BJP से रामलाल को हटाने के पीछे RSS की बड़ी योजना, चलाएंगे मिशन 36

बीजेपी में संगठन महामंत्री पद से हटाए जाने के बाद क्या रामलाल का कद घट गया? RSS के सूत्र इससे इनकार करते हुए कहते हैं कि ऐसा वही कह रहे हैं, जिन्हें संघ के काम करने के तौर-तरीकों और पदों की अहमियत की जानकारी नहीं है.

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रामलाल (दाएं) अब संघ में जिम्मेदारी निभाएंगे. (फोटो-फेसबुक पेज से) रामलाल (दाएं) अब संघ में जिम्मेदारी निभाएंगे. (फोटो-फेसबुक पेज से)

नवनीत मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 15 जुलाई 2019,
  • अपडेटेड 9:01 AM IST

भारतीय जनता पार्टी (BJP) में पिछले 13 वर्षों से संगठन महामंत्री पद पर काम करने वाले रामलाल की विदाई चर्चा में है. संघ ने 2006 में उन्हें बीजेपी में भेजा था और अब फिर वापस बुलाकर अखिल भारतीय सह संपर्क प्रमुख बनाया है. राजनीतिक गलियारे में रामलाल का कद घटने की चर्चा है. मगर, बीजेपी और आरएसएस की राजनीति से जुड़े सूत्र ऐसा नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि बीजेपी के संगठन महामंत्री पद से हटने पर रामलाल का ग्लैमर भले कम हो जाए और पहले की तरह आम कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों से सीधा नाता भले नहीं रहेगा, मगर संघ में अखिल भारतीय सह संपर्क प्रमुख का पद बेहद अहम है. उनका रुतबा बरकरार रहेगा. इस पद पर रहने वाला व्यक्ति संघ के अंदर नहीं बल्कि बाहर रहकर अनुषांगिक संगठनों का विस्तार करता है. उसका काम अहम लोगों से संपर्क कर आरएसएस के लिए उनकी मदद हासिल करना का होता है.

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सूत्रों का कहना है कि इस पद की अहमियत सिर्फ संघ की कार्यप्रणाली को समझने वाले ही समझ सकते हैं. 13 साल से भी अधिक समय तक रामलाल के एक ही पद पर बने रहने से उनके दायित्व में परिवर्तन तय माना जा रहा था. आखिर 11 से 13 जुलाई को विजयवाड़ा में चली प्रांत प्रचारकों की बैठक में उन्हें बीजेपी के संगठन महामंत्री से हटाकर संघ में नई जिम्मेदारी देने का फैसला हुआ. संगठन महामंत्री पद से रामलाल को हटाने की बात पर संघ के एक प्रचारक कहते हैं," क्या आप चाहते हैं कि कोई आजीवन बीजेपी में एक ही पद पर बना रहे. इसे हटाना नहीं, दायित्व परिवर्तन कहते हैं. यह तो एक स्वाभाविक प्रक्रिया है."

बीजेपी के संपर्कों से संघ के 36 संगठनों का करेंगे विस्तार

संघ के रणनीतिकारों का मानना है कि हालिया वर्षों में 'संघ परिवार' में शामिल सहयोगी संगठनों में सबसे ज्यादा विस्तार इसकी राजनीतिक शाखा बीजेपी का हुआ है. यह दीगर है कि संघ एक रणनीति के तहत सार्वजनिक रूप से बीजेपी को अपनी राजनीतिक शाखा नहीं मानता. संघ के अन्य 36 अनुषांगिक संगठन विस्तार और मजबूती के मामले में बीजेपी के मुकाबले काफी पीछे चल रहे हैं. ऐसे में संघ अब अन्य 36  संगठनों को भी बीजेपी के समानांतर लाने की कोशिश में है. ताकि संघ परिवार में संतुलन का संकट न खड़ा हो.

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संघ का मानना है कि आरएसएस में ही पूरी जिंदगी बिता देने वाला कोई प्रचारक उतने करीने से यह काम नहीं कर सकता, जितना कि बीजेपी में रहकर बड़े-बड़े संपर्क रखने वाला प्रचारक. क्योंकि संघ के सेवा भारती, स्वदेशी जागरण मंच सहित अन्य सभी संगठनों के कार्यों के लिए जरूरी संसाधन और फंड भी चाहिए. इस पैमाने पर आरएसएस की नजर में रामलाल ही फिट बैठे.

आरएसएस सूत्रों ने AajTak.in को बताया कि 13 वर्षों से बीजेपी में बड़े ओहदे पर रहते हुए रामलाल की बीजेपी के केंद्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों से लेकर ब्यूरोक्रेसी और व्यापार आदि क्षेत्रों के प्रमुख व्यक्तियों से अच्छे संपर्क बने हैं. ऐसे में आरएसएस उनकी 'यूटिलिटी वैल्यू' को जानते हुए उसका फायदा संघ के संगठनों के विस्तार में लेना चाहता है.

