Exclusive: 2019 की लड़ाई में राहुल लेंगे डेटा का सहारा, टीम ने तैयार की रिपोर्ट

कांग्रेस के डाटा विश्लेषण विभाग का मानना है कि डाटा के ज़रिये बूथ स्तर का विश्लेषण आसान है और उसके जरिये रणनीति बनाना भी आसान. करीब 600 मतदाताओं का विश्लेषण करके आप चुनाव में रणनीति बना सकते हैं.

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प्रवीण चक्रवर्ती के साथ राहुल गांधी प्रवीण चक्रवर्ती के साथ राहुल गांधी

कुमार विक्रांत / राहुल विश्वकर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 06 जून 2018,
  • अपडेटेड 12:33 PM IST

सोनिया गांधी की कांग्रेस अब राहुल गांधी की कांग्रेस में तब्दील हो गयी, तो एक बड़ा बदलाव डाटा विश्लेषण को लेकर भी आया है. पहले राहुल ने कंप्यूटर विभाग को आधुनिकता देते हुए डाटा विश्लेषण विभाग बनाया और मुम्बई की एक नामी कंपनी के डाटा वैज्ञानिक प्रवीण चक्रवर्ती को इसका चैयरमैन बना दिया. प्रवीण खुद तमिलनाडु के रहने वाले हैं. इसके बाद डाटा विश्लेषण विभाग ने डाटा के जरिये तमाम जानकारियां आलाकमान को उपलब्ध कराई हैं, जिसका पहला फायदा पार्टी को मध्य प्रदेश में हुआ है.

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मध्य प्रदेश में फर्जी वोटर सूची को शुरुआत में इसी विभाग ने पकड़ा, जिसे लेकर प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय ने पूरा होमवर्क करके चुनाव आयोग में दस्तक दी. दरअसल, पूरे देश भर के मतदाताओं का डाटा बेस इकट्ठा करके आपस में मिलान करने पर ये गड़बड़ी सामने आयी क़ि मध्य प्रदेश में एक ही तस्वीर के कई-कई वोटर आई डी बने हैं. बाद में ये आंकड़ा 60 लाख के करीब तक पहुंच गया, जबकि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर ऐसी गड़बड़ियां नहीं मिलीं.

ऊपर से नहीं बूथ लेवल पर हो ध्यान

कांग्रेस के डाटा विश्लेषण विभाग का मानना है कि डाटा के ज़रिये बूथ स्तर का विश्लेषण आसान है और उसके जरिये रणनीति बनाना भी आसान. करीब 600 मतदाताओं का विश्लेषण करके आप चुनाव में रणनीति बना सकते हैं. बूथ से शुरू करके ब्लॉक, विधानसभा और फिर लोकसभा का पूरा विश्लेषण किया जा सकता है. बूथ में कितने वोट बढ़ाने हैं, इस पर भी टारगेट हो सकता है. डाटा बेस के मुताबिक, पूरा देश या एक लोकसभा पर ऊपर से देखने की बजाय नीचे से बूथ से शुरुआत करनी होगी.

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वोट शेयर को सीट में बदलने की जरूरत

सूत्रों की मानें तो डाटा का विश्लेषण बताता है कि कांग्रेस को जितना वोट मिलता है उसके मुताबिक सीटें नहीं मिलतीं. कर्नाटक का उदाहरण देते हुए बताया गया कि कैसे 104 सीटें जीतकर सबसे पार्टी बनी बीजेपी 33 सीटों पर जमानत नहीं बचा पाई. डाटा विश्लेषण टीम मानती है कि इन सीटों पर बूथ में हार देख बीजेपी ने अपना वोट जेडीएस को शिफ्ट कराया, जिससे कांग्रेस ना जीते. सिर्फ ओल्ड मैसूर में ही बीजेपी ने 33 में से 30 सीटों पर जमानत गंवा दी, जहां मुकाबला कांग्रेस और जेडीएस में था. इसलिए कांग्रेस और बाकी विपक्षी दलों की बूथवार विश्लेषण के मद्देनजर इस बात का खासा ख्याल रखना चाहिए. इसके अलावा ये भी अहम है कि सबसे ज़्यादा करीब 38 फीसद वोट वाली कांग्रेस कैसे 78 सीटों पर सिमट गई. डाटा टीम का मानना है कि डाटा का विश्लेषण बताता है कि ऐसा ही होना था. बूथ स्तर के डाटा के विश्लेषण से मिले बिंदुओं पर नज़र रखते हुए वोट को ज़्यादा से ज़्यादा सीट में कैसे तब्दील किया जाए. इस बाबत बूथ स्तर पर डाटा टीम ने सुझाव भी दिए हैं, जो पूरी तरह डाटा विश्लेषण पर ही आधारित हैं.

कैराना में कांग्रेस का 8 फीसदी वोट हुआ बीजेपी को शिफ्ट

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डाटा टीम ने कैराना को लेकर एक और चौंकाने वाला खुलासा किया है. उसके मुताबिक, महागठबंधन का उम्मीदवार होने पर कैराना में कांग्रेस का 8 फीसद वोट बीजेपी चला गया, इसीलिये बीजेपी सिर्फ 44 हज़ार के करीब मतों से हारी. डाटा टीम का ये आंकड़ा कांग्रेस की एक सीट विपक्ष का एक उम्मीदवार की रणनीति पर भी सवाल खड़ा करता है. दरअसल, डाटा विश्लेषण बताता है क़ि कई ऐसी सीटें मिलती हैं जहां कांग्रेस नहीं लड़ी तो उसके वोट का कुछ प्रतिशत बीजेपी को शिफ्ट हो सकता है. इसलिए सीधे गठजोड़ की बजाय रणनीति के तहत गठबंधन करना चाहिए.

डाटा टीम 2009 से लेकर अब तक के सभी छोटे-बड़े चुनाव का विश्लेषण किया है. इसके मुताबिक जिस तरह 2009 से कांग्रेस 206 से घटकर 2014 में 44 पर आ गई, उसी तरह 2014 से अब तक के छोटे-बड़े चुनावों का डाटा विश्लेषण बताता है कि आज की तारीख में बीजेपी 282 से घटकर 201 पर आ पहुंची है और यही ट्रेंड रहा तो वो 2019 में 160 सीटें ही ला सकेगी. वहीं कांग्रेस आहिस्ता आहिस्ता 2019 में 140 के करीब होगी.

डाटा टीम ने कांग्रेस का तीन तरीके से विश्लेषण किया है. पहला, जहां कांग्रेस और एनडीए में मुकाबला है. दूसरा, जहां गठबंधन में कांग्रेस बड़े पार्टनर के तौर पर एनडीए से मुकाबले में है और तीसरा, जहां कांग्रेस जूनियर पार्टनर के तौर पर गठबंधन में एनडीए से मुकाबले में हैं. डाटा के मुताबिक, पहले दो में कांग्रेस 120 के करीब जीतती दिखती है, तो वहीं तीसरे में 20 सीटें उसके खाते में आती दिख रही हैं.

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कुल मिलाकर सियासत में डाटा की एंट्री तो पुरानी है, लेकिन राहुल कम से कम कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर इसको खंगालकर 2019 में मोदी से भिड़ने की रणनीति को और धार देंगे. हाँ, दिलचस्प ये है कि राहुल की सियासत में डाटा कितना हावी होता है, ये घाटे का सौदा होता है या फायदे का. 

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