भारत में दो वयस्क लोगों के बीच परस्पर सहमति से बने समलैंगिक संबंध अब अपराध नहीं हैं. IPC की धारा 377 के तहत समलैंगिकता को अपराध बताने वाले हिस्से पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अहम फैसला सुना दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे कानून सम्मत नहीं माना है. इसलिए अब तमाम कंपनियों के लिए भी अपनी कॉरपोरेट पॉलिसी में बदलाव कर उसे LGBTQ समुदाय के अनुकूल बनाना होगा.
कई एचआर एक्सपर्ट और गे राइट एक्टिविस्ट का मानना है कि अब कॉरपोरेट कंपनियों को अपने वर्कप्लेस पर ऐसे नियम-कायदे बनाने होंगे जिससे वैकल्पिक सेक्सुअल ओरियंटेशन रखने वाले यानी LGBTQ समुदाय से जुड़े सदस्यों को किसी तरह की दिक्कत न हो.
इन कंपनियों ने पहले से बनाए हैं अनुकूल कायदे
गौरतलब है कि भारत में इंफोसिस, आईबीएम और गूगल जैसी कई कंपनियों ने पहले से ही LGBTQ (लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्विर) अनुकूल कायदे बना रखे हैं. जिन कंपनियों में ऐसी नीतियां नहीं हैं उन्हें मौजूदा आदेश के मुताबिक ही अपनी कर्मचारियों से जुड़ी नीतियों में और ऑफिस के माहौल में बदलाव करना होगा.
इस तरह के करने होंगे बदलाव
कंपनियों में अफर्मेटिव एक्शन के तहत LGBTQ अनुकूल नीतियों का मतलब है कि ऐसा वातावरण बनाना जिससे इस समुदाय के लोग गरिमा के साथ नौकरी कर सकें और ऐसे सकारात्मक माहौल का फायदा कंपनी को भी मिले. उन्हें नौकरी देने में किसी तरह का भेदभाव न हो, वर्कप्लेस पर उनके साथ किसी तरह का भेदभाव न हो और कर्मचारी सहयोगी रवैया अपनाएं, वे संतुष्टि के साथ नौकरी कर सकें इसके ज्यादा मौके हों, उनकी उत्पादकता बढ़े और ऐसे कर्मचारियों के स्वास्थ्य से जुड़ी सुविधाओं को भी हेल्थ की अन्य सुविधाओं के साथ शामिल किया जाए. दूसरे कर्मचारियों को LGBTQ समुदाय के साथियों को खुलेपन के विचार के साथ स्वीकार करना होगा.
यह ध्यान रखना होगा कि वर्कप्लेस पर इस समुदाय के लोगों का कोई उपहास न करे, उनके प्रति असम्मान न हो, उनको प्रताड़ित या उनके साथ भेदभाव न किया जाए.
LGBTQ समुदाय के अधिकारों के लिए काम करने वाले वकील दानिश शेख ने इकोनॉमिक टाइम्स अखबार से कहा, 'कंपनियों को डायवर्सिटी के लिए पहल करनी होगी और वर्कप्लेस पर इस समुदाय के प्रति असहिष्णुता और भेदभाव जैसे चलन से छुटकारा पाना होगा.'
दिनेश अग्रहरि