शब्द की दुनिया समृद्ध हो और बची रहे पुस्तक-संस्कृति इसके लिए इंडिया टुडे समूह के साहित्य, कला, संस्कृति और संगीत के प्रति समर्पित डिजिटल चैनल 'साहित्य तक' ने पुस्तक-चर्चा पर आधारित एक खास कार्यक्रम 'बुक कैफे' की शुरुआत वर्ष 2021 में की थी... आरंभ में सप्ताह में एक साथ पांच पुस्तकों की चर्चा से शुरू यह कार्यक्रम आज अपने वृहद स्वरूप में सर्वप्रिय है.
साहित्य तक के 'बुक कैफे' में इस समय पुस्तकों पर आधारित कई कार्यक्रम प्रसारित हो रहे हैं. इन कार्यक्रमों में 'एक दिन, एक किताब' के तहत हर दिन एक पुस्तक की चर्चा, 'शब्द-रथी' कार्यक्रम में किसी लेखक से उनकी सद्य: प्रकाशित कृति पर बातचीत और 'बातें-मुलाकातें' कार्यक्रम में किसी वरिष्ठ रचनाकार से उनके जीवनकर्म पर संवाद होता है. इनके अतिरिक्त 'आज की कविता' के तहत कविता पाठ का विशेष कार्यक्रम भी बेहद लोकप्रिय है.
भारतीय मीडिया जगत में जब 'पुस्तक' चर्चाओं के लिए जगह छीजती जा रही थी, तब 'साहित्य तक' पर हर शाम 4 बजे 'बुक कैफे' में प्रसारित कार्यक्रमों की लोकप्रियता बढ़ती ही गई. हमारे इस कार्यक्रम को प्रकाशकों, रचनाकारों और पाठकों की बेपनाह मुहब्बत मिली. अपने दर्शक, श्रोताओं के अतिशय प्रेम के बीच जब पुस्तकों की आमद लगातार बढ़ने लगी, तो यह कोशिश की गई कि कोई भी पुस्तक; आम पाठकों, प्रतिबद्ध पुस्तक-प्रेमियों की नजर से छूट न जाए. आप सभी तक 'बुक कैफे' को प्राप्त पुस्तकों की जानकारी सही समय से पहुंच सके इसके लिए सप्ताह में दो दिन- हर शनिवार और रविवार को - सुबह 10 बजे 'किताबें मिलीं' कार्यक्रम भी शुरू कर दिया गया. यह कार्यक्रम 'नई किताबें' के नाम से अगले वर्ष भी जारी रहेगा.
'साहित्य तक' ने वर्ष 2021 में ही पूरे वर्ष की चर्चित पुस्तकों में से उम्दा पुस्तकों के लिए 'बुक कैफे टॉप 10' की शृंखला शुरू की थी, ताकि आप सब श्रेष्ठ पुस्तकों के बारे में न केवल जानकारी पा सकें, बल्कि अपनी पसंद और आवश्यकतानुसार विधा और विषय विशेष की पुस्तकें चुन सकें. तब से हर वर्ष के आखिरी में 'बुक कैफे टॉप 10' की यह सूची जारी होती है. 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' की यह शृंखला अपने आपमें अनूठी है, और इसे भारतीय साहित्य जगत, प्रकाशन उद्योग और पाठकों के बीच खूब आदर प्राप्त है.
'साहित्य तक के 'बुक कैफे' की शुरुआत के समय ही इसके संचालकों ने यह कहा था कि एक ही जगह बाजार में आई नई पुस्तकों की जानकारी मिल जाए, तो पुस्तकों के शौकीनों के लिए इससे लाजवाब बात क्या हो सकती है? अगर आपको भी है किताबें पढ़ने का शौक, और उनके बारे में है जानने की चाहत, तो आपके लिए सबसे अच्छी जगह है साहित्य तक का 'बुक कैफे'.
