साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10 'संस्मरण-संचयन' श्रेणी में नागार्जुन, धूमिल, मुद्गल और मल्लिका के अलावा और किन पर पुस्तकें

साल 2022 में 'साहित्य तकः बुक कैफे टॉप 10' पुस्तकों की कड़ी में आज 'संस्मरण-संचयन' की बात. इस श्रेणी में शामिल पुस्तकों में बाबा नागार्जुन, विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, धूमिल, चित्रा मुद्गल और मल्लिका के अलावा और किन पर, और किनकी पुस्तकें शामिल हैं- देखें, पूरी सूची- पाएं उनकी जानकारी

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साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10 में 'संस्मरण-संचयन' साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10 में 'संस्मरण-संचयन'

जय प्रकाश पाण्डेय

  • नई दिल्ली,
  • 23 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 4:00 PM IST

भारतीय मीडिया जगत में जब 'पुस्तक' चर्चाओं के लिए जगह छीजती जा रही थी, तब इंडिया टुडे समूह के साहित्य के प्रति समर्पित डिजिटल चैनल 'साहित्य तक' ने हर दिन किताबों के लिए देना शुरू किया. इसके लिए एक खास कार्यक्रम 'बुक कैफे' की शुरुआत की गई...इस कार्यक्रम में 'एक दिन एक किताब' के तहत हर दिन किसी पुस्तक की चर्चा होती है. पूरे साल इस कार्यक्रम में पढ़ी गई पुस्तकों में से 'बुक कैफे टॉप 10' की यह शृंखला वर्ष के अंत में होती है. इसी क्रम में आज 'संस्मरण-संचयन' श्रेणी की पुस्तकों की बात की जा रही है.
साल 2021 की जनवरी में शुरू हुए 'बुक कैफे' को दर्शकों का भरपूर प्यार तो मिला ही, भारतीय साहित्य जगत ने भी उसे खूब सराहा. तब हमने कहा था- एक ही जगह बाजार में आई नई किताबों की जानकारी मिल जाए, तो किताबें पढ़ने के शौकीनों के लिए इससे लाजवाब बात क्या हो सकती है? अगर आपको भी है किताबें पढ़ने का शौक, और उनके बारे में है जानने की चाहत, तो आपके लिए सबसे अच्छी जगह है साहित्य तक का 'बुक कैफे'. 
हमारा लक्ष्य इन शब्दों में साफ दिख रहा था- "आखर, जो छपकर हो जाते हैं अमर... जो पहुंचते हैं आपके पास किताबों की शक्ल में...जिन्हें पढ़ आप हमेशा कुछ न कुछ पाते हैं, गुजरते हैं नए भाव लोक, कथा लोक, चिंतन और विचारों के प्रवाह में. पढ़ते हैं, कविता, नज़्म, ग़ज़ल, निबंध, राजनीति, इतिहास, उपन्यास या फिर ज्ञान-विज्ञान... जिनसे पाते हैं जानकारी दुनिया-जहान की और करते हैं छपे आखरों के साथ ही एक यात्रा अपने अंदर की. साहित्य तक के द्वारा 'बुक कैफे' में हम आपकी इसी रुचि में सहायता करने की एक कोशिश कर रहे हैं."
हमें खुशी है कि हमारे इस अभियान में प्रकाशकों, लेखकों, पाठकों, पुस्तक प्रेमियों का बेपनाह प्यार मिला. इसी वजह से हमने शुरू में पुस्तक चर्चा के इस साप्ताहिक क्रम को 'एक दिन, एक किताब' के तहत दैनिक उत्सव में बदल दिया. साल 2021 में ही हमने 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' की शृंखला भी शुरू की. उस साल हमने केवल अनुवाद, कथेतर, कहानी, उपन्यास, कविता श्रेणी में टॉप 10 पुस्तकें चुनी थीं.
साल 2022 में हमें लेखकों, प्रकाशकों और पुस्तक प्रेमियों से हज़ारों की संख्या में पुस्तकें प्राप्त हुईं. पुस्तक प्रेमियों का दबाव अधिक था और हमारे लिए सभी पुस्तकों पर चर्चा मुश्किल थी, इसलिए 2022 की मई में हम 'बुक कैफ़े' की इस कड़ी में 'किताबें मिली' नामक कार्यक्रम जोड़ने के लिए बाध्य हो गए. इस शृंखला में हम पाठकों को प्रकाशकों से प्राप्त पुस्तकों की सूचना देते हैं.
इनके अलावा आपके प्रिय लेखकों और प्रेरक शख्सियतों से उनके जीवन-कर्म पर आधारित संवाद कार्यक्रम 'बातें-मुलाकातें' और किसी चर्चित कृति पर उसके लेखक से चर्चा का कार्यक्रम 'शब्द-रथी' भी 'बुक कैफे' की पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने वाली कड़ी का ही एक हिस्सा है.
