यूनिफॉर्म सिविल कोड के मामले में अब तक कोई ठोस प्रयास नहीं: SC

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी नागरिकों के लिए एक यूनिफॉर्म सिविल कोड बनाने की दिशा में अभी तक कोई कदम नहीं उठाया गया. संविधान निर्माता भी यूनिफॉर्म सिविल कोड के पक्ष में थे. यही वजह थी कि संविधान के अनुच्छेद 44 में सरकार को यूनिफॉर्म सिविल कोड बनाने के लिए निर्देशित किया गया है.

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सुप्रीम कोर्ट ने पुर्तगाली सिविल कोड को साइनिंग इग्जाम्पल बताया सुप्रीम कोर्ट ने पुर्तगाली सिविल कोड को साइनिंग इग्जाम्पल बताया

अनीषा माथुर

  • नई दिल्ली,
  • 13 सितंबर 2019,
  • अपडेटेड 11:58 PM IST

  • गोवा में सभी धर्म पर एक समान लागू होता है पुर्तगाली सिविल कोड
  • गोवा में कोर्ट की इजाजत से ही मुस्लिम दे सकते हैं तलाक

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर से देश के सभी नागरिकों के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड बनाने की बात कही है. साथ ही पुर्तगाली सिविल कोड को लागू करने के लिए गोवा की जमकर तारीफ की है. पुर्तगाली सिविल कोड गोवा के सभी धर्म के लोगों पर समान रूप से लागू होता है. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जोसे पौलो कूटिन्हो बनाम मारिया लुइजा वैलेंटाइन पेरेइरा मामले में फैसला सुनाते हुए यह टिप्पणी की.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश के सभी नागरिकों के लिए एक यूनिफॉर्म सिविल कोड बनाने की अभी तक कोई कोशिश नहीं की गई. सुप्रीम कोर्ट के कहा कि हमने खुद यूनिफॉर्म सिविल कोड बनाने को कहा था, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है.

जस्टिस दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि भारत में गोवा राज्य यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर साइनिंग इग्जाम्पल है. गोवा राज्य में पुर्तगाली सिविल कोड सभी धर्म के लोगों पर समान रूप से लागू है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गोवा में पुर्तगाली सिविल कोड 1867 लागू है, जिसके तहत उत्तराधिकार निर्धारित होता है. गोवा के बाहर भारत के किसी कोने में रहने वाले उन लोगों के संपत्ति के अधिकार भी पुर्तगाली सिविल कोड के तहत निर्धारित होते हैं, जो गोवा के बाशिंदे हैं.

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बिना कोर्ट की इजाजत के गोवा में मुस्लिम नहीं दे सकते तलाक

इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने गोवा सिविल कोड के प्रावधानों की भी तारीफ की, जिसके तहत शादी के पहले और शादी के बाद पति और पत्नी को संपत्ति में समान अधिकार दिया जाता है. गोवा में मुसलमानों को बहुविवाह और बोलकर तलाक देने की इजाजत नहीं हैं. इसका मतलब यह हुआ कि कोई भी मुसलमान अपनी पत्नी को खुद तलाक नहीं दे सकता है. अगर उसको अपनी पत्नी को तलाक देना है, तो कोर्ट जाना होगा. सिर्फ कोर्ट के आदेश पर ही तलाक होता है.

देश के दूसरे हिस्सों में हैं अलग-अलग कानून

देश के दूसरे हिस्सों में संपत्ति पर अधिकार देने के लिए इंडियन सक्सेशन एक्ट या फिर पर्सनल लॉ यानी हिंदू सक्सेशन एक्ट, मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट समेत अन्य एक्ट बनाए गए हैं. इसके चलते धर्म के आधार पर लोगों के अधिकार और दायित्व अलग-अलग हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिलचस्प बात यह है कि संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 44 में यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात कही है.

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