भारत बना मोबाइल फोन निर्यातक, लेकिन क्या चीन को पीछे छोड़ सकता है?

मोबाइल फोन व्यापार का आंकड़ा कहता है कि भारत पहली बार इस कमोडिटी का शुद्ध निर्यातक बन गया है. अब तक भारत में मोबाइल फोन का आयात इसके निर्यात से हमेशा अधिक था. वित्त वर्ष 2019-20 में भारत ने 41.5 मिलियन फोन निर्यात किए और 5.6 मिलियन फोन आयात किए.

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सेलफोन भारत में बनने से ज्यादा यहां असेंबल होते हैं (फाइल फोटो-PTI) सेलफोन भारत में बनने से ज्यादा यहां असेंबल होते हैं (फाइल फोटो-PTI)

निखिल रामपाल

  • नई दिल्ली,
  • 11 जून 2020,
  • अपडेटेड 4:08 PM IST

  • मेड इन इंडिया फोन का निर्यात करने में लगेगा वक्त
  • सेलफोन भारत में बनने से ज्यादा यहां असेंबल होते हैं

भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच लद्दाख सीमा पर हालिया तनाव के कारण एक बार फिर भारत में चीन निर्मित उत्पादों का बहिष्कार करने का आह्वान किया जा रहा है. इधर भारत में मोबाइल फोन उद्योग में चीनी निर्माताओं का दबदबा है. सस्ते बजट के फोन की भारी मांग के कारण भारत एक संभावनाशील बाजार बन गया है. लेकिन क्या हम चीनी वस्तुओं पर निर्भरता को कम कर सकते हैं?

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क्या घरेलू मांग को पूरा करने के साथ-साथ पूरी तरह "मेड इन इंडिया" फोन का निर्यात करने में सक्षम हो सकते हैं? इंडिया टुडे की डाटा इंटेलीजेंस यूनिट (DIU) ने पाया कि फिलहाल, निकट भविष्य में ऐसा होने नहीं जा रहा है.

मोबाइल फोन व्यापार का आंकड़ा कहता है कि भारत पहली बार इस कमोडिटी का शुद्ध निर्यातक बन गया है. अब तक भारत में मोबाइल फोन का आयात इसके निर्यात से हमेशा अधिक था. वित्त वर्ष 2019-20 में भारत ने 41.5 मिलियन (4.15 करोड़) फोन निर्यात किए और 5.6 मिलियन (56 लाख) फोन आयात किए. यानी भारत ने 36 मिलियन (3.60 करोड़) यूनिट का शुद्ध निर्यात किया. लेकिन क्या इसका मलतब यह लगाया जाए कि आने वाले दिनों में चीनी प्लेयर्स भारतीय बाजार से बाजार होने जा रहे हैं?

असेंबलिंग हब

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मोबाइल फोन के ज्यादा निर्यात का मतलब यह नहीं है कि उनका यहां पूरी तरह से उत्पादन हो रहा है. इंडियन सेलुलर एंड इलेक्टॉनिक्स एसोसिएशन के मुताबिक, देश में मोबाइल फोन मैन्यूफैक्चरिंग इकाइयां 2014 में सिर्फ दो थीं जो 2018 में बढ़कर 268 हो गई हैं. लेकिन आंकड़े खंगालने से पता चलता है कि सेलफोन भारत में बनने से ज्यादा यहां असेंबल होते हैं.

जैसा कि क्रेडिट सुइस का प्रेस रिलीज नोट कहता है कि इतनी बड़ी संख्या में कारखानों के होने के बावजूद भारत में मोबाइल फोन विनिर्माण का औसत मुश्किल से 10 प्रतिशत रहा है.

2017 में सरकार ने एक चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम शुरू किया, जिसके तहत मोबाइल पार्ट्स के लोकल सोर्सिंग को प्रोत्साहित किया जाता है. इसके तहत चार्जर, माइक्रोफोन, फोन कैमरा आदि उत्पादों का आयात करने पर कस्टम ड्यूटी देनी होगी, लेकिन इनके निर्माण के लिए जरूरी पार्ट्स मंगाने पर कस्टम ड्यूटी नहीं देनी होगी.

नतीजतन मोबाइल फोन के पार्ट्स मंगाकर भारत में असेंबल करना सस्ता है, जबकि पूरी तरह तैयार मोबाइल फोन का आयात करना महंगा है.

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट (2018-19) में कहा गया है, “बजट 2015-16 में घरेलू सेल्युलर मोबाइल हैंडसेट विनिर्माताओं के पक्ष में 11.5% का अंतर लाने वाली डिफरेंशियल एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई गई... इसने सेलुलर मोबाइल हैंडसेट निर्माण में असेंबलिंग, प्रोग्रामिंग, टेस्टिंग और पैकेजिंग (APTP) मॉडल को प्रोत्साहन दिया.”

