मानव-पशु संघर्ष में नुकसान: देशभर में बराबर मुआवजे की सिफारिश

देशभर में हर साल औसतन 500 लोगों की जान हाथियों की वजह से ही चली जाती है. आंकड़ों के मुताबिक 2016 से 2018 तक 135 से ज्यादा लोगों की जान बाघ के हमले की वजह से चली गई. साथ ही पालतू पशुओं और फसल को नुकसान पहुंचाने के लिए भी जंगली जानवर जिम्मेदार होते हैं.

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खेतों में हाथियों की घुसपैठ (PTI फोटो) खेतों में हाथियों की घुसपैठ (PTI फोटो)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 12 मार्च 2020,
  • अपडेटेड 9:58 AM IST

  • हर साल हाथी लेते हैं 500 लोगों की जान
  • फसल और जान-माल को भी नुकसान
  • राज्यों में अलग -अलग मुआवजे के नियम

संसदीय कमेटी ने मानव-पशु संघर्ष में नुकसान उठाने वाले पीड़ितों को देशभर में मुआवजे देने की सिफारिश की है. साथ ही मांग की है कि अलग-अलग राज्यों में मुआवजे को लेकर जो असमानताएं हैं उन्हें दूर करने के लिए पूरे देश में एक समान मुआवजे की व्यवस्था की जाए. देशभर में हर साल औसतन 500 लोगों की जान हाथियों की वजह से ही चली जाती है.

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राज्यसभा को सौंपी रिपोर्ट

आंकड़ों के मुताबिक 2016 से 2018 तक 135 से ज्यादा लोगों की जान बाघ के हमले की वजह से चली गई. साथ ही पालतू पशुओं और फसल को नुकसान पहुंचाने के लिए भी जंगली जानवर जिम्मेदार होते हैं. हर साल करोड़ों रुपये जान और माल के नुकसान के बाद मुआवजे के तौर पर ऐसे पीड़ितों को बांटे जाते हैं.

कमेटी ने पर्यावरण मंत्रालय से सिफारिश की है कि सरकार ऐसे नुकसान की सही ढंग से समीक्षा करे ताकि अलग-अलग राज्यों में दिए जाने वाले मुआवजे का आंकलन हो सके साथ ही जरूरतमंद तक मुआवजा राशि पहुंचाई जा सके. सिफारिश में कहा गया है कि पूरे देश में एक समान मुआवजे देने के लिए गाइड लाइंस बनाई जाएं. कमेट ने राज्यसभा में 6 मार्च को इस संदर्भ में अपनी रिपोर्ट सौंपी है.

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पर्यावरण, क्लाइमेट चेंज, वन और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की स्टैंडिंग कमेटी में कुल 31 सदस्य हैं जिसकी अध्यक्षता पूर्व कैबिनेट मंत्री जयराम रमेश कर रहे हैं. मौजूदा वक्त में केंद्र सरकार राज्यों को ऐसे नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र की ओर से कुछ योजनाओं के तहत फंड मुहैया कराती है. अगर कोई व्यक्ति ऐसे हादसे में जान गंवाता है तो उसके परिवार को केंद्र की योजना के तहत 5 लाख रुपये तक की आर्थिक मदद दी जाती है.

फसल-पशु के बीमा की मांग

इस बारे में एलिफेंट टास्क फोर्स के पूर्व प्रमुख महेश रंगराजन ने कहा कि राज्यों में इसके लिए अलग-अलग मुआवजा देने का प्रावधान है लेकिन वन समवर्ती सूची का विषय हैं इसीलिए केंद्र सरकार को इसमें बड़ी भूमिका निभानी चाहिए ताकि राज्यों के बोझ को कम किया जा सके. उन्होंने कहा कि हजारों एकड़ जमीन को हर साल जानवार तबाह कर जाते हैं इसी वजह से केंद्र को फसल और पशुओं के लिए बीमा की व्यवस्था करनी चाहिए.

राज्य अपने नियमों के मुताबिक आर्थिक मदद मुहैया कराते हैं और इसमें गहरी असमानता देखने को मिलती है. आकड़ों के मुताबिक ओडिशा में अगर ऐसे किसी संघर्ष में किसी की जान जाती है तो 4 लाख मुआवजा देने का प्रावधान है जबकि महाराष्ट्र ऐसे मामले में 15 लाख तक का मुआवजा देता है. कमेटी ने सिफारिश की है कि अगर फसल को जानवर नुकसान पहुंचाते हैं तो उसे भी प्रधानमंत्री कृषि बीमा योजना के दायरे में लाना चाहिए.

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