गांधी जयंती: आजादी के तुरंत बाद लिखी एक सत्याग्रही ने महात्मा गांधी को चिट्ठी

ऐसे में समाजवादी आंदोलन के नेता सूर्यनारायण सिंह द्वारा महात्मा गांधी को लिखा पत्र पढ़ना चाहिए. सूर्यनारायण बाबू ने महात्मा गांधी को यह पत्र दरभंगा जेल से लिखा था. नीचे हम इस पत्र को ज्यों का त्यों दे रहे हैं.

Advertisement
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (फाइल फोटो) राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (फाइल फोटो)

केशवानंद धर दुबे

  • नई दिल्ली,
  • 02 अक्टूबर 2017,
  • अपडेटेड 4:01 PM IST

सोमवार यानि की आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 148वीं जयंती मनाई जा रही है. इस मौके पर देश और दुनिया में कई जगह विभिन्न कार्यक्रम हो रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजघाट पहुंच बापू को श्रद्धांजलि दी. ऐसे में समाजवादी आंदोलन के नेता सूर्यनारायण सिंह द्वारा महात्मा गांधी को लिखा पत्र पढ़ना चाहिए. सूर्यनारायण बाबू ने महात्मा गांधी को यह पत्र दरभंगा जेल से लिखा था. नीचे हम इस पत्र को ज्यों का त्यों दे रहे हैं.

Advertisement

पूज्य बापू,

सादर प्रणाम

दरभंगा जिले की आज ऐसी स्थिति है, कांग्रेसी मंत्रिमंडल में आज जो यहां दमन चक्र चल रहा है, जमींदार और सरकारी कर्मचारियों का गठबंधन जनता और कार्यकर्ताओं पर जिस तरह जुल्म ढा रहा है, आज इसकी ओर कोई आंख उठाकर देखने वाला नजर नहीं आता. चारों ओर अंधकार ही अंधकार है. गवर्नरी शासन में यहां आज की तरह के दमन  और जुल्म होते तो इसके विरुद्ध प्रांत के राष्ट्रीय अखबारों के कॉलम के कॉलम मोटे अक्षरों से भर दिए गए होते और हमारे नेताओं की भी आवाज इसके विरुद्ध उठी होती, जैसा कि सदा  आज के पहले हुआ करता था. लेकिन आज कांग्रेसी मंत्रिमंडल में जहां प्रांतीय राष्ट्रीय अखबारों ने अपना मुंह बंद कर रखा है, हमारे कांग्रेसी नेताओं को भी इस ओर देखने और सोचने की फुर्सत नहीं, जिला कांग्रेस कमिटियों का हाल तो औऱ भी बदतर है. चुनाव की धांधली के कारण आज ऐसे लोग चोटी पर हैं, जिन्हें जिला के जन जीवन का भयंकर अकल्याण भी विचलित नहीं करता, ऐसे समय में हमें अगर किसी से कोई उम्मीद है तो वह आप ही हो सकते हैं, जिसने सदा सत्य और न्याय के लिए ही अपनी जान बाजी पर रखी है.

Advertisement

गत मार्च से ही इस जिले के अधिकारियों का दमन चक्र हम समाजवादी कार्यकर्ताओं पर चलने लगा, लेकिन अब तो इस क्रूर दमन चक्र  का शिकार हम समाजवादियों से प्रभावित किसान मजदूर भी होने लगे हैं. गत मार्च में जबकि जिले भर में भीषण अन्न संकट प्रारंभ हो गया था, जिले के कोने-कोने में भूखी जनता दाने-दाने को तरस रही थी, चोर बाजार खूब गर्म था और जगह-जगह से भुखमरी की खबरें आने लगी थीं तो हम लोगों ने दरभंगा और मधुबनी में भुक्खड़ों के प्रदर्शन का आयोजन किया. सभा करके, जुलूस निकालकर अधिकारियों का ध्यान अन्न संकट की ओर आकृष्ट करने की कोशिश की, पर नतीजा उल्टा हुआ. मर्ज के सही इलाज के बजाय सरकार ने दमन नीति को अख्तियार किया. कुछ दिनों की चुप्पी के बाद ही न जाने किस गुप्त मंत्रणा की प्रेरणा से जिला के अधिकारियों ने वार करना प्रांरभ किया. हमारे साथियों को बिहार 'मेंटीनेंस ऑफ पब्लिक आर्डर एक्ट' का शिकार बनाया जाने लगा. जिस कानून का निर्माण उपयोग धड़ल्ले के साथ किसान-मजदूरों की सभाओं और रैलियों को रोकने के लिए खून पसीना एक कर दिया और जिनके सफल प्रयास का लिखित प्रमाण पत्र भी कलक्टर ने दिया, इस कानून की जाल में फंसाया जाने लगा.