साल 2022 के कुछ ही दिन शेष बचे हैं, तब हम एक बार फिर 'साहित्य तक: बुक कैफे टॉप 10' की चर्चा के साथ उपस्थित हैं. इस साल कुल 17 श्रेणियों में टॉप 10 पुस्तकें चुनी गई हैं. साहित्य तक किसी भी रूप में इन्हें कोई रैंकिंग करार नहीं दे रहा. संभव है कुछ बेहतरीन पुस्तकें हम तक पहुंची ही न हों, या कुछ पुस्तकों की चर्चा रह गई हो. पर 'बुक कैफे' में शामिल अपनी विधा की चुनी हुई ये टॉप 10 पुस्तकें अवश्य हैं. 
पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने की 'साहित्य तक' की कोशिशों के प्रति सहयोग देने के लिए आप सभी का आभार.
साहित्य तक 'बुक कैफे-टॉप 10' साल 2022 की संस्मरण-संचयन श्रेणी की पुस्तकें हैं ये
* 'ठक्कन से नागार्जुनः एक जीवन यात्रा', शोभाकान्त, यह हिंदी और मैथिली भाषा के प्रगतिशील, जनकवि नागार्जुन की एक अनूठी जीवनी है. शोभाकान्त न सिर्फ इस अनूठे कवि के ज्येष्ठ पुत्र हैं बल्कि वे उनकी अनथक यात्रा के आखिरी कुछ वर्षों के हमराही भी रहे. शोभाकान्त ने साहित्यिक-रचनात्मक कर्म को सर्वोपरि मानने वाले नागार्जुन के बचपन, उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, अपने परिजनों के साथ उनके रिश्ते, पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने के उनके संघर्ष  और जीवन के इन उतार-चढ़ाव भरे दौर से गुजरने के बावजूद साहित्य के क्षेत्र में एक नई लकीर खींचने की उनकी यात्रा को तो लिखा है, उनके बहुआयामी सृजनात्मकता की पृष्ठभूमि क्या थी, ऐसे सवालों के उत्तर भी तलाशे हैं. प्रकाशक- राजकमल पेपरबैक्स
* 'विश्वनाथ प्रसाद तिवारी-रचना संचयन', रेवती रमण- यह पुस्तक हमारे समय के महत्त्वपूर्ण साहित्यकार विश्वनाथ प्रसाद तिवारी के पिछले छह से भी अधिक दशकों की रचना-यात्रा पर प्रकाश डालती है, और तिवारी के व्यक्तित्व और कृतित्व को समझने में सहायक है. पुस्तक बताती है कि उपन्यास और महाकाव्य को अपवाद मानें तो कविता-आलोचना सहित साहित्य की कई लघु विधाओं में उनकी प्रयुक्तियां बेमिसाल हैं. कविता विश्वनाथ प्रसाद के सर्जक का मेरुदंड है, तो साहित्य समालोचक और निबंधकार के रूप में उनकी गद्य-साधना यात्रावृत्तों, डायरी, आत्मकथा तक ही जाकर नहीं रुकती बल्कि दस्तावेज के संपादकीय लेख और पत्र भी भारतीय साहित्यिक फलक को समृद्ध करते हैं. तिवारी के समस्त साहित्य कर्म पर निगाह डालने के अलावा उनकी कुछ चुनी हुई महत्त्वपूर्ण रचनाएं इस संचयन को खास बनाती हैं. प्रकाशक - साहित्य अकादेमी
* 'वीरेन डंगवाल स्मरणः यही तुम थे', पंकज चतुर्वेदी. किसी भी मृत्यु के शोक से हर कोई अपनी तरह से उबरता है. कई बार तो हमें इस प्रक्रिया का भान भी नहीं होता और हम उस व्यक्ति को अपने भीतर से भी खो देते हैं, जिसे दैहिक तौर पर पहले खो चुके हैं. हिन्दी के विलक्षण कवि वीरेन डंगवाल के निधन के बाद अवसन्न छूट गई हिन्दी की दुनिया भी जब अपने ढंग से इस शोक से उबरने की कोशिश कर रही थी, तब कवि और आलोचक पंकज चतुर्वेदी उनके साथ अपनी स्मृति को पुनर्जीवित कर रहे थे. विलक्षण कवि वीरेन डंगवाल के इस संस्मरण के द्वारा पाठक दो कवियों के बीच बसे उस संसार को देख सकते हैं, जो अपनी तरह से बेहद अर्थपूर्ण है... और तो और यह पुस्तक दो रचनाशील लोगों के आपसी सम्बन्धों, संलग्नता, ऊष्मा और तीव्रता को भी उजागर करती है, कि अगर आप लिखते पढ़ते हैं, तो अपने आत्मीय सर्जक साथी को कैसे याद कर सकते हैं. प्रकाशकः राजकमल प्रकाशन
