ICSE ने 'जामुन का पेड़' को सिलेबस से हटाया, सरकारी सिस्टम पर व्यंग्य थी कहानी

ICSE की ओर से जारी नोटिस के मुताबिक, 2020 और 2021 की बोर्ड परीक्षाओं में इस कहानी से जुड़े सवाल नहीं पूछे जाएंगे. ICSE ने दसवीं की बोर्ड परीक्षा से तीन महीने पहले ही कहानी को हटाया है.

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सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 05 नवंबर 2019,
  • अपडेटेड 7:36 PM IST

  • कुछ अधिकारियों ने कहानी पर जताई थी आपत्ति
  • 2020, 2021 की परीक्षाओं में इससे जुड़े फैसले नहीं पूछे जाएंगे

मशूहर हिंदी और उर्दू लेखक कृष्ण चंदर की कहानी 'जामुन का पेड़' को भारतीय माध्यमिक शिक्षा परिषद (ICSE) ने अपने सिलेबस से हटा लिया है. जामुन का पेड़ कहानी लाल फीताशाही पर एक प्रसिद्ध व्यंग्य है. कहानी दसवीं कक्षा के हिंदी पाठ्यक्रम का हिस्सा है. ICSE ने दसवीं की बोर्ड परीक्षा से तीन महीने पहले ही कहानी को हटाया है. बोर्ड ने ये कदम एक राज्य विशेष के अधिकारियों द्वारा की गई आपत्ति के बाद हटाया है.

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ICSE की ओर से जारी नोटिस के मुताबिक, 2020 और 2021 की बोर्ड परीक्षाओं में इस कहानी से जुड़े सवाल नहीं पूछे जाएंगे. मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया कि ICSE ने फैसला लिया और 4 नवंबर को एक अधिसूचना जारी की, जिसमें कहा गया कि छात्रों को 2020 और 2021 की परीक्षाओं की तैयारी के दौरान इस कहानी पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होगी. कहानी 2015 से सिलेबस का हिस्सा थी.

ICSE के मुख्य कार्यकारी और सचिव गेरी अराथून ने द टेलीग्राफ को बताया कि यह फैसला इस वजह से लिया गया है क्योंकि ये कहानी दसवीं कक्षा के छात्रों के लिए उपयुक्त नहीं थी. हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि कहानी को लेकर क्या आपत्ति थी.

कहानी में क्या है

'जामुन का पेड़' एक व्यंग्यात्मक लघु कथा है. कहानी में बताया गया कि आंधी-तूफान में सचिवालय में लगा एक जामुन का पेड़ गिर जाता है और एक शख्स इस पेड़ के नीचे दब जाता है, लेकिन पेड़ के नीचे दबे शख्स को बचाने की कोशिश कोई नहीं करता.

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ये मामला चार दिन बाद मुख्य सचिव तक पहुंचता है. इसके बाद एक विभाग से दूसरे विभाग पर भेजा जाता है. मामला कृषि, वन विभाग से लेकर संस्कृति विभाग तक पहुंचता है.  इसके बाद फाइल स्वास्थ्य विभाग के पास पहुंचती है, जो इसे विदेश मंत्रालय भेज देता है, क्योंकि जामुन का पेड़ पड़ोसी मुल्क के पीएम ने लगाया था.

विदेश मंत्रालय पेड़ को काटने से इसलिए इनकार कर देता है, क्योंकि उसे लगता है कि इससे पड़ोसी मुल्क के साथ संबंधों पर असर पड़ेगा. इसके बाद यह मामला प्रधानमंत्री के पास पहुंचता है. अधिकारियों से सलाह करने के बाद प्रधानमंत्री शख्स की जान बचाने के लिए पेड़ को काटने पर सहमत हो जाते हैं. लेकिन पेड़ काटने से पहले ही शख्स की मौत हो जाती है.

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