गीतकार शैलेंद्र के फिल्मी गानों का क्या कहना. एक से बढ़कर एक गीत. पर हिंदी साहित्य में उनको वह मुकाम क्यों नहीं मिला जिसके वे हकदार थे? शायद शैलेंद्र इसे जानते थे, इसीलिए वह शुरू में फिल्मों में नहीं लिखना चाहते थे. आज यह लगता है कि अगर शैलेंद्र ने फिल्मों के लिए गीत न लिखे होते, तो हमारा संगीत जगत कितने समुधुर गीतों से वंचित रह जाता. शंकरदास केसरीलाल उनका मूल नाम था.
शैलेन्द्र ने 18 जनवरी, 1957 को अपने मित्र विश्वेश्वर को लिखे एक ख़त में अपना आत्मपरिचय यों लिखा था. 30 अगस्त, 1923 में रावलपिंडी में पैदा हुआ. पिताजी फ़ौज में थे. रहने वाले हैं बिहार के. पिता के रिटायर होने पर मथुरा में रहे, वहीं शिक्षा पायी. हमारे घर में भी उर्दू और फ़ारसी का रिवाज था लेकिन मेरी रुचि घर से कुछ भिन्न ही रही. हाईस्कूल से ही राष्ट्रीय ख़याल थे. सन 1942 में बंबई रेलवे में इंजीनियरिंग सीखने आया. अगस्त आंदोलन में जेल गया. कविता का शौक़ बना रहा.
अगस्त सन् 1947 में श्री राज कपूर एक कवि सम्मेलन में मुझे पढ़ते देखकर प्रभावित हुए. मुझे फ़िल्म 'आग' में लिखने के लिए कहा, किन्तु मुझे फ़िल्मी लोगों से घृणा थी. सन् 1948 में शादी के बाद कम आमदनी से घर चलाना मुश्किल हो गया. इसलिए श्री राज कपूर के पास गया. उन्होंने तुरन्त अपने चित्र 'बरसात' में लिखने का अवसर दिया. गीत चले, फिर क्या था, तबसे अभी तक आप लोगों की कृपा से बराबर व्यस्त हूँ. मेरा विचार है कि इससे ज़्यादा लिखूँ तो परिचय संक्षिप्त न रहकर दीर्घ हो जायेगा.
जाहिर है, फिल्मों के लिए लिखकर और कई बार फिल्म फेयर अवार्ड पाकर भी शैलेंद्र का दिल हमेशा हिंदी साहित्य और कविता की ओर लगा रहा. तो शैलेंद्र की जयंती पर साहित्य आजतक पर पढ़िए उनकी दो चुनी हुईं कविताएं. जिनमें से एक उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू के लिए लिखी थी.
कविताः
1.
तुम्हारी मुस्कुराहट के असंख्य गुलाब
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