यही सोचना तय करेगा तुम्हारा भविष्यः प्रकृति, इंसान व कोरोना, एस आर हरनोट की दो कविताएं
कोरोना संकट के समय जब आदमजात अपने घरों में दुबक गया और प्रकृति मुस्कराने लगी तब अपने संवेदनशील मन से कथाकार एस. आर. हरनोट ने जो महसूस किया, उसे कविता की शक्ल में उतार दिया.
हिमालय की वादियों में उनकी सांसें धड़कती हैं, तो उसके पहाड़ों पर उनके दिल की धड़कन. हिमाचल ने जैसे अपने चितेरे रचनाकार के साथ एकात्मता बांध ली है. वह सामाजिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक परिवेश के रचनाकार हैं. प्रकृति और उसके सौंदर्य को उन्होंने न केवल जीया है, बल्कि उससे इस कदर एकाकार हैं कि उसे बचाने की हर मुहिम का हिस्सा बनते रहे हैं. अभी जब कोरोना संकट के समय आदमजात अपने घरों में दुबक गया और प्रकृति, पेड़, पहाड़, नद व नभ ही नहीं बल्कि उससे तादात्म्य रखने वाले पशु, पक्षी, जीव, जंतु, जलचर मुस्कराने लगे तब अपने संवेदनशील मन से एस. आर. हरनोट ने जो महसूस किया, उसे कविता की शक्ल में उतार दिया.
Advertisement
1.
तितलियां
तितलियां तमाम रंगों के साथ आने लगी है बालकनी में देर तक बैठी रहती हैं फूलों पर
कुछ चिड़िया निडर हो कर चुग जाती हैं दाना पी जाती हैं पानी
कबूतरों का एक दल अनायास ही चला आता है हर सुबह सजा लेता है बैंठ मांगने लग जाता है बाजरा
हवा अब नहीं चुभती आंखों में चांद और सूरज भी टहलते रहते हैं आंगन में
कतारों में खड़े देवदारू जैसे कर रहे हों प्रार्थना प्राइमरी स्कूल के प्रांगन में बच्चों की मानिंद निर्भय होकर
एक हिरनी अब दिख जाती है शहर की सुनसान सड़कों पर अपने नन्हों के साथ
सचमुच लगता है बाहर बहुत अर्से बाद आई होगी सुबह
और भीतर पसर गया है आदमखोर सन्नाटा भयंकर अंधेरा भीतर के अंधेरे कितने भयावह होते हैं आप डरने लगते हैं अपने हाथों से ही और बार-बार धोते जाते हैं साबुन या सेनेटाइजर से
मनुष्य की कैद और अप्रत्याशित भय जरूरी है प्रकृति के लिए ताकि वह भी ले सके सांस इस क्रूर आदमी की दुनिया में!
-कर्फ्यू समय, 10 अप्रैल, 2020
2-
यह कविता नहीं है
तुमने नदियां गायब कीं पहाड़ों की चोटियों से बर्फ छीनी हिरन मोर मोनाल और जुजुराना के समूह ख़तम किए जंगलों से पेड़ और मैं खामोश रही
तुमने अत्याधुनिक मशीनें बनाई कामगारों के शरीर का पसीना और छीन लिए उनके हाथों के छाले किसानों की जमीनें और लिखारियों की कलमें मैंने कुछ नहीं बोला
तुमने तितलियों के रंग बिछा दिए राजनीतिक मंचों पर हवा को कैद कर लिया वातानुकूलित बंगलों में और पानी को बोतलों में मैं फिर भी चुप रही
तुमने गांव के लोगों से छीन लिए उनके मिट्टी के घर गायब कर दिए घराट पानी की कूहलें बावड़ियों से निर्मल जल और चुरा ली सारी पगडंडियां मैंने आह तक नहीं भरी
आज जब तुम्हारे हाथ पहुंचने लगे मेरे आंचल तक विछिन्न करने लगे मेरी अस्मिता मेरा सर्वस्व छीन कर चल दिए एक नई दुनिया बसाने चांद की धरती पर मुझ से रहा न गया मैंने पल भर में समाप्त कर दिया तुम्हारा स्वांग तुम फंसते चले गए अपने ही निर्मित किए चक्रव्यूह में और होना पड़ा कैद अपने ही घरों में और मैने हासिल कर लिया स्वराज जिसके लिए तुम लड़ते रहे बरसों आतताइयों के साथ
देखो मनुष्य! देखो इस अंधकार को महसूस करो भीतर के एकाकीपन और सन्नाटे को बाहर सबकुछ यथावत है सूरज चांद नदियां और हवा फिर भी तुम्हारे पास न रोशनी बची है न हवा आज तुम न हिन्दू हो न मुसलमान न सिख न ईसाई न तुम्हारी कोई जाति निष्क्रिय है तुम्हारे सारे हथियार एक निरीह प्राणी सबकुछ होते हुए भी निहत्थे
निहत्थे लोग केवल सोच सकते हैं यही सोचना तय करेगा तुम्हारा भविष्य और मृत्यु से लड़ते रहने का अदम्य साहस.
aajtak.in