* 'पगडन्डियों से शाहराहों तक', शमीम ज़हराः यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के कस्बा नगीना में मुस्लिम सैयद घराने में पैदा हुई लड़की के जीवन के जद्दोजेहद की सच्ची कहानी है. सादात बिरादरी की सख्त पर्दे वाले मजहबी माहौल की उस कस्बे की स्कूल जाने वाली वह पहली लड़की थी. सत्रह साल की उम्र में शादी हो जाने और दसवीं कक्षा के बाद कभी स्कूल या कॉलेज में नियमित पढ़ने का मौक़ा नहीं मिलने के बावजूद उस लड़की ने घर गृहस्थी, बच्चों और बुज़ुर्गों के साथ तालमेल बैठाते हुए न सिर्फ़ आला तालीम हासिल की बल्कि म. प्र. लोक सेवा आयोग की प्रतियोगी परीक्षा पास कर बड़े अधिकारी पद से सेवानिवृत्त हुई. शमीम ज़हरा की यह आत्मकथा बेहद प्रेरक और पठनीय है. प्रकाशक- नोशन प्रेस
* 'चित्रा मुद्गल-एक शिनाख़्त', संचयन और संपादन- महेश दर्पणः यह पुस्तक प्रसिद्ध लेखिका, साहित्यकार, समाजसेवी चित्रा मुद्गल के उपन्यासों, कहानी, बाल साहित्य एवं अन्य विधाओं पर एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है. कथाकार महेश दर्पण ने साल 1964 से शुरू हुई चित्रा मुद्गल की साहित्यिक यात्रा में उनके उपन्यास, कहानी, बाल साहित्य, संपादन, नाट्य रूपांतरण, लेख, निबंध और दूसरी विधाओं में उनके सृजन और रचनाओं की चर्चा के साथ ही बतौर मानवी उनकी संवेदना, करुणा और भावजगत की भी व्याख्या करते हैं, जिसमें समाज के विभिन्न पिछड़े, शोषित समुदाय, दलित, आदिवासी, मजदूर, किन्नर, वंचित और नारी सभी शामिल हैं. यह पुस्तक साहित्य के रसिकों, मुद्गल के प्रशंसकों और शोध छात्रों के लिए उपयोगी है. प्रकाशक-  प्रलेक प्रकाशन
* 'दिनांक के बिना', उषाकिरण खान. यह मैथिली और हिंदी की एक महत्त्वपूर्ण रचनाकार के संस्मरणों की ऐसी गाथा है, जिसे दस्तावेज़ के रूप में संजोने का मन करता है. इस पुस्तक में कथाएं हैं जिसमें यात्राएं, स्मृतियां और जीवन के शाश्वत सत्य शामिल हैं.  निजी अनुभवों से पगी और अपने आस-पास के जीवन की विडम्बनाओं को दर्शाती हुई यह कृति साधारण जीवन को असाधारण परिप्रेक्ष्य में देखने का प्रयास करती है. खान अपनी यादों के बहाने अपने समय के साथ बिहार की लोकचेतना और संस्कृति के अलावा युगों-युगों से साहित्य और कलाओं को समृद्ध करती आयी मैथिली भाषा के सर्जन की भी बात करती हैं और अपनी लेखनी से जीवन के लघु अंशों का कोलाज और मानचित्र दोनों प्रस्तुत करती हैं. प्रकाशक- वाणी प्रकाशन
* 'रुद्र समग्र'- संपादक- नंद किशोर नवलः रामगोपाल शर्मा 'रुद्र' उत्तर-छायावाद काल के ऐसे कवि हैं, जो आधी शताब्दी से अधिक समय तक शब्द ब्रह्म की साधना में लीन रहे और उसकी लीलाएं स्वयं देखते तथा हिन्दी काव्य प्रेमियों को दिखाते रहे. उनकी कविताओं में  मस्ती, जिंदादिली, फक्कड़पन के साथ शास्त्रज्ञता और कलामर्मज्ञता का अद्भुत मेल है. 'रुद्र' जी ने अंतःप्रेरणा से कई शैलियों में काव्य-रचना की. कभी उनकी शैली सरल, कभी संस्कृतनिष्ठ और कभी उर्दू के लहजे से प्रभावित थी. पर 'विदग्धता' उनकी मुख्य पहचान थी. इसे देखकर ही निराला ने उनके संबंध में अपना यह मत प्रकट किया था कि वे हिन्दी के एक 'पाएदार शायर' हैं. 'रुद्र' साठ वर्षों के अपने कवि-जीवन में कभी अगतिक नहीं हुए और अपनी कविता में बदलती जीवन स्थितियों की अभिव्यक्ति करते रहे. उनकी संपूर्ण काव्य रचनाओं पर नंद किशोर नवल द्वारा संपादित यह पुस्तक युवाओं आधुनिक कविता के स्तंभ 'रुद्र' से रूबरू करवाने मानक साबित होती है. प्रकाशकः राधाकृष्ण प्रकाशन
