मंगलवार को परमहंस रामचंद्र दास की समाधि पर कई साधुओं ने हवन का आयोजन किया. संतों का कहना है कि परमहंस के योगदान को पीएम मोदी के कार्यक्रम में याद नहीं किया जा रहा है, ना ही किसी तरह का स्थान दिया जा रहा है. ऐसे में उन्होंने मांग की है कि पीएम मोदी इसमें भूल सुधार करें.
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आपको बता दें कि परमहंस रामचंद्र दास की गिनती उन संतों में होती है, जिन्होंने सबसे शुरुआत में राम मंदिर आंदोलन की अगुवाई की थी. साथ ही लगातार देशभर में आवाज उठाकर लोगों को इकट्ठा करने का काम किया था.
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने परमहंस रामचंद्र दास के निधन पर अंतिम कार्यक्रम में शामिल होकर कहा था कि परमहंस का आंदोलन में सबसे बड़ा योगदान है. उस वक्त एक शिला भेंट की गई थी, जिसका इस्तेमाल राममंदिर निर्माण में किया जाना था.
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दरअसल, 22 दिसंबर 1949 की रात को जब रामजन्मभूमि में विवादित स्थल पर रामलला की मूर्ति रखी गई थी. उसके बाद से हर कोई हैरान था और वही घटना आगे जाकर कानूनी लड़ाई का कारण बनी थी. उसी घटना ने रामजन्मभूमि आंदोलन को एक नया कलेवर दिया, जिसे अमलीजामा पहनाने वाले प्रमुख लोगों में परमहंस रामचंद्र दास भी रहे. हाल ही में 31 जुलाई को परमहंस की 17वीं पुण्यतिथि थी.
शिवेंद्र श्रीवास्तव