पद्मा सचदेव के निधन से साहित्य जगत में शोक, साहित्य अकादेमी ने जताया दुख

साहित्य में किताबें भी बहुत आएंगी और लिखने वाले भी बहुत होंगे, लेकिन पद्मा सचदेव के निधन से सहज मुस्कान के साथ लोक-जीवन की चितेरी चली गई. यह कहना है वरिष्ठ लेखिका चित्रा मुद्गल का.

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कवयित्री पद्मा सचदेव, एक अनूठा अंदाज [ फोटोः India Today ] कवयित्री पद्मा सचदेव, एक अनूठा अंदाज [ फोटोः India Today ]

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 04 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 8:17 PM IST

साहित्य में किताबें भी बहुत आएंगी और लिखने वाले भी बहुत होंगे, लेकिन पद्मा सचदेव के निधन से सहज मुस्कान के साथ लोक-जीवन की चितेरी चली गई. यह कहना है वरिष्ठ लेखिका चित्रा मुद्गल का. सच तो यह है कि कोरोना काल की भयावहता से उबर रहे लेखन जगत के लिए पद्मा सचदेव का जाना किसी झटके से कम नहीं है. हालांकि वह लंबे समय से बीमार थीं. साहित्य अकादेमी ने भी डोगरी कवयित्री, उपन्यासकार एवं साहित्य अकादेमी की महत्तर सदस्य पद्मा सचदेव के निधन पर शोक व्यक्त किया है.

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साहित्य अकादेमी ने शोक सभा बुलाई, जिसमें साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने कहा कि अपनी विलक्षण रचनात्मकता के नाते वे डोगरी एवं हिंदी साहित्य की अविस्मरणीय धरोहर बनी रहेंगी. साहित्य अकादेमी पद्मा सचदेव के परिवार के प्रति गहरी संवेदना और विनम्र श्रद्धांजलि निवेदित करती है. उनका निधन एक गहरे शून्य के साथ-साथ एक समृद्ध विरासत भी छोड़ गया है.

शोक सभा में सर्वप्रथम सचिव ने शोक संदेश पढ़ा एवं उसके बाद एक मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की. शोक सभा के बाद उनके प्रति सम्मान प्रकट करते हुए साहित्य अकादेमी के समस्त कार्यालयों को आज आधे दिन के लिए बंद किया गया.

साहित्य अकादेमी ने भी अपनी विज्ञप्ति में पद्मा सचदेव को याद करते हुए उनके जीवन-वृत्त के बारे में लिखा है कि पद्मा सचदेव डोगरी भाषा की प्रथम आधुनिक कवयित्री थीं, जो हिंदी में भी लिखती थीं. 1940 में संस्कृत विद्वानों के परिवार में जम्मू में जन्मीं पद्मा जी ने लोककथाओं और लोकगीतों की समृद्ध वाचिक परंपरा से पे्ररित होकर अपना कवि व्यक्तित्व बनाया. 1969 में अपने पहले कविता-संग्रह मेरी कविता मेरे गीत  के साथ राष्ट्रीय साहित्य परिदृश्य में पदार्पण किया. इस पुस्तक को 1971 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया था.

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लता मंगेशकर के पहले डोगरी संगीत एल्बम का श्रेय भी पद्मा को ही जाता है, जिसमें 'भला सिपाइया डोगरिया', 'तूं माला तूं' जैसे प्रसिद्ध गीत शामिल थे- जो आज भी लोग शौक से सुनते और याद करते हैं. सचदेव को शिक्षा और साहित्य में उनके योगदान के लिए 2001 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया था.

