3 देशों के स्थापत्य का नमूना है छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, जानें इसके बारे में

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस कभी विक्टोरिया टर्मिनस (वीटी) के नाम से मशहूर रही है. 1853 में मुंबई तब बॉम्बे के बोरीबंदर स्टेशन से ठाणे के लिए पहली यात्री ट्रेन दौड़ी थी और इसके बाद यहीं पर 20 जून 1878 को विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन का निर्माण कार्य शुरू किया गया जो अगले 10 सालों में बनकर तैयार हुआ.

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आज ही के दिन बनना शुरू हुआ था छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (फाइल-रॉयटर्स) आज ही के दिन बनना शुरू हुआ था छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (फाइल-रॉयटर्स)

सुरेंद्र कुमार वर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 20 जून 2019,
  • अपडेटेड 11:15 AM IST

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई घूमने वालों की सबसे पहली ख्वाहिश उस खूबसूरत इमारत को नजदीक से देखने की होती है जो मुंबई से जुड़े मामलों में हमेशा दिखाई देती है. यहां बात हो रही है छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (सीएसटी) की जिसकी इमारत में 3 देशों की सांस्कृतिक विरासत की झलक दिखाई देती है. यूनेस्को ने 15 साल पहले इस ऐतिहासिक इमारत को विश्व विरासत स्थल घोषित किया, जो आज से ठीक 141 साल पहले बनी थी.

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छत्रपति शिवाजी टर्मिनस कभी विक्टोरिया टर्मिनस (वीटी) के नाम से मशहूर रही है. 1853 में मुंबई (तब बॉम्बे) के बोरीबंदर स्टेशन से ठाणे के लिए पहली यात्री ट्रेन (34 किलोमीटर) दौड़ी थी और इसके बाद यहीं पर 20 जून 1878 को विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन का निर्माण कार्य शुरू किया गया जो अगले 10 सालों में बनकर तैयार हुआ. विक्टोरिया टर्मिनस का नाम तत्कालीन ब्रिटिश महरानी विक्टोरिया के नाम पर रखा गया. यह उस समय मुंबई में सबसे ज्यादा समय में तैयार होनी वाली इमारत भी थी.

140 साल पहले खर्च हुए थे 16 लाख रुपए

दुनिया के बेहद खूबसूरत टर्मिनस में शुमार किए जाने वाले विक्टोरिया टर्मिनस का डिजाइन ब्रिटिश वास्तुकार एफडब्ल्यू स्टीवंस ने तैयार किया था और यह इमारत 2.85 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हुई है. 1878 से लेकर 1888 में इस इमारत का निर्माण कार्य पूरा हुआ.

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(रॉयटर्स)

इस इमारत के निर्माण में तब की कीमत के आधार पर 16,13,863 रुपए (2,60,000 स्टर्लिंग पाउंड) खर्च हुए और तब की यह मुंबई की सबसे महंगी इमारत के रूप में चर्चित भी रही. उस समय यह एशिया की सबसे बड़ी इमारत भी थी.

ताजमहल के बाद नंबर टू

देश-दुनिया के लोगों को इसकी खूबसूरती इतनी भायी कि इस इमारत को ताजमहल के बाद सबसे ज्यादा तस्वीर खींची जाने वाली देश की दूसरी इमारत का दर्जा हासिल है. इमारत को विक्टोरियन गोथिक शैली से बनाया गया. आगे चलकर इस ऐतिहासिक इमारत ने बॉम्बे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 'गोथिक सिटी' का दर्जा भी दिलाया.

90 के दशक पूर्वार्द्ध में कई विदेशी नामों को बदलने को लेकर आंदोलन चला. शिवसेना ने विक्टोरिया टर्मिनस का नाम बदलने को लेकर जमकर प्रदर्शन किया. बाद में 1996 तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश कलमाडी ने विक्टोरिया टर्मिनस का नाम बदलकर छत्रपति शिवाजी टर्मिनस नाम कर दिया. हालांकि नाम बदले जाने के 23 साल बाद आज भी लोग इस सीएसटी की जगह विक्टोरिया टर्मिनस यानी वीटी ही बुलाते हैं.

सीएसटी में 3 देशों की कला

विक्टोरिया टर्मिनस के गेट के दोनों छोर पर विशालकाय शेर की आकृति बनाई गई है जिसका एक छोर ग्रेट ब्रिटेन और दूसरा छोर भारत के प्रतीक को दर्शाता है. ऐतिहासिक टर्मिनस में 3 देशों (भारत, ब्रिटेन और इटली) की स्थापत्य कला नजर आती है. इस इमारत के मुख्य ढांचे को बलुआ पत्थर और चूना पत्थर से बनाया गया जबकि आंतरिक हिस्से में उच्च गुणवत्ता वाले इटालियन मार्बल का इस्तेमाल किया गया. साथ ही इमारत में परंपरागत भारतीय स्थापत्य कला का भी इस्तेमाल किया गया.

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छत्रपति शिवाजी टर्मिनस की इमारत के बीचों-बीच एक ऊंचा गुंबद भी है जो इस वास्तुशिल्प की महानता का बखान करता है. टर्मिनस के अंदर का नजारा और भी भव्य है और घुमावदार सीढ़ियों, दीवारों और छतों की जानदार नक्काशी हर किसी का मन मोह लेती है. इमारत के मध्यवर्ती स्थान पर महारानी विक्टोरिया की प्रतिमा लगाई गई थी, लेकिन आजादी के बाद इस मूर्ति को यहां से हटा दिया गया.

(फोटो-रॉयटर्स)

रोजाना 30 लाख यात्री

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (सीएसटी) एक ऐसा टर्मिनस है जो देश के हर हिस्से से जुड़ा हुआ है. 1929 में मध्य रेलवे का मुख्यालय भी यहीं बनाया गया. छत्रपति शिवाजी टर्मिनस यूनेस्को की भारत की उन दो रेल विश्व विरासत स्थलों में से एक है जो अभी भी अस्तित्व में है सीएसटी के अलावा भारत की पर्वतीय रेलसेवा दार्जिलिंग हिमालय रेल को भी विश्व विरासत स्थल में शामिल किया गया है.

मुंबई की पहचान बन चुके छत्रपति शिवाजी टर्मिनस देश के व्यस्ततम रेलवे स्टेशनों में शामिल है और यहां पर रोजाना 30 लाख यात्री पहुंचते हैं. भारतीय उपमहाद्वीप के इस पहले टर्मिनस रेलवे स्टेशन के निर्माण पर जमकर पैसा खर्च किया गया और आज की तारीख में 141 साल पहले बनाए गए इस इमारत का खर्च देखें तो यह 2,28,91,763 रुपए बैठेगा. निर्माण के समय शायद ब्रिटिश शासकों की योजना यह रही होगी कि यह इमारत ब्रिटिश शासन की पहचान बनेगी, लेकिन आजादी के बाद यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की पहचान बनती चली गई और अब भारतीय रेल के जरिए अपनी विरासत से हर किसी से रूबरू करवाती है.

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