हमें खुशी है कि हमारे इस अभियान में प्रकाशकों, लेखकों, पाठकों, पुस्तक प्रेमियों का बेपनाह प्यार मिला. हमने पुस्तक चर्चा के कार्यक्रम को 'एक दिन, एक किताब' के तहत दैनिक उत्सव में बदल दिया है. वर्ष 2021 में 'साहित्य तक- बुक कैफे टॉप 10' की शृंखला में केवल अनुवाद, कथेतर, कहानी, उपन्यास, कविता श्रेणी की टॉप 10 पुस्तकें चुनी गई थीं. वर्ष 2022 में लेखकों, प्रकाशकों और पुस्तक प्रेमियों के अनुरोध पर कुल 17 श्रेणियों में टॉप 10 पुस्तकें चुनी गईं. साहित्य तक ने इन पुस्तकों को कभी क्रमानुसार कोई रैंकिंग करार नहीं दिया, बल्कि हर चुनी पुस्तक को एक समान टॉप 10 का हिस्सा माना. यह पूरे वर्ष भर पुस्तकों के प्रति हमारी अटूट प्रतिबद्धता और श्रमसाध्य समर्पण का द्योतक है. फिर भी हम अपनी सीमाओं से भिज्ञ हैं. संभव है कुछ बेहतरीन पुस्तकें हम तक पहुंची ही न हों, संभव है कुछ श्रेणियों में कई बेहतरीन पुस्तकें बहुलता के चलते रह गई हों. संभव है कुछ पुस्तकें समयावधि के चलते चर्चा से वंचित रह गई हों. पर इतना अवश्य है कि 'बुक कैफे' में शामिल ये पुस्तकें अपनी विधा की चुनी हुई 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' पुस्तकें अवश्य हैं.
पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने की 'साहित्य तक' की कोशिशों को समर्थन, सहयोग और प्यार देने के लिए आप सभी का आभार.
***
साहित्य तक 'बुक कैफे-टॉप 10' साल 2023 की 'सिनेमा' श्रेणी की श्रेष्ठ पुस्तकें हैं-
***
* 'जादूनामा: जावेद अख़्तर एक सफ़र' - जावेद अख्तर, अरविंद मंडलोई
जावेद अख्तर का बचपन, उनके जीवन का संघर्ष, सफलता, और उसके पीछे की मेहनत... जावेद साहब की ज़िंदगी की तमाम बातों पर अरविंद मण्डलोई ने 'जादूनामा: जावेद अख़्तर एक सफ़र' किताब में बखूबी रौशनी डालने की कोशिश की है. यह पुस्तक एक कॉफी टेबल बुक है, जो जावेद अख़्तर की जिंदगी के जाने-अनजाने, देखे-अनदेखे जीवन-वृत्त को कहीं शब्द-चित्र, तो कहीं असली चित्र के माध्यम से पाठकों के सामने रखती है. स्वयं अरविंद का जीवन भी बहुत उतार-चढ़ाव वाला रहा है, मगर उनकी मेहनत, विश्वास और प्रतिबद्धता ने आज उन्हें संपादकों की पहली पंक्ति में ला कर खड़ा कर दिया है. वह अपने जीवन में बदलाव का श्रेय जावेद अख़्तर को देते हैं, और कहते हैं उनकी ये पुस्तक भी उनकी जादू का ही नतीजा है. अंग्रेज़ी में यही पुस्तक रख्शंदा जलील के अनुवाद से 'JADUNAMA: Javed Akhtar's Journey' नाम से प्रकाशित हुई है.
- प्रकाशक: मंजुल पब्लिशिंग हाउस
***
* 'इरफ़ान.. और कुछ पन्ने कोरे रह गए' - अजय ब्रह्मात्मज
फिल्मी दुनिया के नायाब और अपनी तरह के एकलौते हीरो इरफ़ान खान पर वरिष्ठ फिल्म पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज की यह पुस्तक आपको इरफ़ान की जिंदगी के हर पहलू से वाकिफ कराती है. वह इरफ़ान ही थे, जिन्होंने ब्रह्मात्मज को फिल्म पत्रकारिता पर फोकस करने के लिए प्रेरित किया था, और ब्रह्मात्मज ने इरफ़ान के असमय जाने के बाद उनके साथ को, उनके अभिनय, संघर्ष, सफलता और रिश्तों को दो खंडों में विभक्त इस पुस्तक में सहेजा है. हालांकि ई-बुक्स के रूप में यह- 'इरफ़ान' और 'इरफ़ानियत' नाम से पहले भी आ चुकी है. पर प्रकाशित सामग्री के रूप में ब्रह्मात्मज की यह पुस्तक इस अभिनेता के बारे में ऐसी जानकारियां देती है जो अभी तक पब्लिक डोमेन में नहीं थी. लेखक और अभिनेता का साथ लगभग तीन दशक से ज़्यादा का रहा है, जो इस पुस्तक में भी दिखता है. इस पुस्तक में इरफ़ान के साक्षात्कारों के साथ ही उनसे जुड़े लोगों के 37 संस्मरण भी शामिल हैं. ध्यान देने व समझने की बात यह है कि यह पुस्तक इरफ़ान की जीवनी नहीं है.
