'साहित्य तक: बुक कैफे टॉप 10' पुस्तकों की शृंखला जारी है. वर्ष 2023 में कुल 17 श्रेणियों की टॉप 10 पुस्तकों में सर्वाधिक 'लोकप्रिय' 10 पुस्तकों की सूची में नीरजा चौधरी, पीयूष मिश्रा, गीत चतुर्वेदी, दिव्य प्रकाश दुबे और रत्नेश्वर के अलावा और किन की; और कौन सी पुस्तकें...साथ ही वह पुस्तक भी जो लायक होकर भी इस सूची में रखी नहीं जा सकी.
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शब्द की दुनिया समृद्ध हो और बची रहे पुस्तक-संस्कृति इसके लिए इंडिया टुडे समूह के साहित्य, कला, संस्कृति और संगीत के प्रति समर्पित डिजिटल चैनल 'साहित्य तक' ने पुस्तक-चर्चा पर आधारित एक खास कार्यक्रम 'बुक कैफे' की शुरुआत वर्ष 2021 में की थी... आरंभ में सप्ताह में एक साथ पांच पुस्तकों की चर्चा से शुरू यह कार्यक्रम आज अपने वृहद स्वरूप में सर्वप्रिय है.
साहित्य तक के 'बुक कैफे' में इस समय पुस्तकों पर आधारित कई कार्यक्रम प्रसारित हो रहे हैं. इन कार्यक्रमों में 'एक दिन, एक किताब' के तहत हर दिन एक पुस्तक की चर्चा, 'शब्द-रथी' कार्यक्रम में किसी लेखक से उनकी सद्य: प्रकाशित कृति पर बातचीत और 'बातें-मुलाकातें' कार्यक्रम में किसी वरिष्ठ रचनाकार से उनके जीवनकर्म पर संवाद होता है. इनके अतिरिक्त 'आज की कविता' के तहत कविता पाठ का विशेष कार्यक्रम भी बेहद लोकप्रिय है.
भारतीय मीडिया जगत में जब 'पुस्तक' चर्चाओं के लिए जगह छीजती जा रही थी, तब 'साहित्य तक' पर हर शाम 4 बजे 'बुक कैफे' में प्रसारित कार्यक्रमों की लोकप्रियता बढ़ती ही गई. हमारे इस कार्यक्रम को प्रकाशकों, रचनाकारों और पाठकों की बेपनाह मुहब्बत मिली. अपने दर्शक, श्रोताओं के अतिशय प्रेम के बीच जब पुस्तकों की आमद लगातार बढ़ने लगी, तो यह कोशिश की गई कि कोई भी पुस्तक; आम पाठकों, प्रतिबद्ध पुस्तक-प्रेमियों की नजर से छूट न जाए. आप सभी तक 'बुक कैफे' को प्राप्त पुस्तकों की जानकारी सही समय से पहुंच सके इसके लिए सप्ताह में दो दिन- हर शनिवार और रविवार को - सुबह 10 बजे 'किताबें मिलीं' कार्यक्रम भी शुरू कर दिया गया. यह कार्यक्रम 'नई किताबें' के नाम से अगले वर्ष भी जारी रहेगा.
'साहित्य तक' ने वर्ष 2021 में ही पूरे वर्ष की चर्चित पुस्तकों में से उम्दा पुस्तकों के लिए 'बुक कैफे टॉप 10' की शृंखला शुरू की थी, ताकि आप सब श्रेष्ठ पुस्तकों के बारे में न केवल जानकारी पा सकें, बल्कि अपनी पसंद और आवश्यकतानुसार विधा और विषय विशेष की पुस्तकें चुन सकें. तब से हर वर्ष के आखिरी में 'बुक कैफे टॉप 10' की यह सूची जारी होती है. 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' की यह शृंखला अपने आपमें अनूठी है, और इसे भारतीय साहित्य जगत, प्रकाशन उद्योग और पाठकों के बीच खूब आदर प्राप्त है.