* 'धूमिल एक ठेठ कवि', संपादक डॉ रत्नशंकर पाण्डेय, यह पुस्तक हिंदी कविता के एंग्री यंगमैन सुदामा पांडेय 'धूमिल के जीवन और सृजन कर्म पर एक व्यापक दृष्टि डालती है. सत्ता की निरंकुशता के दंश और उन्माद को धूमिल की कविताओं में बख़ूबी पढ़ा जा सकता है. समाज का रेखाचित्र उनकी कविता की विशेषता है. साम्राज्यवादी पूंजीवादी व्यवस्था की जकड़न, बिखरते समाजवाद के खंडित अवशेष, व्यक्तिवादी बाज़ारवाद में केवल लाभ-हानि से जुड़ी तथाकथित उदारवादी वैश्विक व्यवस्था की चाल- धूमिल की कविताओं में स्पष्ट परिलक्षित होती है. यह धूमिल की कविता-शक्ति ही थी जिसने हिंदी आलोचना का मुंह कहानियों से मोड़कर कविताओं की तरफ़ कर दिया. इस संग्रह में धूमिल की कविताएं, उनके गीत, गद्य के साथ ही कुछ बहुमूल्य संस्मरण भी शामिल हैं. इनके अलावा 1966 से 1970 के बीच लिखी गई धूमिल की कविताएं उनके चाहने वालों के लिए किसी उपहार से कम नहीं हैं. प्रकाशकः हिंद युग्म
* 'मल्लिका का रचना-संसार', संकलन एवं संपादन- वसुधा डालमिया, यह पुस्तक हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के जीवन में आई उस महिला के जीवन, कृति और सृजन कर्म का दस्तावेज है, जिसने न केवल अपनी उपस्थिति से भारतेंदु के जीवन को बल्कि उनके भाषा संस्कार और दृष्टिकोण, यहां तक कि उनके रचनाकर्म को भी प्रभावित किया, पर हिंदी साहित्य जगत ने उन्हें उनका मान नहीं दिया. भारतेन्दु की रक्षिता मल्लिका का निजी जीवन और उनका दुर्लभ कृतित्व बहुत महत्त्वपूर्ण है. काशी के एक सम्पन्न परिवार के कुलदीपक की रक्षिता बांग्ला मूल की महिला मल्लिका, 19वीं सदी के समाज में सामाजिक स्वीकार से वंचित रहीं. फिर भी अपनी नैसर्गिक प्रतिभा और कुछ हद तक भारतेन्दु के साथ रहते हुए अपनी प्रतिभा के निरन्तर परिष्कार से उन्होंने अपने समय के समाज में स्त्री जाति की असली दशा, विशेषकर युवा विधवाओं और किसी भी वजह से समाज की डार से बिछड़ गई औरतों की दुनिया पर जैसी निडर रचनात्मक दृष्टि डाली, वह आज भी विरल है. प्रकाशकः राजकमल प्रकाशन
* 'मैं मनु', प्रकाश मनु, यह चर्चित साहित्यकार प्रकाश मनु की आत्मकथा का संक्षिप्त संस्करण है, जिसमें उनके बचपन, किशोरावस्था और युवावस्था की जोश-खरोश भरी हलचलों का जिक्र मिलता है. इसमें मनु के जीवन के उतार-चढ़ाव, अनगिनत किस्से-कहानियां और स्मृतियों के अनगिनत धागे लिपटे हुए मिलते हैं. स्वयं मनु के शब्दों में-  मेरे बचपन की कहानी सिर्फ मेरी ही नहीं, मेरे भीतर के अधकू की भी कहानी है, जिसने मुझे चीजों को अलग ढंग से देखना सिखाया, जिससे चीजें भीतर-बाहर से प्रकाशित हो उठती थीं. प्रकाश मनु बचपन में कैसे थे वे क्या करते थे? उनके गोरे रंग का होने के कारण दूसरों से कुकू नाम का मिलना और कैसे वह चन्द्रप्रकाश विग से 'प्रकाश मनु' हुए की पूरी कहानी एक साहित्यकार की निर्मिति को समझने के लिए उपयोगी है. यह पुस्तक कुल 32 अध्यायों में है. प्रकाशकः श्वेतवर्णा प्रकाशन
सभी लेखकों, प्रकाशकों, अनुवादकों को बधाई!
 

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