- प्रकाशक: सरस्वती बुक
***
* 'ओवर द टॉप: OTT का मायाजाल'- अनंत विजय
यह पुस्तक OTT की दुनिया से जुड़े लगभग सभी जरूरी पहलुओं पर बात करती है. यह ओवर द टॉप प्लेटफॉर्म्स के बढ़ते प्रभाव, घर-घर, यहां तक मोबाइल के माध्यम से हर अंगुली तक उसकी पहुंच के बीच इस माध्यम पर पनप और बढ़ रही हिंसा, गाली-गलौज, यौनिकता, नग्नता, विभत्सता और खून-खराबे के प्रसार पर चिंता भी व्यक्त करती है. यह पुस्तक बताती है कि संसदीय समिति ने ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म पर दिखाई जाने वाली अश्लीलता पर क्यों और कितनी चिंता प्रकट की थी. आखिर इस माध्यम पर एजेंडा आधारित सामग्री कैसे और क्यों आ रही है, और उसके पीछे खास तरह के निर्देशकों और उनकी विचारधारा का मकसद आखिर क्या है? यह पुस्तक दुनिया भर में इस माध्यम के नियमन के साथ ही उस प्रारूप पर भी बात करती है, जो स्वनियमन से जुड़ा है. 'मार्क्सवाद का अर्धसत्य', 'बॉलीवुड सेल्फी' और 'अमेठी संग्राम' जैसी पुस्तकों से चर्चित राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 'स्वर्ण कमल' से सम्मानित अनंत विजय की यह पुस्तक ओ.टी.टी. के सभी पक्षों पर विश्लेषणात्मक विवरण देने का प्रयास करती है.
- प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन
***
* 'पं राधेश्याम कथावाचक: फ़िल्मी सफ़र' - हरिशंकर शर्मा
पंडित राधेश्याम कथावाचक दुनिया भर में अपनी रामकथा के लिए जाने जाते हैं, लेकिन वे आधुनिक रंगमंच और पारसी रंगमंच की भी मज़बूत कड़ी थे. कथावाचक जी लगभग पचास वर्ष तक रंगमंच और फ़िल्मों में सक्रिय रहे. सन 1916 ई में उनका लिखा 'वीर अभिमन्यु' नाटक पारसी रंगमंच का पहला हिंदी धार्मिक नाटक है. पारसी रंगमंच पर उर्दू के वर्चस्व को तोड़ने का यह प्रयोग सफल रहा और कथावाचकजी ने पारसी रंगमंच की दशा और दिशा ही बदलकर रख दी. हिंदी सिनेमा के जाने-माने अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने शायद इसीलिए कहा कि 'बरेली की पहचान प्रियंका चोपड़ा से नहीं पं राधेश्याम कथावाचक से है. उन्होंने फ़िल्मी संसार में बरेली को एक सांस्कृतिक पहचान दी...' पंडित राधेश्याम कथावाचक ने भारतीय सिनेमा जगत के श्वेत-श्याम दौर में अपनी ऐसी पहचान बनाई, जिसकी परछाई आज तक दिखाई पड़ती है. यह पुस्तक कथावाचक जी की सिनेमाई यात्रा के बहाने एक समूचे दौर को पाठकों के सामने प्रस्तुत करती है.
- प्रकाशक: बोधि प्रकाशन
***
* शैलेन्द्र - इंद्रजीत सिंह
फिल्मी दुनिया के अनूठे गीतकार शैलेन्द्र पर यह पहला विनिबंध है. लेखक इंद्रजीत सिंह कई दशक से शैलेन्द्र के इश्क में थे. अब गीतकार शैलेन्द्र पर लिखा उनका यह अनूठा विनिबंध कई मायनों में खास है. इसमें शैलेन्द्र के जीवन से जुड़ी हर वह बात शामिल है, जो हर संगीत प्रेमी को जाननी चाहिए. फिल्मी दुनिया के इस अनूठे गीतकार की अहमियत आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि हमारे समय के नायाब शायर, गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख़्तर की नज़र में शैलेन्द्र न केवल फिल्मी दुनिया के गीतकारों में सबसे शीर्ष पर हैं, बल्कि अपनी तरह के एकलौते हैं. 'आवारा', 'अनाड़ी', 'तीसरी कसम', 'संगम', 'यहूदी', 'श्री 420', 'मधुमती', 'गाइड', 'बूट पॉलिश', 'छोटी बहन', 'मेरा नाम जोकर' जैसी कामयाब फिल्मों के कालजयी गीत इसकी गवाही देते हैं. 'कविराज कहे, न ये ताज रहे, न ये राज रहे, न ये राजघराना. प्रीत और प्रीत का गीत रहे, कभी लूट सका न कोई ये खज़ाना...' जैसे साहसी गीत के कलमकार शैलेन्द्र पर संक्षेप में सृजित अनूठा विनिबंध.