'साहित्य तक के 'बुक कैफे' की शुरुआत के समय ही इसके संचालकों ने यह कहा था कि एक ही जगह बाजार में आई नई पुस्तकों की जानकारी मिल जाए, तो पुस्तकों के शौकीनों के लिए इससे लाजवाब बात क्या हो सकती है? अगर आपको भी है किताबें पढ़ने का शौक, और उनके बारे में है जानने की चाहत, तो आपके लिए सबसे अच्छी जगह है साहित्य तक का 'बुक कैफे'.
हमें खुशी है कि हमारे इस अभियान में प्रकाशकों, लेखकों, पाठकों, पुस्तक प्रेमियों का बेपनाह प्यार मिला. हमने पुस्तक चर्चा के कार्यक्रम को 'एक दिन, एक किताब' के तहत दैनिक उत्सव में बदल दिया है. वर्ष 2021 में 'साहित्य तक- बुक कैफे टॉप 10' की शृंखला में केवल अनुवाद, कथेतर, कहानी, उपन्यास, कविता श्रेणी की टॉप 10 पुस्तकें चुनी गई थीं. वर्ष 2022 में लेखकों, प्रकाशकों और पुस्तक प्रेमियों के अनुरोध पर कुल 17 श्रेणियों में टॉप 10 पुस्तकें चुनी गईं. साहित्य तक ने इन पुस्तकों को कभी क्रमानुसार कोई रैंकिंग करार नहीं दिया, बल्कि हर चुनी पुस्तक को एक समान टॉप 10 का हिस्सा माना. यह पूरे वर्ष भर पुस्तकों के प्रति हमारी अटूट प्रतिबद्धता और श्रमसाध्य समर्पण का द्योतक है. फिर भी हम अपनी सीमाओं से भिज्ञ हैं. संभव है कुछ बेहतरीन पुस्तकें हम तक पहुंची ही न हों, संभव है कुछ श्रेणियों में कई बेहतरीन पुस्तकें बहुलता के चलते रह गई हों. संभव है कुछ पुस्तकें समयावधि के चलते चर्चा से वंचित रह गई हों. पर इतना अवश्य है कि 'बुक कैफे' में शामिल ये पुस्तकें अपनी विधा की चुनी हुई 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' पुस्तकें अवश्य हैं.
पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने की 'साहित्य तक' की कोशिशों को समर्थन, सहयोग और प्यार देने के लिए आप सभी का आभार.
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साहित्य तक 'बुक कैफे-टॉप 10' वर्ष 2023 की 'लोकप्रिय' श्रेणी की श्रेष्ठ पुस्तकें हैं ये-
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* 'How Prime Ministers Decide' - नीरजा चौधरी
- इतिहास की दिशा बदल देने वाले भारत के प्रधानमंत्रियों पर पुरस्कार विजेता पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार चौधरी की यह पुस्तक बताती है कि स्वतंत्र भारत में कुछ सबसे महत्त्वपूर्ण राजनीतिक निर्णय कैसे लिए गए थे. पुस्तक ऐतिहासिक महत्त्व के छह निर्णयों के चश्मे से देश के प्रधानमंत्रियों की कार्यशैली का विश्लेषण करती है. ये निर्णय थे: 1977 में आपातकाल के बाद अपनी अपमानजनक हार के बाद 1980 में सत्ता में वापसी के लिए इंदिरा गांधी की रणनीति; निर्णय की त्रुटियां जिसके कारण राजीव गांधी को शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करना पड़ा; वीपी सिंह ने सरकार बचाने के लिए मंडल आयोग की रिपोर्ट कैसे लागू की, जिसने समकालीन राजनीति का चेहरा हमेशा के लिए बदल दिया; पीवी नरसिम्हा राव का कुशल अनिर्णय जिसके परिणामस्वरूप बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ; तेजी से बदलते राजनीतिक परिदृश्यों ने कैसे घोषित शांतिवादी अटल बिहारी वाजपेयी को परमाणु उपकरणों के परीक्षण को हरी झंडी दिखाने वाले परमाणु समर्थक में बदल दिया; और सौम्य तथा पूरी तरह व्यावहारिक मनमोहन सिंह, जिन्हें व्यापक रूप से देश के सबसे कमजोर प्रधानमंत्रियों में से एक माना जाता है, ने कैसे संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक ऐतिहासिक परमाणु समझौते को सील करने के लिए राजनीतिक प्रतिष्ठान के भीतर हित समूहों और दुश्मनों को चुनौती दी- और द्विपक्षीय संबंधों को एक नए स्तर पर उन्नत किया. लेखिका ने प्रधानमंत्रियों, राजनीतिक प्रतिष्ठान के प्रमुख लोगों, नौकरशाहों, सहयोगियों, नीति-निर्माताओं और यहां तक कि सत्ता गलियारे के गिरोहबाजों के साथ किए सैकड़ों साक्षात्कारों के आधार पर- यह पुस्तक लिखी है जो राष्ट्रीय स्तर पर चालीस वर्षों की उच्च-स्तरीय रिपोर्टिंग से प्राप्त राजनीतिक परिदृश्य पर आधारित है.