जम्मू कश्मीर कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी के अतिरिक्त सचिव अरविंदर सिंह अमन की अध्यक्षता में सचदेव के लिए यहां एक शोक सभा रखी गई. उन्होंने कहा, "डोगरी भाषा में सचदेव का योगदान अनुकरणीय है. वह डोगरी संस्कृति की जीवंत उदाहरण थीं." अमन ने कहा कि, पद्मा सचदेव को अपनी मातृ भाषा को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए याद किया जाएगा क्योंकि मशहूर बॉलीवुड गायकों द्वारा गाए उनके गीतों ने डोगरी को न केवल भारत में बल्कि दुनियाभर में लोकप्रिय किया. सचदेव का निधन जम्मू के लिए अपूरणीय क्षति है. उन्होंने कहा कि उन्हें डोगरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के संघर्ष में अहम भूमिका के लिए भी याद रखा जाएगा.

प्रोफेसर पुष्पेश पंत ने पद्मा सचदेव के साथ अपने 5 दशक पुराने रिश्ते को याद किया और कहा कि उन्हें बीमारी और पितृसत्ता को हराने वाले एक खुशमिजाज, उदार और जीवन से भरपूर व्यक्तित्व के रूप में याद किया जाएगा. पद्मा सचदेव ने डोगरी-कश्मीरी-पंजाबी विरासत का प्रतिनिधित्व किया. उनकी शादी एक सिख परिवार में हुई थी और उनके पति सुरिंदर सिंह प्रसिद्ध सिंह बंधु जोड़ी का हिस्सा रह चुके हैं, जो उस्ताद आमिर खान के शिष्य हैं. उनका अतीत दुखों से भरा था, लेकिन फिर भी, उन्होंने कभी इस पर चर्चा नहीं की और एक समृद्ध जीवन जीया.

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प्रोफेसर अमिताभ मट्टू ने पद्मा सचदेव को अपनी पीढ़ी की एक ऐसी अग्रणी डोगरी कवयित्री के रूप में याद किया, जिन्होंने भाषा के पुनरुद्धार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. वह ऐसी महिला थीं, जिन्होंने एक बुरी शादी छोड़ दी और दोबारा शादी कर ली, जो उस दौर में एक साहसी निर्णय था.

पद्मा सचदेव के साहित्य में भारतीय स्त्री के हर्ष और विषाद, विभिन्न मनोभावों और विपदाओं को स्थान मिला है. वह निरंतर अपनी भाषा, वर्तमान घटनाओं, त्यौहारों तथा भारतीय स्त्री की समस्याओं जैसे ज्वलंत विषयों पर समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं में लिखती रहीं. डोगरी में आठ कविता-संग्रह, 3 गद्य की पुस्तकें तथा हिंदी में 19 कृतियां; जिनमें - कविता, साक्षात्कार, कहानियाँ, उपन्यास, यात्रावृत्तांत तथा संस्मरण शामिल हैं, प्रकाशित हुए.

सचदेव की 11 अनूदित कृतियाँ भी प्रकाशित हैं, जिसमें उन्होंने डोगरी से हिंदी, हिंदी से डोगरी, पंजाबी से हिंदी तथा हिंदी से पंजाबी, अंग्रेज़ी से हिंदी तथा हिंदी से अंग्रेजी में भी परस्पर अनुवाद किया है. उनकी अनेक कहानियों टेली-धारावाहिकों तथा लघु फिल्मों में रूपांतरित किया गया तथा उनके हिंदी और डोगरी गीतों को व्यवासयिक हिंदी सिनेमा ने भी इस्तेमाल किया. उन्होंने अपनी भाषा को पहला संगीत डिस्क भी दिया, जिसमें न केवल गीत, बल्कि धुनें भी रची गईं और उन्हें लता मंगेशकर ने स्वरबद्ध किया.

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पद्मा सचदेव को साहित्य अकादेमी पुरस्कार के अलावा केंद्रीय हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार, मध्यप्रदेश सरकार द्वारा कविता के लिए कबीर सम्मान, सरस्वती सम्मान, जम्मू-कश्मीर अकादमी का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, साहित्य अकादेमी अनुवाद पुरस्कार तथा भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सहित कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए थे.

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