Advertisement

इस कानून के असली मकसद को ध्यान में रखे बिना ही, इसकी आड़ में नागरिक स्वतंत्रता का अपहरण होने लगा. गांव-गांव में 144 धारा लागू कर सभी प्रकार की सभाओं और जुलूसों पर रोक लगा दी. इसी अभियोग में हमारे चुने हुए साथी गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिए गए. फलत: इस अनुचित गिरफ्तारी के विरोध में गत 18 अप्रैल को जिला के अगिनत किसान मजदूरों ने, जिनमें हिन्दू-मुसलमान, औरत मर्द सभी शामिल थे, अत्यंत उत्साह के सात शांतिमय प्रदर्शन में भाग लिया. इस जिले के प्रदर्शनों में यह पहला मौका था. जबकि लोगों ने हजारों की तादाद में हिंदू-मुसलमानों को एक साथ देखा. इतने पर भी सरकार ने इन प्रदर्शनकारियों पर दंगा फैलाने का इल्जाम लगाकर हजारों मर्द और औरतों को लाठियों से पुलिस द्वारा पिटवाया. लारियों में भर-भर कर लोगों को दूर चौरों में फिंकवाया. ठीक 1931 का दृश्य आंखों के सामने उतर आया था. इस तरह के जुल्म किसी भी सरकार के लिए शर्म की बात हो सकती है. सबसे उत्तेजना देने वाली तो यह हुई कि औरतों पर बेरहमी के साथ लाठियां चलाई गईं, उन्हें सड़कों पर घसीटा गया और भद्दी-भद्दी गालियां भी दी गईं. राष्ट्रीय झंडों को फाड़कर उनसे जूते पोंछे गए और इस सिलसिले में उस दिन 97 व्यक्तियों को गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया.

Advertisement

इधर, जमींदारी टूटने की चर्चा होने के समय से ही जमींदार किस तरह किसानों को बटाई जमीन से बेदखल करने पर तुले हुए हैं, इसकी जानकारी आपको प्रांतीय किसान सभा के सभापति पं रामानंद मिश्र जी के पत्र से हुई होगी. जहां किसान अपने कानूनी हकों को छोड़ना नहीं चाहते, वहां जमींदार लठैतों और किराए के गुंडों के जरिए जबरदस्ती उन्हें जमीन से बेदखल करने की चेष्टा करते हैं. साथ ही उन किसानों पर मुकदमे लाद देते है. जमींदारों के पास रुपये हैं.

वे आसानी से इसका उपयोग कर फायदा उठा सकते हैं. इसके अतिरिक्त जमाने में ओर से छोर तक व्याप्त महंगाई और अभाव ने धनियों के सुखों को भी कुछ कम कर दिया है, इसका असर अफसरों के दिमाग पर बड़ा गहरा है. जो सब दिन से दुखी था, उसके दुख की प्रतिक्रिया तो स्वाभाविक हो गई है, लेकिन जो सदा सुखी था, उसका थोड़ा दुख भी गंभीर प्रतिक्रिया उत्पन्न कर देता है. जमींदारों की औरतें अपने पीने के लिए खुद कुंए से पानी भरें, इतना ही हममें से समुदाय को द्रवित कर देता है, लेकिन  जो औरतें दूसरों के लिए भी अपने बचपन, जवानी और बुढ़ापे भर पानी भरती रहती हैं,  किसी को नहीं खलता. फिर किसानों और जमींदारों में कुछ चेतना आ रही है. इससे उन्हें इर्ष्या  होती है. खासकर दरभंगा  के सदर सबडीवीजन के एसडीओ का तो यही कहना है कि किसान आंदोलन हम जिस तरह भी होगा, दबा कर छोड़ेंगे, यहीं हमें ऊपर से इन्सट्रेक्शन मिला है. किसानों और किसान कार्यकर्ताओं को परेशान करने के लिए सैकड़ों झूठे मुकदमे अभी जिला भर में उन पर चल रहे हैं. इन धांधलियों के चलते जिला भर के किसान जिस तरह तबाह किए जा रहे है, उनमें से दो-चार का नमूने के तौर पर उल्लेख कर देना अनुपयुक्त न होगा.

Advertisement

जगदीशपुर, थाना बहेड़ा, दरभंगा में सन् 1939 ईस्वी में ही किसानों ने अपने हकों की लड़ाई की, गोलियां खाईं, पंचायत हुई और तत्कालीन जिलाधिकारी ने किसानों के उन जमीनों को जमींदार दखल करना चाहते है, दर्जनों मुकदमे किसानों को तबाह करने के लिए चलाए गए. गोलियों की धमकियां दी गईं, लेकिन किसानों के जिम्मे सभी मामले सुपुर्द करने की बात तय हुईं. तीन पंच चुने गए. लेकिन एसडीओ बी. चौधरी के आते ही सारा मामला पलट गया.