- प्रकाशक: एलेफ बुक कंपनी
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* 'तुम्हारी औकात क्या है पीयूष मिश्रा' - पीयूष मिश्रा
- यह एक ऐसे अभिनेता का संस्मरण है, जो मंच पर होते हैं तो वहां उनके अलावा सिर्फ़ उनका आवेग दिखता है. जिन लोगों ने उन्हें मंडी हाउस में एकल अभिनय करते देखा है, वे ऊर्जा के उस वलय को आज भी उसी तरह गतिमान देख पाते होंगे. अपने गीत, अपने संगीत, अपनी देह और अपनी कला में आकंठ एकमेक एक सम्पूर्ण अभिनेता पीयूष अब फिल्में कर रहे हैं, गीत लिख रहे हैं, संगीत रच रहे हैं; और यह उनकी आत्मकथा है जिसे उन्होंने उपन्यास की तर्ज पर लिखा है. और लिखा नहीं; जैसे शब्दों को चित्रों के रूप में आंका है. इसमें सब कुछ उतना ही 'परफ़ेक्ट' है जितने बतौर अभिनेता वे स्वयं. न अतिरिक्त कोई शब्द, न कोई ऐसा वाक्य जो उस दृश्य को और सजीव न करता हो. मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक 'अनयूजुअल' से परिवार में जन्मा एक बच्चा चरण-दर-चरण अपने भीतर छिपी असाधारणता का अन्वेषण करता है; और क़स्बाई मध्यवर्गीयता की कुंठित और करुण बाधाओं को पार करते हुए धीरे-धीरे अपने भीतर के कलाकार के सामने आ खड़ा होता है- अपने आत्म के सम्मुख जिससे उसे ताज़िन्दगी जूझना है; अपने उन डरों के समक्ष जिनसे डरना उतना ज़रूरी नहीं, जितना उन्हें समझना है. उपन्यास का नायक हैमलेट, यानी संताप त्रिवेदी यानी पीयूष मिश्रा यह काम अपनी ख़ुद की कीमत पर करता है. यह आत्मकथा जितनी ग्वालियर, दिल्ली, एनएसडी, मुंबई, साथी कलाकारों आदि की बाहर की कहानी बताती है, उससे ज़्यादा भीतर की कहानी बताती है, जिसे ऐसी गोचर दृश्यावली में पिरोया गया जो कभी-कभी ही हो पाता है. इसमें हम दिल्ली के थिएटर जगत, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और मुंबई की फ़िल्मी दुनिया के कई सुखद-दुखद पहलुओं को देखते हैं; एक अभिनेता के निर्माण की आन्तरिक यात्रा को भी. और एक संवेदनशील रचनात्मक मानस के भटकावों-विचलनों-आशंकाओं को भी. इस किताब की सबसे बड़ी उपलब्धि है इसका गद्य. मिश्रा की कहन यहां अपने उरूज़ पर है.
