उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने रविवार को लोगों से नई शिक्षा नीति के मसौदे को पढ़ने और बहस करने की अपील की. उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि मसौदे को बिना पढ़े जल्दबाजी में किसी नतीजे पर न पहुंचा जाए. उन्होंने कहा कि शिक्षा के मुद्दे काफी अहम हैं और सभी लोगों को उन पर ध्यान देना चाहिए.
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि स्कूल बस्ते का बोझ कम करना, खेल को बढ़ावा देना, नैतिक शिक्षा को शामिल करना हमारे कोर्स का हिस्सा होना चाहिए. उनकी यह टिप्पणी तब आई है जब कई राज्यों में नई शिक्षा नीति के मसौदे को लेकर विरोध शुरू हो गया है. तमिलनाडु में डीएमके और अन्य दलों ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे का विरोध करते हुए आरोप लगाया है कि यह हिंदी ‘थोपने’ की तरह है और वे इसे हटाना चाहते हैं.
वेंकैया नायडू ने विशाखापट्ट्नम में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा, "मैं हर किसी से आग्रह करता हूं....जल्दबाजी में कोई निष्कर्ष न निकालें. पूरी रिपोर्ट देखें, पढ़ें, चर्चा करें और विश्लेषण करें और तब प्रतिक्रिया करें, ताकि सरकार चर्चा के बाद उस पर कार्रवाई कर सके." उन्होंने कहा कि शिक्षा के प्रमुख मुद्दों के लिए लोगों के अलग अलग विचार बहुत अहम हैं और इन पर सभी संबंधित लोगों के ध्यान देने की जरूरत है.
वेंकैया नायडू ने तमिलनाडु के राजनीतिक दलों का हवाला देते हुए कहा, "हमारे देश में कुछ लोगों की आदत है कि वे राजनीतिक या अन्य कारणों से अखबारों में हेडलाइन देखकर तत्काल कुछ कहने लग जाते हैं." तमिलनाडु की पार्टियों ने आरोप लगाया है कि प्रस्तावित नीति का मकसद हिंदी थोपना है. उन्होंने कहा, "हमें भाषा पर लड़ाई नहीं करनी चाहिए."
वेंकैया नायडू ने सुझाव दिया कि देश की एकता के लिए उत्तर भारतीयों को एक कोई दक्षिण की भाषा सीखनी चाहिए और दक्षिण भारतीयों को उत्तर भारत की कोई एक भाषा सीखनी चाहिए. उन्होंने कहा कि मसौदा नीति में प्रस्ताव किया गया है कि कम से कम कक्षा पांचवीं तक के बच्चों को और आदर्श रूप में कक्षा आठवीं तक के बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, "बच्चे अपनी मातृभाषा में बेसिक बातों को समझ पाते हैं. अंग्रेजी भी सीखने की जरूरत है लेकिन वह अपने बेसिक मजबूत होने के बाद."
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