पिछले 20 सालों में देश में बचपन के स्तर पर सुधार आया है, लेकिन सुधार के बावजूद अभी भी हम बहुत पीछे हैं और वैश्विक रैंकिंग की बात करें तो यह 113वें पायदान पर पहुंचता है. बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था 'सेव द चिल्ड्रन' की ओर पिछले दिनों जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार भारत में बच्चों के रहन-सहन के स्तर में सुधार आया है और वर्ष 2000 की तुलना में 2019 में 'द एंड ऑफ चाइल्डहुड इंडेक्स' में भारत का स्कोर 632 से बढ़कर 769 तक पहुंच गया. हालांकि हम चीन, क्या मालदीव और श्रीलंका जैसे छोटे तथा पड़ोसी मुल्कों से भी कहीं पीछे हैं.
'सेव द चिल्ड्रन' की रिपोर्ट 'द एंड ऑफ चाइल्डहुड इंडेक्स' के अनुसार, 176 देशों में भारत की रैंकिंग 100 से ऊपर है जबकि चीन 36वें पायदान पर है तो मालदीव 54 और श्रीलंका 56वें स्थान पर है. इस इंडेक्स को तैयार करने के लिए बच्चों और किशोरों को लेकर 8 संकेतकों पर देशों का मूल्यांकन किया गया, जिसमें 5 साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर की स्थिति, कुपोषण, शिक्षा की कमी, बाल मजदूरी, बाल विवाह, किशोर गर्भावस्था, संघर्ष द्वारा विस्थापन और बाल हत्या शामिल है.
3 अंकों का सुधार
इंडेक्स को तैयार करने के लिए 1,000 का अंक निर्धारित किया गया और फिर 176 देशों में वहां के बच्चों की स्थिति पर नंबर दिए गए और सबसे ज्यादा नंबर पाने वाले देश को सर्वश्रेष्ठ माना गया जबकि सबसे कम अंक पाने वाले को सबसे नीचे रखा गया. इनमें 81 देश ऐसे हैं जिनको 900 या उससे ज्यादा का अंक हासिल हुआ. 2018 में भारत 172 देशों की सूची में 116वें पायदान पर था जिसमें 3 अंक का सुधार करते हुए 176 देशों की सूची में 113वीं रैंक हासिल की.
रिपोर्ट यह भी कहता है कि 176 देशों में से 173 देशों में वर्ष 2000 की तुलना में बच्चों की स्थिति में सुधार आया है. वर्ष 2000 में, दुनियाभर में करीब 97 करोड़ बच्चे अपने बचपन से वंचित थे और इन 20 सालों में इसकी संख्या में 29 फीसदी गिरावट आई और यह घटकर 69 करोड़ हो गई. इस तरह से 28 करोड़ बच्चों की जिंदगी में सुधारात्मक बदलाव आया है, हालांकि बावजूद इसके आज की तारीख में हर 4 में से 1 बच्चे को अपना बचपन नसीब नहीं होता है.
शिशु मृत्यु दर में 55% की गिरावट
बच्चों की स्थिति के बारे में भारत की वस्तुस्थिति की बात की जाए तो 2000 की तुलना में व्यापक बदलाव आया है. पिछले 2 दशक में भारत में शिशु मृत्यु दर में 55 फीसदी की गिरावट आई है. 2000 में जहां भारत में शिशु मृत्यु दर प्रति हजार पर 88 थी वो 2017 में घटकर 39 तक पहुंच गई है. वहीं वैश्विक स्तर पर उल्लेखनीय सुधार आया है और शिशु मृत्यु दर में 49 फीसदी की गिरावट आई है. इस तरह से बीते 2 दशक में 5 करोड़ से ज्यादा बच्चों की जिंदगी बचा ली गई.
रिपोर्ट तैयार करने के लिए जिन 8 संकेतकों का सहारा लिया गया, उसमें भारत की स्थिति में सुधार आया है. 5 साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर में कमी आई है और यह प्रति हजार शिशुओं पर 39.4 है. कुपोषण जिसके कारण 5 साल से कम उम्र के बच्चों का सही से विकास नहीं होता उसमें यह दर 38.4 फीसदी है. बच्चों के स्कूल छोड़ने की दर 20.2 फीसदी है. बाल मजदूरी की बात की जाए तो अभी भी यहां पर 11.8 फीसदी बच्चे इस अभिशाप से ग्रस्त हैं. हमारे देश में अभी भी बाल विवाह का दंश मौजूद है, आज भी 15.2 फीसदी बच्चों की शादी कम उम्र में कर दी जा रही है.
बाल विवाह जारी
बाल विवाह के कारण कम उम्र में बच्चियों का गर्भाधारण करने का सिलसिला कम नहीं हो रहा और प्रति हजार पर यह दर 24.5 है. एक चीज यहां शानदार है कि बच्चों का विस्थापन बिल्कुल नहीं है. वहीं प्रति 1 लाख की आबादी में 1.3 बच्चे ही बाल हत्या के शिकार होते हैं. नेपाल और बांग्लादेश में बाल विवाह क्रमशः 27.1 और 32.4 फीसदी है.
इसी संबंध में पाकिस्तान की रैंकिंग 149 है और वहां पर शिशु मृत्यु दर प्रति हजार शिशु पर 74.9 है वहीं कुपोषण के शिकार बच्चों की संख्या 47.2 फीसदी है तो बच्चों के स्कूल छोड़ने की दर 40.8 फीसदी है. यहां पर बाल विवाह भारत की तुलना में कम (13.5 फीसदी) है, लेकिन कम उम्र में लड़कियों के गर्भाधारण की दर (प्रति हजार पर 37.7) ज्यादा है. प्रति 1 लाख बच्चों में 6.5 बच्चों की मौत हर साल हो जाती है.
टॉप टेन में एशिया के 2 देश
एनजीओ सेव द चिल्ड्रन की तीसरी वार्षिक रिपोर्ट एन्ड ऑफ चाइल्डहुड में 176 देशों का आंकड़ा एकत्र किया जिसके अनुसार सिंगापुर में बचपन सबसे सुरक्षित है, जबकि शीर्ष 10 देशों में पश्चिमी यूरोप के 8 देश शामिल हैं. दूसरे पायदान पर स्वीडन है. खास बात यह है कि इन 10 देशों में एशिया के 2 देश शामिल हैं जिसमें पहले पायदान पर सिंगापुर है तो दक्षिण कोरिया संयुक्त रूप से आठवें पायदान पर है.
भारतीय उपमहाद्वीप में मालदीव की स्थिति सबसे अच्छी है और उसकी रैंकिंग 54 है. इसके बाद श्रीलंका है जो 56वें पायदान पर है. जबकि निचले पायदान पर कई अफ्रीकी देश शामिल हैं. 174वें और 175वें पायदान पर क्रमशः चाड (408) और नाइजर (402) हैं जबकि 176वें पायदान पर सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक है जिसे महज 394 अंक हासिल हुए.
सुरेंद्र कुमार वर्मा