- प्रकाशक: राजकमल पेपरबैक्स
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*'सिमसिम' - गीत चतुर्वेदी
यह एक ऐसे सिंधी नौजवान की कहानी है, जिसने 1947 के बंटवारे में न केवल अपनी मातृभूमि बल्कि अपनी पहली मुहब्बत भी खो दी. 1947 के भारत-विभाजन के कारण बसरमल जेठाराम पुरस्वाणी नामक नौजवान की मातृभूमि सिंध, पाकिस्तान में ही छूट गई. और साथ ही छूट गई उसकी पहली मुहब्बत! उसे वापस पाने के लिए उसने अपने जीवन का सबसे ख़तरनाक दुस्साहस किया. एक दरवेश ने उससे कहा, तुमने जो कुछ खोया है, वह तुम्हें किताबों में मिलेगा. उसने मुंबई में एक लाइब्रेरी खोल ली. क्या उसे वे सब चीज़ें मिल पाईं? मुंबई का लैंड माफ़िया उसके पीछे पड़ा हुआ है. अपने घर वालों से परेशान एक नौजवान मैनेजमेंट छात्र उससे मित्रता करता है और एक काल्पनिक प्रेम-संबंध की रचना करता है. जाने कितने बरसों से चुप मंगण मां एक गुड्डे को अपना बेटा समझ उसकी साज-संभाल करती है. एक बातूनी किताब की जिल्द इन सबके बीच आकर अपनी दारुण कथाएं सुनाती है. इन सारे चरित्रों के बीच 'सिमसिम' नाम का एक दरवाज़ा है, जिसे खोलने का मंत्र किसी को नहीं पता. यह स्मृति, यथार्थ और कल्पना का एक मार्मिक आख्यान है. इसके अंग्रेज़ी अनुवाद को 'पेन अमेरिका' ने विश्वस्तरीय 'पेन/हैम ट्रांसलेशन ग्रांट अवार्ड' किया है.
- प्रकाशक: हिन्द युग्म
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*'यार पापा' - दिव्य प्रकाश दुबे
- हारे हुए केस जीतना मनोज साल्वे की आदत ही नहीं शौक़ भी था. जब वह कोर्ट में दलील देने के लिए उठता तो जज भी अपनी कुर्सी पर पीठ सीधी करके बैठता. देश की लगभग सभी मैगज़ीन के कवर पर उसकी फ़ोटो आ चुकी थी. देश के सौ सबसे धारदार व्यक्तियों की सूची में उसका नाम पिछले दस साल से हिला नहीं था. देश का बड़े-से-बड़ा अभिनेता, नेता और बिज़नेसमैन सभी मनोज साल्वे के या तो दोस्त थे या होना चाहते थे. मनोज के बारे में कहा जाता था कि पिछले कुछ सालों में कोई भी उससे बड़ा वकील नहीं हुआ. ऐसे में जब लग रहा था कि मनोज के साथ कुछ ग़लत नहीं हो सकता है, ख़बर आती है कि मनोज की लॉ की डिग्री फ़ेक है. इस ख़बर को वह झुठला नहीं पाता. वो आदमी जो हर केस जीत सकता था, वह अपनी बेटी की नज़र में क्यों सबसे बुरा इंसान था? ऐसा क्या था कि उसकी बेटी साशा उससे बात नहीं कर रही थी? क्या मनोज अपनी पर्सनल लाइफ़, अपने करियर को फिर से पटरी पर ला पाएगा? मनोज की इस जंग में उसके अपने साथी कौन थे, और उनकी अपनी कहानी में क्या था. प्रकाशन के साथ ही छा जाने वाली किताब.