- प्रकाशक: साहित्य अकादेमी
***
* 'बॉलीवुड की बुनियाद' - अजित राय
यह पुस्तक हिंदी सिनेमा के गौरवशाली इतिहास की याद दिलाती है, और बताती है कि कैसे एक उद्योग घराने ने भारतीय सिनेमा को समृद्ध बनाने में अपनी अहम भूमिका निभाई. यह पुस्तक पहले अंग्रेजी में 'Hindujas and Bollywood' नाम से भी प्रकाशित हुई. लेखक के अनुसार दरअसल जिसे हम हिंदी सिनेमा का स्वर्ण युग कहते हैं, वह दुनिया भर में हिंदी फ़िल्मों की वैश्विक सांस्कृतिक यात्रा का भी स्वर्ण युग था. यह पुस्तक एक तरह से हिंदी सिनेमा के उस स्वर्णिम इतिहास को दोबारा ज़िंदा करने की कोशिश है, जिसे आज लगभग भुला दिया गया है. पुस्तक पाठक को अपने साथ लगभग बारह सौ हिंदी फ़िल्मों की ऐतिहासिक वैश्विक सांस्कृतिक यात्रा पर ले जाती है, जो हिंदुजा बंधुओं के प्रयासों से सफल हुईं. यह जानना आश्चर्यजनक है कि 1954-55 में राज कपूर की फ़िल्म 'श्री 420' से लेकर 1984-85 तक अमिताभ बच्चन की 'नसीब' तक लगभग बारह सौ फ़िल्मों की यह यात्रा ईरान से शुरू होकर ब्रिटेन, मिस्र, तुर्की, लेबनान, जार्डन, सीरिया, इजरायल, थाईलैंड, ग्रीस होते हुए सारी दुनिया तक पहुंची.
- प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
***
* 'चल उड़ जा रे पंछी: संगीतकार चित्रगुप्त- व्यक्ति एवं कृति'- डॉ नरेन्द्र नाथ पांडेय
हिंदी सिनेमा में संगीतकार चित्रगुप्त का कोई सानी नहीं है. उन्होंने हिंदी के साथ-साथ भोजपुरी, मगही और अन्य भाषाओं- बोलियों के गीतों को भी संगीत दिया. यह कहना गलत न होगा कि उनके काम का स्वरूप बहुत विस्तृत रहा है. डॉ नरेन्द्र नाथ पांडेय ने संगीतकार चित्रगुप्त आरा दो खंडों में वृहद पुस्तक लिखी है. यह पुस्तक सरस्वती-पुत्री, भारतरत्न लता मंगेशकर के आशीर्वाद से प्रारम्भ होती है. हिंदी फ़िल्मों के निर्देशक एवं प्रसिद्ध संगीतकार विशाल भारद्वाज ने इस पुस्तक का प्राक्कथन लिखा है. पंडित हरि प्रसाद चौरसिया, प्यारेलाल, आनन्दजी, किशोर देसाई, सुरेश वाडकर, उदित नारायण, अलका याग्निक, समीर एवं चित्रगुप्त के पुत्र-द्वय आनन्द तथा मिलिन्द जैसी अनेक फिल्मी हस्तियों एवं उनके परिजनों के भावुक संस्मरणों ने इस पुस्तक को परिष्कृत बनाया है. पुस्तक के पहले भाग में चित्रगुप्त के व्यक्तित्व और कृतित्व की चर्चा है, तथा दूसरे भाग में चित्रगुप्त द्वारा रचे हिंदी फ़िल्मों के सभी गीत, एवं भोजपुरी फ़िल्मों के चंद चर्चित गीतों को संकलित किया गया है.
