पुस्तक समीक्षाः अफसर अहमद की किताब बता रही 'औरंगज़ेब- नायक या खलनायक'

पत्रकार अफसर अहमद की किताब 'औरंगज़ेब- बचपन से सत्ता संघर्ष तक; नायक या खलनायक' मुगल शासक को लेकर समाज में व्याप्त मिथकों और भ्रमों का खुलासा करने के साथ ही उस दौर में घटित ऐतिहासिक आख्यानों का दस्तावेज है

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पुस्तकः औरंगज़ेब- नायक या खलनायक का कवर पुस्तकः औरंगज़ेब- नायक या खलनायक का कवर

जवाहर लाल नेहरू

  • नई दिल्ली,
  • 16 अप्रैल 2019,
  • अपडेटेड 10:29 AM IST

मुगल बादशाह औरंगज़ेब का नाम याद आते ही आमतौर पर हमारे जेहन में एक उन्मादी शासक, जो हिंदू विरोधी था कि छवि उभरती है. इसके साथ ही उसे लेकर दिमाग़ में जो भ्रांतियां मौजूद हैं वह भी बाहर आने लगती हैं. एक क्रूर आक्रांता, मूर्ति-मंदिर भंजक, भाइयों का हत्यारा... लोगों के दिलोदिमाग पर इ्स भ्रांति के पीछे लंबे समय से सुने गए किस्से शामिल हैं. संभव है इनमें से कई जानकारियां सही भी हों, मगर औरंगज़ेब इसके अलावा भी बहुत कुछ था, और किसी के बारे में किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले उसे समग्रता से जानने की कोशिश जरूर करनी चाहिए.

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पत्रकार अफसर अहमद की एक किताब आई है 'औरंगज़ेब- बचपन से सत्ता संघर्ष तक; नायक या खलनायक'. यह किताब औरंगज़ेब के जीवन काल में घटित ऐतिहासिक आख्यानों का दस्तावेज है. लेखक का लक्ष्य बड़ा है, जिसके लिए उन्होंने पहले ही 6 खंडों की सीरीज़ लिखने की घोषणा की है. 'औरंगज़ेब- बचपन से सत्ता संघर्ष तक' इस सीरीज का पहला खंड है. लेखक ने इस पुस्तक के 12 अध्यायों के माध्यम से औरंगज़ेब के जीवन की दास्तान बयान की है. पुस्तक के आलेख और विवरण उस दौर की नब्ज़ को पकड़कर उसके उतार-चढ़ाव को समझने और औरंगज़ेब के बचपन से सत्ता संघर्ष तक के सफर को रेखांकित करता है.

लेखक ने अपनी किताब में सभी संदर्भ बताए हैं और उनका मकसद है कि औरंगज़ेब के बारे में ग़लत धारणा बनाने से पहले उसे तथ्यों की कसौटी पर परखा जाए. इवोको पब्लिकेशंस से छपी 250 रुपए की यह किताब उन लोगों के लिए भी है, जो यह समझते हैं कि औरंगज़ेब के बारे में सब जानते हैं और उनके लिए भी है, जो नहीं जानते हुए भी इस भ्रम में रहते हैं कि वे सब जानते हैं. अफसर की यह किताब औरंगज़ेब से जुड़े मिथकों की दुनिया में दाखिल होकर उस दौर की सही और सटीक जानकारी दे जाती है.

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अगर आप इस किताब को आधार बनाकर औरंगज़ेब के बारे में गढ़ी गई धारणा को कसौटी पर कसा जाए और उससे संबंधित मिथकों या जानकारियों को परखा जाए तो पता लगेगा कि चीज़ें कहां से आ रही हैं और किस दिशा में जा रही हैं. हम सब की निगाहों, खासकर हिंदू और उसमें भी दक्षिणपंथी मान्यता औरंगज़ेब को एक बदनाम, क्रूर, धर्मांध, धर्मांतरण कराने वाला ऐसा बादशाह मानती है, जिसका ज़िक्र करना भी गुनाह है. राजनीति ने इस गुनाह के बोध को और गहरा किया है. मगर इसके पार औरंगज़ेब के हुकूमत के और भी रंग हैं, जिसकी झलक इस किताब में मिलती है.