- प्रकाशक: हिन्द युग्म
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* 'महायुग उपन्यास त्रयी', रत्नेश्वर
- जिन्दा रहने के संघर्ष के साथ 32000 साल पहले मनुष्य के होंठों ने खाने और बोलने के अलावा होंठ-चुंबन किया. सहवास की अवधारणा के साथ संसार का पहला प्रेम और पहले परिवार की परिकल्पना भी शुरू हुई. संसार के पहले राज्य जंबू की स्थापना हुई और संसार को पहला सम्राटद्वय मिला. इसके राज गल्फ ऑफ खंभात की गहराइयों में आज भी छुपे हुए हैं, जहां हिमयुग में नगर होने के संकेत मिले हैं. संसार में अब तक मिली नगरीय सभ्यताओं में यह सबसे पुराना नगर होने का अनुमान है. विज्ञानियों-पुराविदों के नवीन शोध और खोज को केंद्र में रखकर महायुग उपन्यास-त्रयी लिखा गया है. 'महायुग उपन्यास त्रयी' के अंतर्गत '32000 साल पहले', 'हिमयुग में प्रेम' और 'पहला सनातन हिंदू' प्रकाशित हुई है, जो मनुष्यता के इतिहास और बदलाव की बात करता है. होमो इरेक्टस और अन्य प्रजातियों के संघर्ष के बीच उन दिनों संसार में सांस्कृतिक विकास के साथ कई नवीन प्रयोग हुए. इन्हीं लोगों ने पहली बार पालनौका, हिमवाहन और चक्के के साथ विविध अस्त्रों का निर्माण किया. परग्रहियों ने होमो सेपियंस के डीएनए का पुनर्लेखन किया. क्रोनोवाइजर सिद्धांत के आधार पर कुछ विज्ञानियों और पुराविदों ने समुद्र की गहराइयों से जीरो पॉइंट फील्ड में संरक्षित ध्वनियों को संगृहीत कर उसे फिल्टर किया. कड़ी मेहनत के बाद उनकी भाषा को डिकोड किया गया और उसे इंडस अल्ट्रा कंप्यूटर पर चित्रित किया गया. उनकी आवाजों से ही बत्तीस हजार साल पहले भारत के प्रथम ज्ञात पूर्वज की पूरी कहानी सामने आई.
- प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन
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* 'ज़हरख़ुरानी' - निर्मला भुराड़िया
- समकालीन यथार्थ के बनते-बिगड़ते स्वरूप में अतीत का संस्पर्श खोजते हुए इस कृति की रचनाकार बड़े प्रश्न उठाती हैं. उन्हें इस उपमहाद्वीप में विभाजन की खतरनाक चाल द्वारा दिए गए अविस्मरणीय घावों के बीच इतिहास से कोई सबक न लेने की फ़िक्र है. एक लोकेल विशेष से कथा को प्रारम्भ कर उपन्यासकार अपनी कथा-भाषा में यह सवाल पूरी गम्भीरता से खड़ा करती हैं कि राजनीति जब धर्म से जोड़ दी जाती है, तो किस किस्म के खतरे दरपेश होने लगते है. यहां वर्तमान की कथा-प्रमेय को हल करने के लिए वह बड़ी खूबसूरती से अतीत का खनन करती हैं और सम्मुख प्रश्नों के सटीक उत्तर खोजती हैं. मनुष्य समाज में सुकून के लिए बने कारक क्यों अशांति का सबब बनते गए, यह चिंता कथाकार के ज़ेहन में रची-बसी है. वह अपने परिवेश से कथा-तंतु चुनकर जहां एक रवानी भरी जुबान में उपन्यास का खूबसूरत ताना-बाना तैयार करती हैं, वहीं बड़े स्तर पर चल रही 'ज़हरख़ुरानी'को एक्सपोज भी करती हैं. उनकी मूल कथा-चिंता यह है कि अपने समय में आखिर हम कैसा मनुष्य बना रहे हैं जो न तो प्रश्नांकन कर सके और न विवेकपूर्ण असहमति ही जता सके. भारत और आसपास के मुल्कों तक फ़ैले इस कथा के तंतु जिस तरह अतीत के गुंजलक में उलझे हैं, उन्हें रचनाकार रेशा-रेशा सुलझाने-समझाने का काम बखूबी करती हैं. उनमें इंसानियत की तहजीब तो भरपूर है ही, वह समय की मार सहती स्त्री के दर्द को पूरी गम्भीरता से समझती हैं. इस उपन्यास से हम वर्तमान की अनेक गुत्थियों को सुलझाने की समझ हासिल कर सकते हैं.
