'परदेसियों से ना अंखियां मिलाना' को लेकर विवादों में रहीं गायिका मुबारक बेगम का निधन

बेगम ने 1961 में आई फिल्म 'हमारी याद आएगी' का सदाबहार गाना कभी 'तन्हाइयों में हमारी याद आएगी' को अपनी आवाज दी थी.

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लव रघुवंशी / BHASHA

  • मुंबई,
  • 19 जुलाई 2016,
  • अपडेटेड 11:15 PM IST

किसी वक्त लाखों दिलों पर राज करने वाली गायिका मुबारक बेगम का लंबी बीमारी के बाद सोमवार रात मुंबई के जोगेश्वरी स्थित अपने घर में निधन हो गया. वह 80 वर्ष की थीं. परिवार के एक सदस्य ने बताया, 'मुबारक बेगम अब हमारे बीच नहीं हैं. उनका जोगेश्वरी में अपने घर में सोमवार रात साढ़े नौ बजे निधन हो गया. वह कुछ वक्त से बीमार थीं.'

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मुबारक बेगम ने मुख्य तौर पर 1950 से 1970 के दशक के बीच बॉलीवुड के लिए सैकड़ों गीतों और गजलों को अपनी आवाज दी थी जिसके लिए उन्हें याद किया जाता है. बेगम ने 1961 में आई फिल्म 'हमारी याद आएगी' का सदाबहार गाना कभी 'तन्हाइयों में हमारी याद आएगी' को अपनी आवाज दी थी. वह कुछ सालों से बीमार चल रही थीं. परिवार के सूत्रों ने बताया कि उनका अंतिम संस्कार मंगलवार को किया जाएगा.

बड़े संगीतकारों के साथ किया काम
1950 और 1960 के दशक के दौरान उन्होंने सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों के साथ काम किया. इनमें एसडी बर्मन, शंकर जयकिशन और खय्याम शामिल हैं. उनके अन्य मशहूर गाने 'मुझको अपने गले लगा लो ओ मेरे हमराही' और 'हम हाल-ए-दिल सुनाएंगे' हैं.

तंगी में बीता बचपन
राजस्थान के झुंझुनू जिले में अपने ननिहाल में पैदा हुई मुबारक बेगम के पिता की आर्थिक दशा ठीक नहीं थीं. लेकिन यह मुबारक का सौभाग्य था कि उनके पिता को संगीत में बहुत दिलचस्पी थी. मुबारक बेगम के दादा अहमदाबाद में चाय की दुकान चलाते थे. जब मुबारक बहुत छोटी सी थीं तो उनके पिता अपने परिवार को लेकर अहमदाबाद आ गए. वहां उन्होंने फल बेचने शुरू किए, लेकिन अपने संगीत के शौक को मरने नहीं दिया.

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AIR में भी किया काम
मुबारक बेगम के पिता परिवार को लेकर मुंबई पहुंच गए. मुबारक बेगम को नूरजहां और सुरैया के गाने बहुत पसंद थे और वे उन्हें गाया करती थीं. उनका गायन की ओर रूझान देख कर पिता ने उन्हें किराना घराने के उस्ताद रियाजउद्दीन खां और उस्ताद समद खां की शागिर्दी में गाने की तालीम दिलवाई. उन्हें ऑल इंडिया रेडियो पर ऑडीशन देने का मौका मिला. संगीतकार अजित मर्चेंट ने उनका टेस्ट लिया और वो पास हो गईं.

राजनीति का हुईं शिकार
मुबारक जब बुलंदियों को छू रही थीं तभी फिल्मी दुनिया की राजनीति ने उनकी शोहरत पर ग्रहण लगाना शुरू कर दिया. मुबारक को जिन फिल्मों में गीत गाने थे उन फिल्मों में दूसरी गायिकाओं की आवाज को लिया जाने लगा. मुबारक बेगम का दावा है कि फिल्म 'जब जब फूल खिले' का गाना 'परदेसियों से ना अंखियां मिलाना' उनकी आवाज में रिकॉर्ड किया गया, लेकिन जब फिल्म का रिकॉर्ड बाजार में आया तो गीत में उनकी आवाज की जगह लता मंगेशकर की आवाज थी. 1980 में बनी फिल्म 'राम तो दीवाना है' में मुबारक का गाया गीत 'सांवरिया तेरी याद' में उनका अंतिम गीत था.

बेटा चलाता है ऑटो
काम की कमी के बाद मुबारक के पास आमदनी का कोई जरिया नहीं रहा और वे बदहाली का जीवन जीने पर मजबूर हो गईं. उनके परिवार में उनका एक बेटा-बहू, एक बेटी और चार पोतियां हैं. बेटा ऑटो चलाकर घर का खर्च चलाता है और बेटी को पार्किंसन की बीमारी ने अपनी चपेट में ले लिया है.

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