यह पुस्तक 'नन्हा औरंगज़ेब' अध्याय से शुरू होती है और 'जंग-ए-अजीम का आग़ाज' के साथ अगली सीरीज की तरफ बढ़ जाती है. इस पुस्तक का यह आखिरी अध्याय भाइयों और पिता शाहजहां से विवाद की शुरुआत का जिक्र करती है. औरंगज़ेब का जन्म गुजरात के दाहोद में 24 अक्टूबर, 1618 को हुआ था. शाहजहां और मुमताज महल की वह छठी संतान थे. उन्होंने राज्य-विस्तार के लिए अनेक बड़ी-बड़ी लड़ाईयां लड़ीं. उनका शासन 1658 से लेकर उनकी मृत्यु 1707 तक चला. 48 सालों तक औरंगज़ेब ने हुकूमत की और 88 वर्ष तक ज़िंदा रहा. औरंगजेब का राज्य बहुत ही विस्तृत था, इस वजह से उस समय मुग़ल साम्राज्य सबसे विशाल और शक्तिशाली साम्राज्य माना जाता है. 1707 में जब औरंगज़ेब मरा तब तक मुगलिया सल्तनत भौगोलिक और आर्थिक आधार पर दुनिया की सबसे बड़ी राज्य व्यवस्था के रूप में स्थापित हो चुका था.

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औरंगज़ेब ने अपने भाइयों का क़त्ल ज़रूर किया, मगर तब, जब बाक़ी तीनों भाई भी उसके ख़ून के प्यासे हो चुके थे. मुग़ल सल्तनत में ऐसा कोई नियम नहीं था कि विरासत बड़े बेटे को ही मिलेगी. बेटों में कोई भी बादशाह हो सकता था. औरंगज़ेब ने मुगलों की अतार्किक परम्परा की बेटियों की शादी नहीं की जाएगी को खत्म कर अपनी बेटियों की शादी की. 1679 में दक्कन फतह के लिए दिल्ली छोड़ दिया और 1707 तक मारे जाने से पहले कभी दिल्ली नहीं लौटा. तख़्त पर बैठने से पहले अपनी जवानी के पहले हिस्से में 20 साल वह दिल्ली से बाहर ही रहा और युद्ध लड़ता रहा.

औरंगज़ेब मज़हबी था मगर जब भी मौका आया उसने राज्य के पक्ष में व्यावहारिक फ़ैसला लिया. मज़हब का पक्ष जब भी लिया धर्म से ज़्यादा कूटनीति के कारण लिया. वह संस्कृत भाषा से लगाव रखता था. अपने पिता शाहजहां को क़ैद करने का अपराध बोध उसका पीछा करता रहा. उस पर इल्ज़ाम था कि पिता को जेल भेज कर ग़ैर इस्लामिक काम किया है. इस किताब के पीछे अफसर का मकसद यह बताना है कि हिंदू बनाम मुस्लिम के खांचे में रखकर हम एक बादशाह की ऐतिहासिकता को नहीं समझ सकते हैं. उसके सही और निष्पक्ष मूल्यांकन के लिए समग्र नज़रिया अपनाना होगा. यह एक तथ्य है कि अपने इस प्रयास में अफसर अहमद सफल दिखते हैं.

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पुस्तकः औरंगज़ेब- नायक या खलनायक

लेखकः अफसर अहमद

विधाः इतिहास

प्रकाशकः इवोको पब्लिकेशंस

पृष्ठ संख्याः 146

मूल्यः 250/ रुपए

#  जवाहर लाल नेहरू इंडिया टुडे मीडिया इंस्टीट्यूट के छात्र हैं और 'बिहार तक' में प्रशिक्षु हैं.  

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