- प्रकाशक: कौटिल्य बुक्स
***
* 'नग़्मे क़िस्से बातें यादें' -राकेश आनंद बक्शी
हिंदी सिनेमा में आनंद बक्शी एक ऐसा नाम हैं जो मर कर भी अमर हैं. अंग्रेजों के ज़माने में फौज की नौकरी करने वाले आनंद बक्शी गीतकार बनने का सपना लेकर बंबई- आज की मुंबई- आ पहुंचे और देर-सवेर ही सही उन्होंने हिंदी सिनेमा में अपना ऐसा मक़ाम बनाया जहां तक कोई न पहुंच सका. आनंद बक्शी के जीवन से सीखने के लिए बहुत कुछ है. और उन्हीं सीख, किस्सों और यादों को उनके बेटे राजेश आनंद बक्शी ने अपनी किताब 'नग़्मे क़िस्से बातें यादें' में समेटने का बेहतरीन प्रयास किया है. राजेश आनंद बक्शी की यह पुस्तक अंग्रेज़ी में Nagme, Kisse, Baatein, Yaadein- The Life & Lyrics of Anand Bakshi नाम से लिखी थी, जिसका हिंदी रूपांतरण जानेमाने उद्घोषक और संगीत प्रेमी यूनुस खान ने किया है.
- प्रकाशन: अद्विक पब्लिकेशन
***
* 'कैफ़े सिने संगीत' - पंकज राग
फ़िल्मों का गीत-संगीत भारतीय जन-जीवन का अभिन्न हिस्सा है. शायद ही ऐसा कोई समय हो जब कहीं-न-कहीं से किसी फ़िल्मी गीत की कोई धुन, कोई बोल, कोई पंक्ति हमारे आसपास न रहती हो. फ़िल्में हमारा मनोरंजन भी हैं, हमारा फ़लसफ़ा भी, हमारे सुख-दुख की अभिव्यक्ति भी. दुनिया में कहीं दूसरी जगह फ़िल्में आम ज़िन्दगी में उस तरह शामिल नहीं हैं, जैसी हमारे यहां. लेखक ने पहले भी 'धुनों की यात्रा' शीर्षक से लिखी अपनी किताब में फ़िल्मी गीतों पर एक दस्तावेज़ी काम किया था. यह पुस्तक फ़िल्मी गीतों पर अनोखे अन्दाज़ में बात करते हुए भारतीय समाज को समझने और समझाने का प्रयास करती है. पुस्तक में फ़िल्मी गीतों का विश्लेषण, उनकी संरचना, स्वीकृति, लोकप्रियता और विषय-वस्तु की जानकारी के साथ ही भारतीय समाज के मानस के उतार-चढ़ाव को भी अंकित करने का प्रयास किया गया है.
- प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
***
* 'अजीत का सफ़र' - इक़बाल रिज़वी
सारा शहर मुझे लॉयन के नाम से जानता है... और इस शहर में मेरी हैसियत वही है, जो जंगल में शेर की होती है... यह डायलॉग अपने जमाने के मशहूर अभिनेता अजीत का है. अजीत फ़िल्मी दुनिया के जाने-माने अभिनेता और उससे भी बढ़कर एक बेहतरीन इंसान थे. किताब की शुरुआत हिंदुस्तान की रियासतों में अफ़गानी सैनिकों को नौकरी देने, साल 1900 में घोड़ा व्यापार के लिए मशहूर बड़ोजई कबीले के सरदार के कंधार से शाहजहांपुर पहुंचने, हैदराबाद के निज़ाम की सेना के लिए घोड़ों का व्यापार करने, सरदार के बेटे को हैदराबाद निज़ाम के यहां घोड़ा विशेषज्ञ के रूप में नौकरी मिलने और वहीं 27 जनवरी, 1922 को हामिद अली ख़ां के जन्म जैसे बारीक विवरणों से होते हुए हामिद के स्कूली दिनों, सेना की जगह सिनेमा के लिए मुंबई पहुंचने, वहां के संघर्ष और अवसरों के बीच उनके अजीत बन जाने की कहानी बताती है. इसमें अजीत की शादी, अजीत का प्रेम, उनका सिनेमा, साथी, डायलॉग, संस्मरण, लेखन, फ़िल्मोग्राफ़ी- 1946 में 'शाहे मिस्त्र' से 1995 में 'गैंगस्टर' तक शामिल है.
- प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
***
वर्ष 2023 के 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' में शामिल सभी पुस्तक लेखकों, प्रकाशकों, अनुवादकों और प्रिय पाठकों को बधाई!
जय प्रकाश पाण्डेय