संघ के एक सूत्र ने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर सेवा भारती के किसी प्रोजेक्ट के लिए धनराशि और अन्य संसाधनों की जरूरत हो तो रामलाल के कह देने मात्र से केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री या अन्य प्रभावशाली लोग कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी से बंदोबस्त कर सकते हैं. जबकि दूसरे प्रचारकों के कहने पर इतना फर्क नहीं पड़ सकता. नागपुर के संघ विचारक दिलीप देवधर कहते हैं, 'मुझे तो लगता है कि संघ रामलाल को आज का नानाजी देशमुख बनाना चाहता है. नानाजी ने चित्रकूट आदि स्थानों पर सेवाकार्यों से बड़ी पहचान बनाई, अब संघ चाहता है कि रामलाल भी संघ के अनुषांगिक संगठनों के जरिए नाना की सामाजिक कार्यों की मुहिम को और आगे बढ़ाएं.'

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गोविंदाचार्य, जोशी से अलग है मामला

रामलाल की बीजेपी के संगठन महामंत्री पद से विदाई को एक धड़ा केएन गोविंदाचार्य और संजय जोशी की विदाई से भी जोड़कर देख रहा है, जबकि आरएसएस सूत्रों का कहना है कि रामलाल का मामला पूरी तरह अलग है. अटल बिहारी वाजपेयी  से मतभेदों के चलते केएन गोविंदाचार्य को पद छोड़ना पड़ा था. वाजपेयी को उन्होंने बीजेपी का मुखौटा कह दिया था. जिसके बाद वाजपेयी ने संघ से साफ कह दिया था कि वह गोविंदाचार्य को बीजेपी मे नहीं देखना चाहते. बाद में आडवाणी ने भी वाजपेयी का समर्थन किया था.

वहीं 2005 में कथित सेक्स सीडी सामने आने के बाद संजय जोशी को भी संगठन महासचिव का पद छोड़ना पड़ा था. जिसके बाद से दोनों दिग्गज न संघ में किसी भूमिका में दिखे और न ही बीजेपी में उनकी वापसी हुई. आज तक बीजेपी और संघ से किनारे हैं. जबकि बीजेपी महामंत्री पद से हटाए जाने के बाद भी रामलाल को संघ में अहम जिम्मेदारी से नवाजा गया है. जाहिर है कि रामलाल की प्रासंगिकता संघ और बीजेपी में बनी रहेगी. संपर्क प्रमुख का काम ही संघ और दूसरे संगठनों से लेकर बाहरी व्यक्तियों को जोड़ने का है.

क्यों सह संपर्क ही बने रामलाल

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रामलाल अखिल भारतीय सह प्रमुख क्यों बने, संपर्क प्रमुख क्यों नहीं बने. यह भी सवाल उछल रहा है. आरएसएस सूत्रों का कहना है कि मार्च में होने वाली प्रतिनिधि सभा की बैठक में ही प्रमुख पदों पर नियुक्तियां हो जाती हैं. आरएसएस के संविधान के मुताबिक नियुक्ति हो जाने पर बीच में हटाया नहीं जाता, बल्कि आगामी बैठक में ही कोई निर्णय होता है. चूंकि इस वक्त अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख अनिरुद्ध देशपांडे हैं. ऐसे में सह प्रुमख के तौर पर रामलाल को संघ में समायोजित किया गया. आरएसएस सूत्रों का कहना है कि अगले साल मार्च में होने वाली प्रतिनिधि सभा की बैठक में हो सकता है कि रामलाल को अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख बना दिया जाए.

संघ में पद नहीं व्यवस्था चलती है, चर्चित है रज्जू भैया का केस

नागपुर के संघ विचारक दिलीप देवधर AajTak.in से कहते हैं कि संघ में पद नहीं व्यवस्था होती है. इससे जुड़ा वह एक रोचक वाकया बताते हैं. वे कहते हैं कि तब बालासाहब देवरस संघ के प्रमुख थे. रज्जू भैया को उन्होंने अपना डिप्टी यानी सरकार्यवाह बनाया था. इस बीच 1987 में रज्जू भैया ने अपना सर कार्यवाह का पद एचवी शेषाद्रि को सौंप दिया और खुद उनके सहयोगी यानी सह- सर कार्यवाह बन गए. इस पर आरएसएस में हंगामा मच गया कि कैसे रज्जू भैया अपने जूनियर को ही अपने ऊपर बैठा रहे हैं.

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इस पर तत्कालीन संघ प्रमुख देवरस ने भी रज्जू भैया से नाराजगी जाहिर करते हुए पूछा था कि आपको इस नियुक्ति का अधिकार किसने दिया. इस पर रज्जू भैया ने कहा था कि संघ के संविधान में सरकार्यवाह ही कार्यकारी प्रमुख होता है, जबकि संघ प्रमुख की भूमिका मार्गदर्शक की होती है. रज्जू भैया ने देवरस से कहा था- आप और हम दोनों बीमार चल रहे हैं, ऐसे में किसी ऊर्जावान प्रचारक को संघ में नंबर दो होना चाहिए. तब जाकर देवरस राजी हुए. रज्जू भैया के इस फैसले से संदेश गया कि संघ में कोई पद छोटा, बड़ा नहीं होता, जिम्मेदारी बड़ी होती है. जिसे हम पद समझते हैं, वह व्यवस्था होती है. अगर एक सामान्य कार्यकर्ता को बड़ी जिम्मेदारी मिली है तो वह अहम पद पर बैठे संघ पदाधिकारी से भी महत्वपूर्ण है.

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