आधार और अन्य कानून (संशोधन) विधेयक-2019 पर केंद्र सरकार के अध्यादेश की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकार्ताओं से हाई कोर्ट का रुख करने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार मामले पर पहले हाईकोर्ट का रुख करें.
सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता रीपक कंसल और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने दाखिल की थी. इस याचिका में कहा गया था कि आधार पर लाया गया अध्यादेश लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ है. याचिका में यह भी कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट पूर्व में आधार पर दिए गए फैसले को पलट दे.
आधार पर अध्यादेश को केंद्रीय कैबिनेट ने आधार कानून में संशोधन के लिए अध्यादेश लाने को मंजूरी दी है जिसे शीर्ष आदालत में चुनौती दी गई थी.
कैबिनेट के फैसले की जानकारी देते हुए 28 फरवरी को केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया था कि कैबिनेट ने आधार को स्वैच्छिक रूप से मोबाइल नंबर, बैंक खातों से जोड़ने को कानूनी आधार प्रदान करने के लिए अध्यादेश लाने को मंजूरी दी.
वहीं वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना था कि लोकसभा ने 4 जनवरी को इससे संबंधित विधेयक पारित कर दिया था, लेकिन विधेयक राज्य सभा में पेश नहीं किया जा सका. इसलिए अब सरकार यह अध्यादेश ला रही है. इन संशोधनों के जरिये आधार के दुरुपयोग को रोकने और लोगों की निजता को बनाए रखने के लिए कड़े प्रावधान किए गए हैं. अब किसी व्यक्ति की पहचान के लिए आधार को अनिवार्य नहीं बनाया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट में क्यों दी चुनौती
आधार अध्यादेश 2019 को दो स्तरों पर चुनौती दी जा सकती है. संशोधनों को मूल रूप से संसद में एक बिल के जरिये लाया गया था जिसे लोकसभा में पारित कर दिया गया, लेकिन यह राज्यसभा में पारित नहीं हो सका. संसद सत्र के खत्म होने से पहले इसे ठोस रूप नहीं दिया जा सका. इसलिए मोदी सरकार इसके लिए अध्यादेश लेकर आई. हालांकि, अध्यादेशों को संविधान के अनुच्छेद 123 में निर्दिष्ट शर्तों को पूरा किए जाने की स्थिति में में ही अध्यादेश को लागू किया जा सकता है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि आध्यादेश के जरिये केंद्रीय सरकार अपनी ताकत का दुरुपयोग कर सकती है.
संजय शर्मा