'यहां जय बद्री विशाल, जय केदार क्यों नहीं?', देहरादून एयरपोर्ट पर बौद्ध मंत्रों को देख भड़के शंकराचार्य

उत्तराखंड के देहरादून पहुंचे शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने जब हवाई अड्डे पर बौद्ध कलाकृति देखी तो चिंता प्रकट करते हुए बोले की एयरपोर्ट के खंभों पर बौद्ध धर्म का मंत्र लिखा गया है. उन्होंने कहा कि क्या इन खंबों पर जय बद्री विशाल, जय केदार बाबा, जय यमुने, जय भगवान शंकराचार्य नहीं हो सकता था?

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देहरादून एयरपोर्ट का नाम बदलने की भी उठी मांग देहरादून एयरपोर्ट का नाम बदलने की भी उठी मांग

अंकित शर्मा

  • देहरादून,
  • 17 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 8:43 PM IST

जोशीमठ पर मंडरा रहे संकट के बीच शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद आज उत्तराखंड पहुंचे. वहां पहुंचकर उन्होंने देहरादून हवाई अड्डे पर जब बौद्ध कलाकृति देखी तो चिंता प्रकट करते हुए बोले की एयरपोर्ट के खंभों पर बौद्ध धर्म का मंत्र लिखा गया है. उन्होंने सवाल खड़े किए कि क्या इन खंबों पर जय बद्री विशाल, जय केदार बाबा, जय यमुने, जय भगवान शंकराचार्य नहीं हो सकता था? 

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एयरपोर्ट पर पहुंचकर वो बोले कि 8 के 8 सभी खंबों पर आप बौद्ध धर्म के मंत्रों को लिख दे रहे हो. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वह बौद्ध धर्म के विरोधी नहीं हैं, वे बौद्ध धर्म का सम्मान करते हैं. वे हमारे ही लोग हैं. लेकिन देवभूमि उत्तराखंड का हवाई अड्डा एक दृष्टिकोण से इन धामों में दर्शन को जाने के लिए प्रवेश द्वार है. यह चारधाम देवभूमि है.

एयरपोर्ट का नाम बदलने की मांग

इसके साथ ही ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने देहरादून जॉलीग्रांट एयरपोर्ट को आदि जगद्गुरु शंकराचार्य एयरपोर्ट करने की मांग की है. शंकराचार्य ने कहा कि उत्तराखंड देवभूमि है, इसलिए भगवान की इस पुण्य धरती से सनातन धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार व संदेश भारत के साथ-साथ विश्व में जाना चाहिए.

देवभूमि पहुंचे शंकराचार्य

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बता दें कि छत्तीसगढ़ से अपने तमाम कार्यक्रमों को रोकते हुए जोशीमठ आपदा में पीड़ितों का हालचाल जानने औक जोशीमठ रक्षा महायज्ञ शुरू करने के लिए शंकराचार्य देवभूमि पहुंचे थे. वे जोशीमठ से वापस आकर देहरादून हवाई अड्डे से प्रयागराज के लिए जा रहे थे तभी उनकी नजर एयरपोर्ट के खंबों पर पड़ी.

जोशीमठ संकट से निपटने के लिए होंगे धार्मिक अनुष्ठान

इसके अलावा गढ़वाल इलाके के श्रीनगर में उन्होंने कहा कि पहाड़ी इलाकों में जिस तरह से अनियोजित और अंधाधुंध तरीके से विकास किया जा रहा है इसी वजह से लगातार विनाश हो रहा है. वे बोले कि बड़ी-बड़ी परियोजनाओं के चलते आसपास रहने वाले लोग भी से प्रभावित होते हुए दिखाई दे रहे हैं. जोशीमठ इसका ताजा उदाहरण है. साथ ही स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि जोशीमठ को बचाने के लिए आध्यात्मिक तरीका भी अपनाया जा रहा है. आगामी 100 दिनों तक जोशीमठ में धार्मिक अनुष्ठान किए जाएंगे. 

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