- प्रकाशक: सामयिक प्रकाशन
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*'सलाम बॉम्बे: व्हाया वर्सोवा डोंगरी' - सारंग उपाध्याय
- ग्यारह किस्सों के जरिए, प्रेम की शक्ति और विश्वास की डोर तक पहुंचने वाला यह उपन्यास कई मायनों में अनूठा है. मुंबई के निम्न-मध्यवर्गीय जीवन का मिनिएचर बनाते हुए हिंदी कथा-साहित्य में एक दुर्लभ और विरल पाठकीय अनुभव की सर्जना करता है. राघव और सायरा जैसे दो यादगार किरदारों के जरिए रंग और बदरंग के बीच भावनात्मकता का उदास उत्सव मनाता है और सपनों का ताना-बाना बुनता है. ये देश और मुंबई के अतीत में हुए राजनीतिक घटनाक्रम के बीच घटित एक ऐसी प्रेम कहानी है जिसका परिवेश और परिदृश्य मछुआरा समुदाय पर आधारित है. उपन्यास मुंबई में रहने वाले मछुआरों के उस बड़े वर्ग के जीवन, उनके संघर्ष और उनके बीच पनपती उन संवेदनाओं को उजागर करता है जिस पर आमतौर पर हमारा ध्यान कम ही जाता है. साम्प्रदायिक हिंसा, आतंकी हमलों और विभाजन के दौर में उपन्यासकार मुंबई को उसकी सहजता, समरसता और उदात्त अभिलाषा के साथ नायक बनाकर प्रस्तुत करता है और उसकी आत्मा को एक कड़क कथात्मक सलाम ठोंकता है, वह आत्मा जिसका नाम 'जिजीविषा' है. साहित्य की आत्मा का नाम भी दरअसल यही है.
- प्रकाशक: राजकमल पेपरबैक्स
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* 'गेरबाज़: न यह ज़िन्दगी जीतने दे रही है और न मैं हारने को तैयार हूँ...' - भगवंत अनमोल
- परिस्थितियां मायने नहीं रखतीं, मायने रखती है, उम्मीद! मैं राघव, एक होनहार युवक जो सपने भी देखता है और उन्हें पूरा करने की चाहत भी रखता है. जिसे कच्ची उमर से ही एक साथी की तमन्ना है जिसके साथ दुनियाभर की ख़ुशियां अपने दामन में समेट ले, लेकिन वह यही नहीं कर पाता. ऐसा नहीं था कि नायक बिलकुल बोल नहीं पाता. पर हकलाहट ऐसा मर्ज़ है, जो भोगे वो ही समझे. जहां पर जज न किया जाए, वहां पर तो ये लोग ठीक बोल लेते हैं, लेकिन जहां कोई ज़रूरी बात हो, नया व्यक्ति हो, या फिर जज किया जा रहा हो, वहां ऐसी मानसिकता बन जाती कि आवाज़ निकलती ही नहीं, जीभ जैसे चिपक जाए. दांत किटकिटाने लगें, शरीर अकड़-सा जाए. आवाज़ न निकले. उपन्यास का नायक अपने जैसे हकलाने वालों के लिए एक संदेश के साथ आता है कि हार मानने की बजाय क्या करना चाहिए. उपन्यास के नायक ने हालातों से घबरा कर एक दिन दिल की ऐसी बात सुनी और वह करने की ठान ली, जिससे किसी को नहीं गुज़रना चाहिए. लेकिन, दस मंज़िली इमारत से कूदते वक्त जब किसी ने उसका हाथ थाम लिया तो किस्मत जैसे मुस्कुरा उठी! बमुश्किल एक शब्द बोल पाने से लेकर जीवन का मर्म समझाने तक की मार्मिक एवं प्रेरक कहानी.
