्त कर लिया था. ब्रिटिश संग्रहालय की अवाप्तियों में यह पुस्तक 12 नवम्बर, 1931 को दर्ज की गयी है, यानी जितेंद्र नाथ सान्याल द्वारा लिखित भगत सिंह की पहली ज्ञात जीवनी 'सरदार भगत सिंहः ए सॉर्ट लाइफ स्केच' की जब्ती के सिर्फ बयालीस दिन बाद. ब्रिटिश संग्रहालय में इसके अधिग्रहण की तारीख 30 सितम्बर, 1931 को दर्ज है. सी. एस. वेणु द्वारा अंग्रेजी में लिखित और ज़ब्त 'Sardar Bhagat Singh' एक प्रतिबंधित जीवन वृत्त का हिंदी अनुवाद राजवंती मान ने किया है. प्रकाशक: न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन.
* '1946 Royal Indian Navy Mutiny: Last War of Independence', प्रमोद कपूर. यह पुस्तक स्वतंत्रता की इस आखिरी जंग के सर्वाधिक अनदेखे पहलुओं को सामने लाती है. फरवरी 1946 में रॉयल इंडियन नेवी के 20,000 नाविकों ने विद्रोह किया. 16 से 25 वर्ष के ये युवा आजाद हिंद फौज की वीरता से प्रेरित थे. इनमें भयावह सेवा स्थितियों, भेदभाव और भर्ती की शर्तों के टूटने को लेकर गुस्सा था. इन नाविकों ने तब बगावत की जंग छेड़ दी जब किंग ऑफ HMIS तलवार के कमांडर ने इन्हें कूलियों का बच्चा और जंगलियों की औलाद कहकर गालियां दीं. 48 घंटे से भी कम समय में देखते ही देखते 20,000 लोगों ने 78 जहाजों और 21 तट प्रतिष्ठानों पर कब्जा कर लिया. उन्होंने ब्रिटिश झंडे उखाड़ कर कांग्रेस, मुस्लिम लीग और कम्युनिस्ट पार्टी के झंडे फहरा दिए. अंग्रेज घबरा गए. ब्रिटिश प्रधानमंत्री कार्यालय और वायसराय के बीच हताशा और गुस्से से भरे तार आने-जाने लगे. यह विद्रोह गांधीजी और अरुणा आसफ अली साथ ही सरदार पटेल और पं नेहरू के बीच सार्वजनिक असहमति का कारण बना. यह विद्रोह भारत के स्वतंत्रता संग्राम का वह अंतिम युद्ध था, जिसने सत्ता के हस्तांतरण को तेज किया. प्रकाशक: रोली बुक्स
* 'बाग़ी फिरंगी: भारत की आज़ादी के पश्चिमी योद्धा', रामचंद्र गुहा, यह पुस्तक उन सात, लगभग गुमनाम से लोगों की कहानी है, जिन्होंने अपना देश छोड़ कर एक दूसरे देश यानी भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी. पश्चिम के जिन लोगों ने भारत की आज़ादी की लड़ाई में अपना बड़ा योगदान दिया उनमें एनी बेसेंट, बीजी हॉर्निमैन, मीरा बहन और सैमुअल स्टोक्स जैसे लोग शामिल हैं.  इन लोगों ने पत्रकारिता, समाज सुधार, शिक्षा, ऑर्गेनिक खेती और पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभाई. ये लोग जिन्हें लेखक 'बाग़ी फिरंगी' कहते हैं, आदर्शवाद और बलिदान की भावना से प्रेरित थे और महात्मा गांधी से जुड़े हुए थे, कई उनके अनुयायी थे, तो कई उनके विचारों से मतभेद भी रखते थे. यह जानते हुए कि उन्हें कभी भी गिरफ्तार किया जा सकता है और ज़िंदगीभर भारत में रहना पड़ सकता है, उनमें से हरेक ने अपनी-अपनी इस कर्मभूमि पर ऐसा महत्त्वपूर्ण प्रभाव छोड़ा, जो पीढ़ियां बीत जाने के बाद भी अभी तक कायम है. यह पुस्तक मूल रूप से अंग्रेजी में 'Rebels Against the Raj: Western Fighters for India’s Freedom नाम से  प्रकाशित हुई थी, जिसका हिंदी अनुवाद अभिषेक श्रीवास्तव ने किया है. प्रकाशक: पेंगुइन बुक्स इम्प्रिंट के तहत हिंद पॉकेट बुक्स
* 'भारत माता का वीर पुत्र- बिरसा मुंडा', तुहिन.ए सिन्हा एवं अंकिता वर्मा. यह पुस्तक नायक-महानायक, योद्धा- महायोद्धा के रूप में एक ऐसे व्यक्ति के साहस और बलिदान की गाथा कहती है, जिन्होंने अपने समूह, समुदाय और समाज की भलाई के लिए न केवल अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया बल्कि खुद को भगवान के रूप में भी प्रतिष्ठापित कर दिया. वह बिरसा मुंडा ही थे, जिनके अपने प्रयासों और उपदेशों से उनकी मृत्यु के लगभग 100 वर्षों बाद भी भारतीय आदिवासी अपनी प्रगतिशीलता का स्वप्न देख रहा है. यह पुस्तक बिरसा मुंडा के जीवन के तमाम पहलुओं को कथा के अंदाज में पाठकों के सामने रखती है और बताती है कि मुंडा ने बहुत कम उम्र में  ही यह जान लिया था कि धर्म के नाम पर शोषण महज़ एक छलावा है. उन्होंने बहुत ही कम उम्र में आदिवासियों के हक़ के लिए आवाज़ उठाई. हालांकि उनके अपने ही लोगों ने उनके साथ छल किया और उनकी मृत्यु का कारण बने. पर तब तक मुंडा ने हाशिये पर रह रहे आदिवासी समाज का स्वाभिमान जाग्रत कर चुके थे. अंग्रेजी में The Legend of Birsa Munda नाम से प्रकाशित इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद रचना भोला 'यामिनी' ने किया है.  प्रकाशक: मंजुल प्रकाशन