गुप्त मशविरा के बाद जमींदार ने दरख्वास्त किया कि केस का ट्रायल आन मेरिट हो. फिर क्या था? 107 की धारा में किसानों से तुरंत ही लगभग डेढ़ लाख का मुचलका मांगा गया. किसानों को पकड़ कर जेल में बंद कर दिया गया और उनकी गैरहाजिरी में ही उनके घरों को लूटा जाता, बिना वजन किए ही हर प्रकार का गल्ला उठा लिया जाता. जमींदारों को साथ ले पुलिस अफसर लोगों के घरों में घुस कर लूटते और किसानों को आतंकित कर परेशान करने की कोशिश करते हैं. कानूनी कार्रवाई भी इस प्रकार की जाती है कि कानून के बाहर के काम भी उसमें समा सकें. इस तरह की कार्रवाई समूचे जिले में की जा रही है. जिन किसान कार्यकर्ताओं को पकड़ा गया, उन्हें उसी जमींदार बाबू जिसके यहां श्राद्ध के उपलक्ष्य में भोज का आयोजन किया था, के यहां 24घंटे तक बिना दाना-पानी दिए कैदी की हैसियत में कोठरी में बंद रखा और खाना मांगने पर दरोगा ने उन्हें लाठियां दीं. ऐसा इसलिए किया गया जिससे किसान कार्यकर्ता का आम किसानों में असर कम हो जाए और जमींदारों का रौब उन पर छा जाए.

Advertisement

अटहर औऱ इलमास नगर के भी इससे मिलते-जुलते किस्से हैं. अटहर का खूनी जमींदार जिसने 25 मार्च को एक किसान के बच्चे का चुपके से खून कर डाला है, आज मजे में घूमता है, लेकिन सदर दरभंगा के एसडीओ बी. चौधरी ने वहां के किसानों को 107 धारा में जेल में बंद कर दिया है. यहां तक कि एसजीओ ने ऐसे आदमियों के भी जेल में बंद कर दिया है जिनमें दो को केवल देखने मात्र से जिलाधिकारी ने छोड़ देने का वचन दे दिया. हालांकि वे अभी तक छोड़े नहीं जा सके हैं. उनमें से एक तो दोनों आंख का अंधा है और बरसों से इस तरह सूजा हुआ है कि आसानी से चल फिर भी नहीं सकता.

खानपुर, बिक्रमपुर और उससे मिले-जुले दूसरे गांवों में एसडीओ ने 144 धारा लागू कर दी है. मिलिटरी पोस्टिंग है, किसान पीटे, खुद एसडीओ की देख-रेख में किसानों की फसलों को जोत कर बर्बाद कर दिया गया, ऐसी हालत में, मैं वहां एसडीओ के फैसले के विरुद्ध किसानों को सलाह देने गया लेकिन मेरे वहां पहुंचते ही समस्तीपुर एसडीओ  बाबू बलराम सिंह भी पहुंचे और उन्होंने मुझे सभा करने का अपराधी बताया. मैंने उनसे कहा कि सभा करने की बात तो सोलह आने गलत है. इस पर उनकी भवें तन गईं और उन्होंने मुझसे पूछा- एम आई एरेस्ट देन? यह ,बात मुझे बेतुकी लगी, मैंने कहा- दैट मे बी बेस्ट नोन टू योर सेल्फ. बस, मुझे लारी पर सवार होने पर मजबूर किया और किराए की मेरी कार वहीं पड़ी रही. मुझे ही नहीं, मुझे खाना खिलाने वाले साथी को भी गिरफ्तार किया गया और आज मैं सी क्लास क्रिमिनल की जिंदगी व्यतीत कर रहा हूं. क्या यही वह हुकूमत है, जिसके लिए आज सोलह वर्षों से कांग्रेस के एक ईमानदार सिपाही की हैसियत से लड़ता आया हूं? क्या यह सच नहीं है कि जो कुत्ते हमारा मांस नोंचकर आज तक मोटे हुए, आज भी मैं उनका शिकार हूं और पहले जहां दुश्मनों के छत्र-छाया में वो ऐसा करते थे, आज यह सब हमारे दोस्तों के इशारे पर हो रहा है?

Advertisement

बापू आदर्श क्या जमीन पर उतर कर इतना घिनौना होता है, जिससे नफरत पैदा हो जाए? आप आशा के आखिरी धागे हैं, जिससे टूटते ही उस भंयकर विस्फोट की संभावना मालूम पड़ती है जो बरसों के साथी और मित्र को एक दूसरे का जानी दुश्मन बना देगा. एक हाथ में सरकारी संगीनें हैं औऱ दूसरे के तलहत्थी पर हजार बार मातृभूमि पर चढ़ाया हुआ उच्छिष्ट सा.

      आपका

      सूर्यनारायण

     (फाइल नं. 6.07.1947 राज्य अभिलेखागार

(किताब 'बिहार चिट्ठियों की राजनीति' से साभार)

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement