क्या था कपूर कमीशन, जिसने गांधी हत्या में सावरकर पर उठाई थी उंगली?

गांधी हत्या के कई साल बाद इस केस की दोबारा जांच करने के लिए एक कमीशन बनाया गया था जिसे कपूर कमीशन कहते हैं. कमीशन की रिपोर्ट में इस साजिश में सावरकर की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए गए थे.

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30 जनवरी की शाम हुई थी महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी की शाम हुई थी महात्मा गांधी की हत्या

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 30 जनवरी 2020,
  • अपडेटेड 8:22 AM IST

  • गांधी हत्या में शामिल गोडसे और नारायण आप्टे को हुई थी फांसी
  • सबूतों के अभाव में विनायक सावरकर को कर दिया गया था बरी

महात्मा गांधी की हत्या की असफल कोशिशें कई बार हुईं लेकिन आखिरकार 30 जनवरी 1948 की शाम साजिशकर्ता अपनी साजिश में कामयाब हो ही गए. इस हत्याकांड ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया. गांधी हत्याकांड की तत्परता से जांच हुई और दोषियों को सजा भी हुई. लेकिन बोस और शास्त्री की मौतों की तरह ही इस हत्याकांड में भी कुछ झोल थे.

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गांधी मर्डर केस में इस वजह से बरी हुए थे सावरकर

हत्याकांड के अभियुक्तों में विनायक दामोदर सावरकर का नाम भी शामिल था लेकिन कोर्ट ने सबूतों के अभाव में सावरकर को बरी कर दिया. कोर्ट ने यही माना कि नाथूराम गोडसे और उसके साथी ही इस हत्याकांड के लिए जिम्मेदार थे, जिसकी उन्हें सजा भी दी गई. इस हत्याकांड के 8 दोषियों में से नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी हुई जबकि 6 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.

1964 की इस घटना ने गठित करवाया था कपूर कमीशन

1964 में जब गांधी हत्याकांड में शामिल लोग अपनी-अपनी सजा काटकर बाहर निकले तो कुछ संगठनों ने उनका स्वागत भी किया. उस वक्त बाल गंगाधर तिलक के नाती जी वी केटकर ने एक अप्रत्याशित घोषणा की थी कि उन्हें नाथूराम गोडसे के गांधी मर्डर प्लान के बारे में पहले से ही पता था. यह खबर जब अखबारों में आई तो हंगामा मच गया. जनता अवाक रह गई क्योंकि गांधी की हत्या में हमेशा किसी भी तरह के बड़े षड़यंत्र से साफ इनकार किया जाता रहा था.

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इसी वजह से सरकार को तुरंत एक्शन लेना पड़ा. एक सांसद की अध्यक्षता में 'पाठक कमीशन' बनाया गया. लेकिन उनके मंत्री बन जाने के बाद 1966 में तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री गुलजारीलाल नन्दा ने कमीशन ऑफ एन्क्वायरी एक्ट के तहत सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज जीवनलाल कपूर की अध्यक्षता में एक कमीशन गठित किया. इसे ही कपूर कमीशन कहा जाता है. इस कमीशन की जांच 3 साल तक चली. कमीशन ने 101 गवाहों के बयान लिए.

कमीशन ने सबसे पहले इस शख्स से की थी पूछताछ

कमीशन ने कुल 162 बैठकें कीं. दिल्ली, बंबई से लेकर चंडीगढ़, पुणे, नागपुर और बड़ौदा तक जांच की गई. अपेक्षा के अनुरूप ही कमीशन ने सबसे पहली पूछताछ केटकर से ही की. जिसके बाद गांधी हत्याकांड की जांच करने वाली डीसीपी नागरवाला और उस वक्त के बांबे एस्टेट के मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई से. इसके बाद सावरकर के बॉडीगार्ड और सेक्रेटरी से भी पूछताछ की गई.

सावरकर के इन करीबियों ने कमीशन के सामने किया था खुलासा

बताया जाता है कि इन लोगों ने कहा था कि गांधी हत्याकांड के दो दिन पहले यानी 28 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे सावरकर के घर आए थे. यही नहीं दोनों ने यह बात भी कही कि उस दिन सावरकर ने उनको यशस्वी होकर आने का यानी कामयाब होकर लौटने का आशीर्वाद भी दिया था.

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सावरकर की भूमिका पर उंगली उठाती थी कमीशन की रिपोर्ट

कपूर कमीशन की जांच के दौरान कुछ ऐसी बातें भी सामने आईं जिसे पहले की जांचों में शामिल नहीं किया गया था. कमीशन ने कुछ गड़बड़ियों को भी उजागर किया था. कपूर कमीशन का निष्कर्ष था , "इन तमाम तथ्यों के मद्देनजर यही बात प्रमाणित होती है कि सावरकर एवं उनके समूह ने ही गांधी हत्या को अंजाम दिया."

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