आगरा में स्थाई लोक अदालत ने बड़ा फैसला सुनाया है. मामला साल 1991 से जुड़ा है. दरअसल, आनंद शर्मा ने डॉक्टर भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा से पीएचडी की थी, लेकिन 29 साल का लंबा अंतराल बीत जाने के बाद भी विश्वविद्यालय प्रशासन आनंद शर्मा को पीएचडी की उपाधि नहीं दे पाया.
वादी के वकील लक्ष्मी चंद बंसल ने बताया कि 1991 में आनंद शर्मा ने अपना शोध पूरा कर लिया था, लेकिन 29 साल विश्वविद्यालय के चक्कर लगाने के बाद भी विश्वविद्यालय आनंद शर्मा को पीएचडी की उपाधि नहीं दे पाया. आनंद शर्मा ने हर जतन किये लेकिन उनकी मौत हो गई और पीएचडी की उपाधि पाने का उनका सपना अधूरा रह गया.
आनंद शर्मा के वकील बताते हैं कि आनंद शर्मा ने अपनी डिग्री पाने के लिए थक हार कर वर्ष 2018 में न्यायालय में शिकायत दर्ज कराई, 3 साल बाद माननीय स्थाई लोक अदालत ने फैसला सुनाया है, फैसला आनंद शर्मा की पक्ष में आया है. मामले की सुनवाई करने के बाद स्थाई लोक अदालत ने विश्वविद्यालय पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया है.
इसके साथ ही कोर्ट ने आदेश किया है कि अगर 60 दिनों के अंदर विश्वविद्यालय ने तय जुर्माना नहीं भरा तो विश्वविद्यालय प्रशासन को छह प्रतिशत का अतिरिक्त चार्ज भी देना होगा. बताया जा रहा है कि कोरोना काल में आनंद शर्मा की मृत्यु हो गयी लेकिन उन्हें उपाधि नहीं मिल पाई.
शोध उपाधि ना मिलने के कारण आनंद शर्मा ताउम्र 8000 की नौकरी करते रहे. आनंद शर्मा ने अपनी शोध उपाधि पाने के लिये आरटीआई भी डाली थी, लेकिन न तो उन्हें जवाब मिला न ही उपाधि.
अरविंद शर्मा