56 वर्षीय कोंथावा ने अपनी ज़िंदगी के 25 साल पटाखे बनाते गुज़ारे हैं. कोंथावा पटाखे बनाने के लिए बिना कोई दस्ताने पहने हाथों से ही मसाला भरती हैं. वो दरवाजे के पास बैठकर 9 घंटे की शिफ्ट में बिना रुके काम करती हैं.
कोंथावा को एक दिन की दिहाड़ी 150 रुपये मिलते हैं. इसी से वो अपने घर का गुज़ारा चलाती हैं. जब पटाखों की फैक्ट्रियां 4 महीने तक बंद रहीं तो कोंथावा की दिहाड़ी भी बंद हो गई थी. उस वक्त में कोंथावा के लिए घर चलाना मुश्किल हुआ.
कोर्ट के ग्रीन पटाखों के आदेश के बाद हुई परेशानी
देश के सबसे बड़े पटाखा उत्पादन केंद्र ‘सिवाकासी’में करीब 1070 लाइसेंसधारी पटाखे बनाने वाले हैं. कई बिना लाइसेंस भी ये काम करते हैं. हर पटाखा निर्माता के पास ठेके पर कम से कम 300 कर्मचारी काम करते हैं. यहां सारा काम हाथों से ही होता है. 2018 में दीवाली के बाद यहां पटाखे बनाने का काम पूरी तरह बंद हो गया था. कोर्ट के ग्रीन पटाखों संबंधी आदेश आने तक यही स्थिति रही. चार महीने काम बंद रहने से पटाखा उद्योग को 800 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. साथ ही करीब 10 लाख कर्मचारियों की जीविका पर भी संकट आ गया.
पटाखे बनाने वाले कर्मचारी आरुमुगम ने बताया, 2018 की दीवाली के बाद पूरा उद्योग चार महीने के लिए बंद रहा. हमें तब पेट भरने के लिए 50-150 रुपये में लकड़ी बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा और कोई काम नहीं था तब हमें लकड़ी ही काटनी पड़ती थी. आरूमुगम और उनकी पत्नी एक ही फैक्ट्री में काम करते हैं. दोनों को एक दिन के लिए 300 रुपये मिलते हैं.
ग्रीन पटाखों को लेकर पिछली दीवाली के बाद से बात तो बहुत हुई लेकिन इसने सिवाकासी में सभी लोगों को भ्रम में डाल दिया. 1070 लाइसेंसधारी यूनिटों में से सिर्फ 4-6 ही ऐसे हैं जिन्हें ज़िओलाइट जैसे एडेटिव से ग्रीन पटाखे बनाने की अधिकृत अनुमति मिली हुई है. इस एडेटिव को मिलाने से आतिशबाज़ी से प्रदूषणकारी तत्व निकलना काफ़ी कम हो जाता है.
सरकार ने देर से जारी किया आदेश
सिवाकासी के पटाखा निर्माताओं की शिकायत है कि ग्रीन पटाखे बनाने संबंधी आदेश जारी होने में सरकार की ओर से देर हुई. केंद्रीय मंत्री ने 5 अक्टूबर को इस संबंध में घोषणा की लेकिन तब तक काफी पटाखे बिना ग्रीन लोगो या क्यू आर कोड के पैक किए जा चुके थे और डिस्पैच भी कर दिए गए थे. PESO ने उंगलियों पर गिने जाने वाले लाइसेंसधारी पटाखा निर्माताओं को ग्रीन पटाखे बनाने की अनुमति दी है. लेकिन सारी ही यूनिट इन्हें बना रही हैं और दावा कर रही हैं कि वे ग्रीन पटाखों के सारे मानकों का पालन कर रहे हैं.
चार महीने शटडाउन रहने की वजह से उत्पादन में कमी
कुछ पटाखा निर्माताओं का कहना है कि ग्रीन पटाखे बनाने के लिए ट्रेनिंग और टेक्नोलॉजी बदलने के लिए एक साल का वक्त बहुत कम है. कुछ निर्माताओं का कहना है कि ग्रीन पटाखों की शेल्फ लाइफ बहुत कम होती है.
पिछले साल भ्रम और फैक्ट्रियों के बंद होने की स्थिति में रिटेल मार्केट पर भी असर पड़ा. सिवाकासी में पटाखों के रिटेलर कृष्ण कुमार कहते हैं, “चार महीने शटडाउन रहने की वजह से उत्पादन कम रहा जिसकी वजह से हम डिमांड को पूरा करने की स्थिति में नहीं हैं. अब लोग पटाखे खरीदने आ रहे हैं. पूरे देश में पटाखे भेजे जा रहे हैं. बिक्री अच्छी है लेकिन सच ये है कि हम डिमांड पूरी नहीं कर पा रहे हैं.”
पटाखों का थोक और रिटेल स्टोर चलाने वाले अज़ागा मुथु कुमार के पास पटाखों की 420 से अधिक वैराइटी उपलब्ध हैं. कुमार के मुताबिक पिछले साल या उससे पहले की तुलना में ये बहुत कम वैराइटी हैं. कुमार कहते हैं, ‘बाज़ार में अच्छी डिमांड है लेकिन कीमतें भी कुछ ज्यादा हैं. ऐसा लेबर की दिक्कत और उत्पादन में कमी की वजह से है. उम्मीद करते हैं कि 2020 की दीवाली बेहतर होगी.’
ग्रीन पटाखों को लेकर हो-हल्ला चाहे बहुत हो लेकिन देश के सबसे बड़े पटाखा निर्माता केंद्र सिवाकासी का सच ये है कि इसे नई ग्रीन पटाखा पॉलिसी के मानकों को पूरी तरह अपनाने में अभी काफी वक्त लगेगा. इस दिशा में बढ़ने के लिए PESO से लाइसेंस लेना, पटाखों के लिए ग्रीन फॉर्मूले की ट्रेनिंग, हाथ की जगह मशीनों से पटाखों की ओर शिफ्ट करना, ग्रीन पटाखों की शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए उपाय करना जैसे कदम उठाना जरूरी है.
शालिनी मारिया लोबो