हिन्दी किसी भी राज्य पर थोपी नहीं जाएगी: कस्तूरीरंगन

कस्तूरीरंगन समिति के तीन भाषा वाले फॉर्मूले के बढ़ते विरोध के बीच कस्तूरीरंगन ने साफ कर दिया है कि हिन्दी किसी पर थोपी नहीं जाएगी. आपको बता दें कि शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में दक्षिण के राज्यों में तीन भाषा फॉर्मूला लागू करने में हिन्दी भाषा को अनिवार्य करने पर बवाल हो गया था. बाद में शिक्षा नीति में बदलाव किया गया.

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प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 04 जून 2019,
  • अपडेटेड 6:08 PM IST

राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करने के लिए बनाई गई समिति के अध्यक्ष कस्तूरीरंगन ने कहा है कि हिन्दी किसी भी राज्य पर थोपी नहीं जाएगी. उन्होंने कहा है कि रिपोर्ट का उद्देश्य छात्रों को बहुभाषीय बनाना है. यह उनकी इच्छा पर निर्भर होगी कि वे क्या पढ़ना चाहते हैं. कस्तूरीरंगन ने कहा कि समिति ने तीन भाषाओं का फॉर्मूला अब तक के अनुभव, स्कूलों में शिक्षा के माध्यम, स्थानीय जरूरतों, भाषा कितनी बोली जाती है और शिक्षकों की उपलब्धता के आधार पर तैयार किया गया है. पहले की नीति में भी तीन भाषा का फॉर्मूला शामिल था, इसलिए अब इसमें कोई बड़ा बदलाव की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि हम किसी राज्य पर भाषा थोपेंगे नहीं, राज्य और स्कूल ये तय करें कि क्या लागू करना है.

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गौरतलब है कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में केंद्रीय मानव संसादन विकास मंत्री रहे प्रकाश जावड़ेकर ने नई शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करने के लिए एक समिति का गठन किया था. जिसके अध्यक्ष कस्तूरीरंगन हैं. समिति ने हाल ही में रिपोर्ट जारी की है. इसमें तीन भाषाओं के फॉर्मूले को लागू करने का सुझाव दिया गया है, इसके तहत क्लास 8 तक 3 भाषाएं पढ़ाने की बात की गई है. जिसमें अंग्रेजी, क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेजी को अनिवार्य रूप से पढ़ाए जाने की सिफारिश की गई है.

शिक्षा नीति के मसौदे का क्या है मकसद

कस्तूरीरंगन ने कहा कि रिपोर्ट में छात्रों को बहुभाषीय बनाने पर जोर दिया गया है. जो भारतीय शिक्षा पद्धति की विशेषता है. हमारा मकसद है कि बच्चों को प्राइमरी स्कूल लेवल पर तीन और उससे अधिक भाषाओं का ज्ञान हो ताकि वे आगे चलकर चाहें तो और भी भाषा सीख सकते हैं. लेकिन रिपोर्ट के बाद इसका गलत तरीके से व्याख्या किया गया. जिससे ऐसा लगा कि हिन्दी को थोपा जा रहा है.

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अंग्रेजी को कम करके आंकना मकसद नहीं

इकोनोमिक्स टाइम्स के मुताबिक उन्होंने कहा कि हमारी रिपोर्ट का मकसद अंग्रेजी को नीचा दिखाना नहीं है. हम जानते हैं कि अंग्रेजी संवाद का महत्वपूर्ण जरिया है. इसलिए हमने अंग्रेजी को भी महत्व दिया है. इसके दो कारण हैं. पहला कि विज्ञान के अलावा यह अन्य व्यवसायिक पाठ्यक्रमों के लिए शिक्षा का माध्यम है. दूसरा, अंग्रेजी अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप दुनिया भर में प्रचलित है. मतलब कि हमें दुनिया से जुड़ना है तो अंग्रेजी का ज्ञान जरूरी है. साथ ही हमने भारतीय भाषाओं पर जोर दिया है. यह इसलिए जरूरी है कि अगर कोई छात्र अंग्रेजी भाषा में साइंस पढ़ता है तो उस पर अमल करने या नए आइडिया पर अपनी भाषा में काम करना आसान होता है.

शिक्षा का अंतरराष्ट्रीयकरण करना

अब भारत की अर्थव्यवस्था ग्लोबल है. ऐसे में हमारा पाठ्यक्रम भी ऐसा होना चाहिए कि हम विदेशी छात्रों को भी अपने यहां पढ़ा सकें. हमारी रिपोर्ट में इस बात पर भी ध्यान दिया गया है. इसमें कई ऐसे सुझाव शामिल हैं जो भारतीय शिक्षा पद्धति को मजबूती प्रदान करेगी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान देगी. हमारी सभ्यता और संस्कृति गौरवपूर्ण रही है. प्राचीन समय में भी हमारे यहां नालंदा और तक्षशिला में विदेशी छात्र ज्ञान प्राप्त करने आते थे. हमारी स्कूली शिक्षा 15 साल पद्धति वाली है. हमने ऐसी शिक्षा पद्धति बनाने का सुझाव दिया है कि आगे चलकर यह काफी मजबूत बने और हमारे छात्र प्रतिद्वंद्विता के वातावरण में निखर कर सामने आएं और हर तरह से कंपीटीशन का मुकाबला कर सकें.

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