देश की शीर्ष अदालत ने फैसले में कहा कि सहकारी बैंक SARFAESI अधिनियम के अंतर्गत आते हैं जिसमें ऋण वसूली बैंकिंग गतिविधि का एक अनिवार्य हिस्सा है. SARFAESI अधिनियम के तहत ऋण वसूली तंत्र प्रदान करने के लिए संसद सक्षम है.
सुप्रीम कोर्ट ने आज मंगलवार को यह स्वीकार किया कि सहकारी बैंकों पर सिक्योरिटाइजेशन एंड रिकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड एनफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी एक्ट 2002 (SARFAESI) लागू होता है.
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जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ की ओर से पारित निर्णय में कहा गया कि सहकारी बैंक को SARFAESI अधिनियम की धारा 2 (1) (सी) के तहत बैंक के रूप में परिभाषित किया गया है और और यहां तक कि रिकवरी प्रक्रिया को लेकर सहकारी बैंक भी ऋण वसूली कर सकते हैं.
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देश में 1,500 सहकारी बैंक
जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली संविधान पीठ में जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस विनीत सरन, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अनिरुद्ध बोस शामिल थे. इस पीठ ने यह भी कहा कि संसद के पास विधायी शक्ति थी जिसके माध्यम से वह सहकारी बैंकों को SARFESI अधिनियम के दायरे में लेकर आया था.
संविधान पीठ ने 28 जनवरी, 2003 को बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट 1949 के तहत जारी अधिसूचना को भी प्रभावी ढंग से बरकरार रखा, जिसके माध्यम से सहकारी बैंकों को 'बैंकों' की श्रेणी में लाया गया था, जो कि SARAFESI अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार सहारा लेने के हकदार थे.
पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में इस समय 1,540 सहकारी बैंक हैं जिनमें 8.6 करोड़ जमाकर्ता हैं, जिनकी कुल बचत लगभग 5 लाख करोड़ है. सहकारी बैंक राज्य विधानसभाओं और मल्टी स्टेट लेवल कॉआपरेटिव सोसाइटीज एक्ट 2002 के तहत बहु राज्य सहकारी समितियों के तहत पंजीकृत हैं.
संजय शर्मा