ई-सिगरेट के जानकार डॉ. अजय लेखी ने सरकार के पूरी तरह से ई सिगरेट के बैन को सही बताते हुए कहा कि स्कूलों के पास ई-सिगरेट पूरी तरह से बैन हो जानी चाहिए. जबकि इन जगहों पर धड़ल्ले से सिगरेट बिक रही है.
आम सिगरेट की तरह ही ई सिगरेट नुकसानदेह
अजय लेखी कहते हैं कि ई-सिगरेट का धुआं इंसानी फेफड़ों को आम सिगरेट जैसा ही नुकसान पहुंचाता है. अगर किसी टीचर ने किसी बच्चे से गुटखा मंगाया तो उस स्टाफ या टीचर के खिलाफ सख्त कारवाई की जानी चाहिए.
उन्होंने कहा कि सबसे खतरनाक बात ये है कि बच्चों और नाबालिगों को रिझाने के लिए ई सिगरेट अलग-अलग फ्लेवर के साथ ही कैंडी के फॉर्म में भी बाजारों में उपलब्ध है. इनहेलर की तरह छोटी क्लास से बच्चा कैंडी की शक्ल में ई सिगरेट पकड़ना शुरू करता है जो बाद में आम सिगरेट को पीने लगता है.
ऑर्गेनाइज्ड क्राइम की तरह चल रहा कारोबार
ई-सिगरेट का कारोबार मॉल में, फ्लाईओवर के नीचे, पान की दुकानों में, शाहदरा के छोटे बाजार में, कस्तूरबा नगर, 2 नंबर लोनी रोड, किसी पुल के नीचे कई जगहों पर देखा जा सकता है. एक आंकड़े के मुताबिक दिल्ली में ई सिगरेट का सालाना कारोबार 4000 करोड़ रूपये का है.
दिल्ली पुलिस से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि यह एक ऑर्गेनाइज्ड क्राइम की तरह से शहर में ऑपरेट हो रहा है, जिसमें गैंग के बदमाश ई सिगरेट बेचे जाने के लिए छोटे बच्चों का इस्तेमाल कर रहे हैं और इसके एवज़ में 50 से 100 रूपये देते हैं.
इस वजह से होता है कैंसर
आईएमए एकेडमी ऑफ पैरामेडिकल के डीन डॉक्टर डीआर राय ने बताया कि ई-सिगरेट में लिक्विड टाइप का निकोटीन होता है, जो वेपर बनकर इनहेल किया जाता है. इसकी कई श्रेणियां बाजार में उपल्बध हैं. इन्हें गर्म करने के वजह से शरीर के अंदर हेवी मेटल पार्टीकल चले जाते हैं. जो कारसिनोजेनिक होता है और कैंसर की वजह बनता है.
भारत सरकार ने अभी बैन किया जबकि कनाडा, सिंगापुर जैसे देशों में यह पहले से बैन है, यूरोपियन देशों ने इस पर काफी रेगुलेशन रखा है. ये सिगरेट का एक रिफाइंड मोड है.
एम्स के पूर्व डीन व कैंसर विशेषज्ञ डॉ. पी.के. जुल्का ने बताया कि ई सिगरेट में निकोटिन आम सिगरेट से कम भले हो लेकिन इसमें मौजूद केमिकल कैंसर का कारण बनता है तभी तो अक्सर देखने में आता है एक नॉन स्मोकर को लंग कैंसर हो सकता है. यह पैसिव स्मोकिंग का बड़ा उदाहरण है.
राम किंकर सिंह