- प्रकाशक: पेंगुइन स्वदेश
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*'मैमराज़ी: बजाएगी पपराजी का बैंड' - जयंती रंगनाथन
- सहज भाषा में लिखे किसी हल्के-फुल्के मज़ेदार, मनोरंजक और रोचक उपन्यास को यदि आप खोज रहे हैं तो आपकी तलाश इस कृति पर जाकर खत्म हो सकती है. इस उपन्यास में कोई एक मैमराज़ी नहीं है, जो बैंड बजा रही है बल्कि इसमें कई मैमराज़ियों का ज़िक्र है जो भिलाई शहर की स्टील प्लांट कॉलोनी के रहवासियों खासतौर पर उस कॉलोनी की महिलाओं के जीवन पर बुना गया है. इनमें जवान भी हैं, तो अधेड़ भी. भाभी भी हैं तो आंटी भी. यह उपन्यास आपको छोटे शहरों के लोगों के जीवन की अलमस्ती, निश्चिंतता, उनके बेवजह के अपनापे और किसी के भी जीवन में बेधड़क घुस जाने की उनकी सोच से मिलवाता है. जिन लोगों ने ऐसा परिवेश देखा है, वे इस उपन्यास के माध्यम से उस माहौल को दोबारा जी पाएंगे. और जिन्होंने ऐसा परिवेश नहीं देखा है, वे थोड़े हतप्रभ रह जाएंगे कि भई किसी के जीवन में क्या दूसरे लोगों की इतनी ताक-झांक, इतना दखल संभव भी है? भले ही ऐसे माहौल को न देख पाने वालों को यह लगे कि ऐसा संभव नहीं है, लेकिन यह उपन्यास इस तरह की कॉलोनी की मजेदार सच्चाई पर ही बुना गया है. एक जैसा जीवन जीने की आदी इस उपन्यास की महिलाओं के जीवन में रस ही इस बात से आता है कि वे दूसरों की बिन मांगे मदद करें. पर दूसरे के जीवन में यह घुसपैठ, जिसे वे मदद का नाम देती हैं, दरअसल किसी के जीवन का सिरदर्द या परेशानी का सबब बन सकता है इस बात का उन्हें कोई एहसास ही नहीं है. अपने कर्म-धर्म में लीन बड़ी निश्छल सी इन महिलाओं की नादानियों पर आपको हंसी भी आती है और इनसे प्यार भी हो जाता है. एक ऐसा उपन्यास जो न सिर्फ़ पाठक को गुदगुदाता है, बल्कि 'आगे क्या होगा' जानने की ललक भी बरकरार रखता है.
- प्रकाशक: हिन्द युग्म
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* 'क़ितराह' - सुषमा गुप्ता
- ज़िंदगी की कशिश थी यह जो मौत पर भारी थी... कहते हैं प्रेम के होने के लिए बस एक बहाना चाहिए. प्रेम वक्त और हालात नहीं देखता, प्रेम को दरकार होती है तो बस प्रेम करने वाले की. यह उपन्यास विद्रोह के बीच प्रेम की बात करता है. उपन्यास सीरिया की पृष्ठभूमि से बेदखल भारत पहुंची युवती की यहां पनपी प्रेम कहानी पर लिखा गया है. इसमें सीरिया का युद्ध क्षेत्र है, तो वहां के महिलाओं की स्थिति भी. सीरिया में हो रहे गृहयुद्ध से चोटिल देह और आत्मा लिए भारतीय मूल की एक सीरियाई लड़की भारत आती है. यहां उसकी मुलाक़ात भारतीय सेना के एक ऐसे ऑफ़िसर से होती है, जो आतंकवाद से लड़ने में अपना बहुत-कुछ गंवा चुका है. जीवन के सियाह रंगों से भरे ये दो लोग एक लंबी सड़क यात्रा पर निकल पड़ते हैं. इसी यात्रा के बीच घटित होता है गल्प. हालांकि यह पहले भी लड़की और लड़के के जीवन में 'घट' चुका है, लेकिन इस यात्रा में जो घटा वह इन दोनों को अतीत में घटी क्रूरता की गली के अंत तक छोड़ आता है. जहां से अकेले लौटने का साहस उनके पास नहीं है. यह कृति पाठकों को अपने पात्रों के साथ ऐसी यात्रा पर ले जाती है जिसे पढ़ते हुए वे भी अपने भीतर अनजाने और भुला दिए गए सपनों की ओर लौटने लगते हैं.
- प्रकाशक: हिन्द युग्म
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विशेष - टॉप 10 की इस सूची में वरिष्ठ पत्रकार संजीव पालीवाल का एका से प्रकाशित उपन्यास 'ये इश्क़ नहीं आसां' इसलिए शामिल नहीं किया जा सका कि वे इंडिया टुडे समूह का हिस्सा हैं, और साहित्य आजतक और साहित्य तक के प्रबंध संपादक हैं.
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वर्ष 2023 के 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' में शामिल सभी पुस्तक लेखकों, प्रकाशकों, अनुवादकों और प्रिय पाठकों को बधाई!
जय प्रकाश पाण्डेय