नामधारी संप्रदाय की महिलाओं ने उठाया विवाह कराने का बीड़ा

सतगुरु ने बताया कि उन्होंने ही बाल विवाह बंद कर 16 साल से ऊपर की लड़की और 18 से ऊपर के लड़के के विवाह का विधान तय किया. यही नहीं सिखों में सतगुरु राम सिंह ने विधवा विवाह को अनिवार्य कर सती प्रथा को बंद कराया था. दलीप सिंह ने उन्हीं के नक्शेकदम पर चलते हुए दिल्ली के मानसरोवर पार्क में महिलाओं से विवाह की रस्म अदा करवाने का आदेश दिया.

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आनंद कारज कराती नामधारी संप्रदाय की महिलाएं आनंद कारज कराती नामधारी संप्रदाय की महिलाएं

मनीष दीक्षित

  • नई दिल्ली,
  • 31 जुलाई 2017,
  • अपडेटेड 5:10 PM IST

नामधारी संप्रदाय की संदीप कौर, राज कौर और सुरजीत कौर ने 9 अप्रैल से पहले 15 दिन तक विवाह कराने का अभ्यास किया. इस दौरान हवन और गुरबानी पाठ का जमकर अभ्यास किया और फिर विवाह के अनंत बंधन में बांधने यानी उनकी शादी कराने (आनंद कारज) का काम किया. यह मुमकिन हो सका है तो नामधारियों के धार्मिक गुरु सतगुरु दलीप सिंह के प्रयासों से. उन्होंने गुरु रामसिंह के हाथों शुरू हुई सिखों में आनंद मर्यादा की परंपरा को आगे बढ़ाया.

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सतगुरु दलीप सिंह कहते हैं कि वह संप्रदाय में सिख महिलाओं की दशा सुधारने और उन्हें समाज में और मजबूत स्थान दिलाने के लिए गुरु रामसिंह के आदर्शों को अमली जामा पहनाने का काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि सबसे पहले 1863 में सतगुरु राम सिंह ने ही गुरबानी में से "लावां" पढ़कर छह जोड़ों का अंतरजातीय विवाह करके सिखों में आनंद कारज की रीत शुरू कराई थी.

सतगुरु ने बताया कि उन्होंने ही बाल विवाह बंद कर 16 साल से ऊपर की लड़की और 18 से ऊपर के लड़के के विवाह का विधान तय किया. यही नहीं सिखों में सतगुरु राम सिंह ने विधवा विवाह को अनिवार्य कर सती प्रथा को बंद कराया था. दलीप सिंह ने उन्हीं के नक्शेकदम पर चलते हुए दिल्ली के मानसरोवर पार्क में महिलाओं से विवाह की रस्म अदा करवाने का आदेश दिया. इसके बाद नामधारी समुदाय की संदीप कौर, राज कौर और सुरजीत कौर ने तैयारी शुरू की.

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आयोजन की सबसे खास बात यह थी कि इन महिलाओं ने विवाह की रस्मों के अभ्यास तक में पुरुषों की कोई मदद नहीं ली. हवन कराने वाली महिलाओं को अमृत पान कराया. दलीप सिंह जी बताते हैं कि शादी के बाद अमृतधारी महिलाओं ने वर-वधू को खंडे का अमृत पान कराया. ऐसा पहली बार हुआ जब आनंद कारज की सारी रस्में महिलाओं ने पूरी कराईं. नामधारी सिख हवन करके वर-वधू को अग्नि के फेरे देते हैं. हालांकि कुछ लोग इसे हिंदू प्रथा करार देकर इसका विरोध करते हैं. लेकिन इस पर दलीप सिंह कहते हैं कि हिंदुओं की हर प्रथा को छोड़ना संभव नहीं है. सदगुरु जगजीत सिंह के समय भी काफी अंतरजातीय विवाह हुए लेकिन अब समाज इसकी उतनी परवाह नहीं करता है.

नामधारी संप्रदाय में धार्मिक रस्में अदा कराने में महिलाओं की भूमिका बढ़ रही है. जोड़े की शादी कराने वाली संदीप कौर बताती हैं कि शादी कराने के बाद पड़ोस के घर में एक शिशु का जन्म हुआ तो उनके परिजनों ने मुझे अमृत पान कराने के लिए बुलाया और फिर हम उनके घर गए. उस घर में हमने पांच बच्चों को अमृत पान कराया. दलीप सिंह कहते हैं कि शादी से पहले बेटी को अपने पैरों पर खड़े हो जाना चाहिए ताकि शादी के बाद वे आर्थिक रूप से आजाद हो सकें. नामधारी अनुयायियों के एनजीओ महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए काम कर रहे हैं. इनके पास साधन सीमित हैं लेकिन इच्छाशक्ति अपार है.

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