* 'मेरा रंग दे बसंती चोला', मलविंदर जीत सिंह वड़ैच, क्रांतिवीर भगत सिंह का नाम सुनते ही मां भारती के एक ऐसे वीर सपूत की तसवीर सामने आ जाती है, जो मात्र 23 वर्ष की अल्पायु में ही अपनी मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए. हुतात्मा भगत सिंह ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद की जड़ें हिला दी थीं. उनकी दृढ़ता, देशभक्ति, आत्मार्पण, संकल्पशीलता अनुकरणीय और अद्भुत थी. वे सदा हम भारतीयों को प्रेरित करते रहेंगे. उनका बलिदान, उनके विचार, उनकी ऊर्जा हमारे मन-मस्तिष्क को सदा भारतवर्ष के लिए समर्पित रहने के लिए बल देती रहेगी. भगत सिंह बहुपठित और अध्ययनशील क्रांतिकारी थे. उनकी दूरदर्शिता और तेजस्विता का ही परिणाम था कि लाखों युवा भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त करवाने के लिए स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े. शहीद भगत सिंह के जीवन पर अत्यंत प्रामाणिक एवं पठनीय पुस्तक, जो उनके प्रारंभिक जीवन से लेकर फांसी के फंदे को चूमने तक के संघर्षशील और त्यागमय जीवन की झलक दिखाती है. प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन
* 'राष्ट्रनिर्माताओं की पत्रकारिता', कृपाशंकर चौबे, यह पुस्तक राष्ट्रनिर्माताओं की पत्रकारिता के मर्म और कर्म, पत्रकारिता की गगनचुंबी विरासत और गौरवशाली अतीत से परिचित कराती है. यह पुस्तक बताती है कि पत्रकारिता का स्वरूप गढ़ने में राष्ट्रनिर्माताओं की कितनी अहम विधायी भूमिका रही है. पत्रकारिता तब केवल सूचना ही नहीं बल्कि जन जागरण और सामाजिक जागरण का भी माध्यम थी. लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, महामना मदनमोहन मालवीय, महात्मा गांधी, मौलाना अबुल कलाम आजाद और सुभाषचंद्र बोस ने आजादी का परचम फहराने के लिए अखबार निकाले तो बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर ने सामाजिक सुधार और डॉ राममनोहर लोहिया ने समाजवाद की स्थापना को ध्येय बनाकर पत्र-पत्रिकाएं निकालीं. इस पुस्तक में राष्ट्रनिर्माताओं की पत्रकारिता का उद्देश्य तो प्रकट हुआ ही है, उस कालखंड की परिस्थितियों और प्राथमिकताओं के साथ राष्ट्रनिर्माताओं की भाषा, लेखन शैली, विषय वस्तु के चयन और प्रस्तुति के पीछे के सरोकारों का भी पता चलता है. प्रकाशक: प्रलेक प्रकाशन
 * 'छत्रपति शिवाजी महाराज', डेनिस किनकेड, यह पुस्तक मराठा साम्राज्य के संस्थापक महान् योद्धा और कुशल प्रशासक छत्रपति शिवाजी के बारे में है, जिन्होंने लोगों के मन में मराठा अस्मिता की भावना को जाग्रत् किया. ऐसे समय में जब मुगल साम्राज्य अपनी बुलंदियों को छू रहा था, तब शिवाजी ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने बादशाह औरंगजेब की ताकत को चुनौती देने का साहस दिखाया. उन्होंने अपनी साधारण सी 2,000 सैनिकों वाली सेना को धीरे-धीरे बढ़ाते हुए 1,00,000 की क्षमता तक पहुंचाया. अनुशासित सैन्य प्रणाली, सुगठित प्रशासनिक संरचना और पूर्णतया परंपरागत समाज की सहायता से मराठा सेना जल्दी ही ऐसी विलक्षण सैन्य शक्ति बन गई जो भारत में मुगलों को टक्कर दे सकती थी. अंग्रेजी में 'Shivaji The Grand Rebel' नाम से प्रकाशित इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद राजेन्द्र कुमार राज ने किया है. प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन
* The Hero Of Tiger Hill: Autobiography of a Param Vir Capt (Hony) Yogendra Singh Yadav: कारगिल युद्ध के हीरो कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव कीआत्मकथा यह बताती है कि कैसे  3 जुलाई 1999 की रात 19 साल के ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव ने 18 ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट की घातक प्लाटून के साथ-साथ अभेद्य टाइगर हिल पर कब्जा करने के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी थी. हांड़ कंपा देने और खून जमा देने वाले उस दुर्गम इलाके में दुश्मन की भीषण गोलाबारी का सामना करते हुए, यादव ने अपने इस घातक अभियान को अंजाम दिया और कई गोलियों और हथगोले के छर्रों से अपने शरीर के छिदने और घायल होने के बाद भी दुश्मन के बंकरों पर हमला किया और रेजिमेंट के लिए टाइगर हिल की शक्तिशाली चोटियों पर कब्जा करने का रास्ता साफ किया. यह एक बहादुर सैनिक की सच्ची कहानी है, जिसने कारगिल युद्ध के दौरान अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियों में विशिष्ट साहस, अदम्य वीरता, धैर्य और दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन करते हुए न केवल देश के सम्मान की रक्षा की बल्कि भारतीय सेना का सर्वोच्च पुरस्कार- परम वीर चक्र का हकदार बना. 'टाइगर हिल का हीरो' एक बहादुर सैनिक की सच्ची कहानी है. प्रकाशकः सृष्टि पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स 
* 'इंडियाज़ मोस्ट फ़ीयरलेस 2', शिव अरूर और राहुल सिंह. 29 सितंबर, 2016 का दिन देश कैसे भूल सकता है. इस दिन भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में घुसकर आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद किया था. लेकिन सेना का ये मिशन यानी कि सर्जिकल स्ट्राइक बोलने में जितना आसान लगता है, असल में ये उतना ही खतरनाक मिशन था. इस आंतकवाद-विरोधी मुठभेड़ की बेहद दिलचस्प रिपोर्ट्स, कश्मीर के जादुई जंगल जहां दिन भी रात जैसा लगता है, उनमें आतंकवादियों को खोज निकालने वाले फौजी अथवा नेवी के वे जांबाज नौजवान, जिन्होंने सबमरीन दल को बचाने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया, या फिर एयर फ़ोर्स का वह कमांडो, जो तब तक जागता रहा, जब तक उसने अपने साथियों को बचा नहीं लिया, अथवा वह टैक्स बाबू, जिसे अपने जीवन का उद्देश्य पाकिस्तानी आतंकवादियों पर स्पेशल फ़ोर्स द्वारा किये गए भीषण हमले में दिखाई दिया जैसे अनेक किस्सों की अनूठी दास्तान. अंग्रेजी में भी इसी नाम India's Most Fearless 2 नाम से प्रकाशित इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद ऋतु भनोट ने किया है. प्रकाशक: पेंगुइन प्रकाशन
 * 'ऑपरेशन खुकरी', मेजर जनरल राजपाल पुनिया और दामिनी. यह पुस्तक अफ्रीका के जंगलों में भारतीय सेना की जांबाज़ी की दास्तान कहती. वर्ष 2000 की बात है. पश्चिम अफ्रीका का सिएरा लिओन बरसों के गृहयुद्ध से तबाह हो चुका था. संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप से भारतीय सेना की दो कंपनियों को संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना अभियान के अंतर्गत कैलाहुन में तैनात किया गया था. वहां भारतीय सेना के 233 जवान लगभग तीन महीने तक चली घेराबंदी में फंस गए थे और उनके पास खाने को कुछ भी नहीं था. इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना का वह अभियान भारतीय तिरंगे के गौरव की रक्षा के लिए चले एक युद्ध में बदल गया? 'ऑपरेशन खुकरी' भारतीय सेना के सबसे सफल अंतरराष्ट्रीय अभियानों में से एक था. यह पुस्तक तब के मेजर राजपाल पुनिया के प्रत्यक्ष अनुभवों की रोचक एवं सजीव प्रस्तुति है. मेजर पुनिया ने तीन महीने के गतिरोध और विफल कूटनीति के बाद इस अभियान को अंजाम दिया, और इस दौरान घात लगाकर बैठे आर.यू.एफ. से दो बार लंबा जंगल-युद्ध लड़ा और अंततः बिना किसी नुकसान के अपने सभी 233 सैनिकों के साथ सुरक्षित लौटने में सफल रहे. अंग्रेजी में भी 'Operation Khukri' नाम से प्रकाशित इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद निशांत गोयल ने किया है. प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन
सभी लेखकों, प्रकाशकों, अनुवादकों को बधाई!

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