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काउंटरप्लस रिसर्च के अनुसार, इससे भारत में मोबाइल फोन निर्माण में लोकल वैल्यू एडिशन 2016 में 6 प्रतिशत से बढ़कर 2018 में 17 प्रतिशत हो गई है.

लेकिन भारत में चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम भी तय समय से पीछे चल रहा है. मंत्रालय ने 30 सितंबर, 2020 तक “डिस्प्ले और ग्लास पैनल ” के लिए कस्टम ड्यूटी के कार्यान्वयन को स्थगित कर दिया है, जिसे 2019-20 में चरणबद्ध किया जाना था.

हाल में पॉलिसी रिफॉर्म

मोबाइल फोन के पार्ट्स के आयात को प्रोत्साहन से एक और असर पड़ा है. काउंटरपॉइंट रिसर्च के एसोसिएट डायरेक्टर तरुण पाठक ने पिछले साल कहा था कि 2018 में लोकल वैल्यू एडिशन बढ़कर 17 फीसदी हो सकता है और इससे हमें 2.5 बिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा की बचत हुई है, लेकिन इससे मोबाइल कंपोनेंट्स का आयात बढ़कर 13.5 बिलियन डॉलर हो गया है, क्योंकि भारत कई कीमती पार्ट्स की मैन्युफैक्चरिंग नहीं करता है.

इंडिया टुडे से बात करते हुए, पाठक ने कहा कि ऐसे परिदृश्य में 100 फीसदी "मेड इन इंडिया" फोन बनाना "वस्तुतः असंभव" होगा और वैल्यू एडिशन में 50 फीसदी से ज्यादा के योगदान के लिए नीतिगत सुधारों में कई साल लगेंगे. चीन को लगभग दो दशकों में 60 फीसदी से अधिक का वैल्यू एडीशन प्राप्त हुआ है.

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पाठक ने कहा, “एक मोबाइल फोन के निर्माण के लिए 300 से ज्यादा कंपोनेंट्स और सब-कंपोनेंट्स की जरूरत होती है. उन्हें एक ही जगह पर प्राप्त करना बेहद मुश्किल है क्योंकि हम हर पार्ट के लिए चीन पर निर्भर नहीं हैं. भारत में वास्तविक वैल्यू एडिशन वर्तमान में 12 प्रतिशत है और सरकार का चरणबद्ध निर्माण कार्यक्रम इसमें मददगार साबित हो रहा है. हमने कई कंपोनेंट्स जैसे चार्जर, पैकेजिंग, कैमरा मॉड्यूल, आदि के मामले में सुधार किया है.”

पाठक ने कहा कि आगे बढ़ने के लिए नीतिगत सुधार कारगर होंगे, लेकिन उनमें समय लगेगा. उन्होंने कहा, “हम कस्टम ड्यूटी बढ़ाते नहीं रह सकते. हाल में प्रदर्शन से जुड़े प्रोत्साहन और कॉर्पोरेट टैक्स दर कम करने जैसे कदम बड़ी कंपनियों को भारत में निवेश और निर्माण के लिए आमंत्रित करेंगे. बड़े खिलाड़ियों के आने के बाद छोटे स्थानीय निर्माताओं को भी बढ़ावा मिलेगा.”

इस साल मार्च में सरकार ने प्रदर्शन से जुड़ी 7 अरब डॉलर की प्रोत्साहन योजना की घोषणा की, जो निर्माताओं के बिक्री और पूंजी निवेश को प्रोत्साहित करेगी.

दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, “हम असेंबलिंग, टेस्टिंग, मार्किंग और पैकेजिंग इकाइयों सहित मोबाइल फोन निर्माण और विशेष इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स के उत्पादन-प्रोत्साहन के लिए आने वाले पांच वर्षों में 40,995 करोड़ रुपये देंगे.”

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इस नीति के जरिये सरकार का लक्ष्य 2025 तक लोकल वैल्यू एडिशन को 35-40 प्रतिशत तक बढ़ाना है. लेकिन इसके लिए भारत को महंगे फोन के मार्केट को टारगेट करने की जरूरत है.

क्रेडिट सुइस के रिसर्च में कहा गया है कि भारत ने वित्त वर्ष 2019 में 300 मिलियन यूनिट मोबाइल फोन का उत्पादन किया, जो वैश्विक उत्पादन का 20 प्रतिशत है. हालांकि, इनमें से अधिकांश कम कीमतों वाले फोन थे. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत ने वैश्विक स्तर पर कम कीमतों वाले फोन का 40 प्रतिशत उत्पादन किया है. इसमें यह भी कहा गया है कि अगर भारत अपने लक्ष्य को पूरा करता है, तो वह अपने राजकोषीय घाटे में जीडीपी का 0.7 प्रतिशत तक सुधार कर सकता है.

चीन इन नीतियों से लाभ उठा पाएगा या नहीं, यह भी आने वाले समय पर निर्भर करेगा. सरकार ने पहले ही चीन से आने वाले निवेश की पड़ताल शुरू कर दी है, जिससे चीनी निवेशक परेशान हैं.

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