व्यभिचार कानून पर SC का फैसला: महिलाओं को सम्मान, पुरुषों को राहत

स्त्री-पुरुष के विवाहेतर संबंध को आपराधिक मानने वाले कानून को गैरसंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. अदालत का यह फैसला महिलाओं के लिए सम्मान तो पुरुषों के लिए राहत देने वाला है.

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सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर

विवेक पाठक / संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 27 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 11:59 AM IST

स्त्री-पुरुष के विवाहेतर संबंधों पर अहम फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली संविधान पीठ ने इसे अपराध मानने से इनकार करते हुए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 497 को गैरकानून बताया है. व्यभिचार को लेकर सर्वोच्च अदालत का यह फैसला महिलाओं के लिए सम्मान और पुरुषों दोनों को राहत देने वाला है.

सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस आर एफ नरीमन, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदू मल्होत्रा और जस्टिस ए एम खानविलकर शामिल हैं. सभी न्यायाधीशों ने एकमत में 158 साल पुराने इस कानून को संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार का हनन माना है. अदालत ने इसे समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14, 15) और जीवन जीने के अधिकार (अनुच्छेद 21) के खिलाफ बताया है.

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महिलाओं को सम्मान, पुरुषों को राहत

अदालत ने अपने फैसले में तीखी टिप्पणी करते हुए कहा है कि पत्नी पति की संपत्ती नहीं होती. वहीं पुरुषों के लिए राहत की बात यह है कि अब यह है कि विवाहेतर संबंध को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया गया है. साथ ही सजा का प्रावधान भी खत्म कर दिया गया है. लिहाजा इस तरह के मामलों का निपटारा दीवानी अदालत के माध्यम से किया जा सकता है.  

अपने फैसले में जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने कहा कि पुरुष को दोषी और महिला को पीड़ित मानना एक पुरातन ख्याल है, जो आज के समय में सही नहीं है.

जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने अपने फैसले में कहा कि यह कानून तय करता है कि मुकदमा कौन कर सकता है और किसके ऊपर कर सकता है. इस तरह का कानून समाज के छिसे-पिटे नियमों और भेदभाव की भावना को मजबूत करता है. लिहाजा अदालत ने एकमत में इस कानून को असंवैधानिक मानते हुए गैरकानून करार दिया है.

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क्या था व्यभिचार कानून?

बता दें कि इससे पहले इस कानून के तहत अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी अन्य शादीशुदा महिला के साथ आपसी रजामंदी से शारीरिक संबंध बनाता है तो उक्त महिला का पति एडल्टरी (व्यभिचार) के नाम पर उस पुरुष के खिलाफ केस दर्ज करा सकता है. हालांकि, ऐसा व्यक्ति अपनी पत्नी के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकता और न ही विवाहेतर संबंध में लिप्त पुरुष की पत्नी इस दूसरी महिला के खिलाफ कोई कार्रवाई कर सकती है. इस कानून में पांच साल की सजा का भी प्रावधान था.

इससे पहले केंद्र सरकार ने कानून का समर्थन करते हुए स्त्री-पुरुष के विवाहेतर संबंधों को विवाह संस्थान के लिए खतरा बाताया था.

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